पवन में, बयार में वसंत… जो इसे देखना चाहते हैं, देख ही लेते हैं. वसंती हवा ही है, जहां जिंदगी की उम्मीदें सांस लेती हैं. लेकिन शायद आज आधुनिकता के दौर में हुआ यह कि हमारी उम्मीदों का सारा स्थापत्य ही महानगरों, शहरों में बहुमंजिली इमारतों, गाड़ियों के शोर और मोबाइल पर विज्ञापनों को स्वाइप करते-करते बदल गया है. इस स्थापत्य में वसंती हवा के लिए जगह बहुत कम बची है. मानो वसंत ऋतु की सारी सुंदरता कहीं दुबक-सी गयी है. शायद यही वजह रही कि अब शहर की दौड़ती-भागती जिंदगी में हम वो वसंत नहीं देख पाते, जिसका एक टुकड़ा हमेशा कहीं छुपा हुआ रहता है मेरे अंदर…आपके अंदर. चलिए, तलाशते हैं अपने भीतर के उस वसंत को.
स्वागत ऋतुराज वसंत का
वसंत सिर्फ मौसम नहीं, यह दिमाग और जीने के तरीके को प्रभावित करने वाला सर्दी व गर्मी के बीच का रोमांचक संक्रमण काल भी है, जो अपने साथ उल्लास, उमंग और जोश लेकर आता है. फूलों-पत्तियों में, आकाशी रंगों में, आसपास के गमलों में भी दिखता है यह वसंत. बस जरूरत है इसे महसूस करने की, यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि वसंत की सुबह में बस एक टुकड़ा वसंत ही जीवन के कैनवास का वह रंगरेज है, जो हम सबों की भावनाओं को नया विस्तार देने के लिए काफी है. दुर्भाग्य से आज वसंत हमारे जीवन का हिस्सा ही नहीं बन पाता. न जीवन में उतर पाता है, न ही हमारे दिलों में…
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जीवन में नवसंचार का उत्सव
वसंत को प्रकृति के नये शृंगार का उत्सव कहा जाता है, जबकि यह मानवीय जीवन में नवसंचार का माध्यम भी है. जहां एक तरफ पेड़-पौधे हों या पशु-पक्षी, वसंत के आते ही निखर उठते हैं, वहीं भारतीय परिवेश में बच्चों को हाथों में स्लेट पकड़ाकर विद्या की देवी सरस्वती से अपना रिश्ता भी जोड़ते हैं, क्योंकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस दिन को ही सरस्वती का अविर्भाव दिवस माना गया है. जाहिर है वसंत केवल प्रकृत्ति के नवसंचार या शृंगार का उत्सव नहीं है. यह भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में नयी शुरुआत का भी उत्सव है. प्रकृति और जीवन में इसी नवसंचार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी कविता में कहा है –
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं…
अध्यात्म से भी जुड़ा है वसंत
उत्तर भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में वसंत प्राकृतिक सौदर्य के साथ-साथ आध्यात्मिक भी है. वसंत की शुरुआत के पांचवें दिन विद्या और संगीत की देवी शारदा की जयंती के रूप में मनायी जाती है. इस दिन छह माह के बच्चों को अन्न खिलाना (अन्नप्राशन) शुभ माना जाता है. स्कूलों में भी वसंतोत्सव मनाया जाता है. पीला वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. कहते हैं अमीर खुसरो को जब पता चला कि वसंत पचंमी के दिन पीले कपड़े पहनने से भगवान खुश होते हैं तब वे भी पीली साड़ी पहनकर, हाथों में सरसों के पीले फूल लेकर हजरत निजामुद्दीन औलिया के पास पहुंच गये और गाने लगे-
सकल बन फूल रही सरसों, तरह तरह के फूल खिलाए
ले गेंदवा हाथन में आए , निजामुद्दीन के दरवज्जे पर
आवन कह गए आशिक रंग , और बीत गये बरसों…
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कैसे वसंत की कामना करें हम
वसंत का समय हर तरफ से खुशियां लाने वाला माना गया है. दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते असर के बीच में भी वसंत का ठीक अपने निर्धारित समय पर आना, आम के पेड़ का बौरों से लद जाना, खेतों में सरसों के झूमते फूल, गेहूं के फसलों का रंग, टेसू के फूलों का रंग, महुआ के गंध की मादकता और कोयल की मधुर तान से सजी धरा जैसे मुनादी कर देते हैं वसंत के आने की. न बर्फीली ठंडी हवा, न सूर्य के ताप में कठोरता. मंद बयार में और भीनी खुशबू से महकता वसंत का मौसम मन को एकदम शांत और प्रफुल्लित कर देता है. इसलिए वसंत की कामना को ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ कहा गया है. इसलिए तो कहा गया है –
रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है
मन में न हो खटास तो समझो वसंत है
देता है नव-सृजन का संदेश
जहां एक तरफ परिपूर्ण जीवन की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है वसंत, वहीं दूसरी ओर शिक्षा और बुद्धि के समुचित नियोजन का आशावादी वातावरण भी बनाता है. वसंत से हमेशा सृजन करने की प्रेरणा मिलती है, जो वर्ष भर जीवन को गतिशील रखता है. यह अनेकता में एकता समेटे हुए चिर प्रेरणा स्रोत होकर एक विवेकशील पथ पर चलते का पथ-प्रदर्शन करता है. प्रकृति की तरह मानवीय जीवन की सफलता भी नव-सृजन के अभाव में अधूरी है. यह वसंत का प्रभाव है कि हम वसंत के समय तमाम नीरसता से मुक्त हो जाते हैं और नव-उत्साह के साथ स्वयं को गतिशील बनाने में जुट जाते हैं. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं- मुझे लगता है कि वसंत भागता-भागता चलता है. वास्तव में वसंत खिला-खिला और खुला-खुला मुक्त आसमान है, जो मानवीय जीवन को गतिशील बनाता है.
कवयित्री सरिता शैल मोहन रावत लिखती हैं –
कब मांगा कि अनंत दे दो
बस एक टुकड़ा वसंत दे दो…
बस एक टुकड़ा वसत दे दो
अगर हम प्रकृति के करीब जायें, उसे गहराई से महसूस करें, तभी आशा, उत्साह से परिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिल सकेगी, जो केवल स्वयं के लिए ही नहीं, हर किसी के लिए आशावादी वातावरण को बनाये रखेगा. इसलिए तो कहा गया है- वसंत, तुम भावनाओं का विस्तार हो… जिसमें न केवल सृजन की नयी ऊर्जा मिलती है, जीवन में नवसंचार का आरंभ भी होता है.