Women Legal Rights: 8 कानूनी अधिकार जिनके बारे में हर महिला को पता होना चाहिए
दुनिया एक ऐसी जगह बन गई है जहां हर कोने में एक महिला को डर का एहसास होता है. लैंगिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता के माध्यम से सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है.
महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना दमखम दिखाया है. समय के साथ समाज ने भी महिलाओं के प्रति अपनी सोच को बदला है, उनकी प्रतिभा को सराहा है. चाहे अंतरिक्ष में यात्रा करना हो या एवरेस्ट को फतेह करना, महिलाओं ने अपने हुनर का परचम हर तरफ लहराया है. मगर इन सब के बावजूद अब भी कई महिलाएं अपने अस्तित्व के लिये लड़ रही है.
कुछ अधिकार जो महिलाओं के लिए जानना है बेहद जरूरी
दुनिया एक ऐसी जगह बन गई है जहां हर कोने में एक महिला को डर का एहसास होता है. लैंगिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता के माध्यम से सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है. ऐसे में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा, जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनकी भलाई सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कानून बनाए गए हैं. यहां 8 कानूनी अधिकार हैं जिनके बारे में प्रत्येक भारतीय महिला को आश्वस्त होने और सुरक्षित महसूस करने के लिए जागरूक होना चाहिए.
समान वेकन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, महिलाओं को समान काम के लिए समान वेतन पाने का अधिकार है. वेतन या मजदूरी के मामले में लिंग के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है. यह कामकाजी महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में उचित मुआवजे की मांग करने और प्राप्त करने का अधिकार देता है.
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कानूनी प्रक्रियाओं में गरिमा और शालीनता
किसी महिला आरोपी से जुड़ी स्थितियों में, कोई भी मेडिकल जांच किसी अन्य महिला द्वारा या उसकी उपस्थिति में की जानी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उसकी गरिमा और शालीनता का अधिकार कायम है. यह प्रावधान महिलाओं की गोपनीयता की रक्षा करता है और कानूनी प्रक्रियाओं में सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करता है.
कार्यस्थल पर उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम महिलाओं को अपने कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार देता है. यह अधिनियम शिकायतों के समाधान के लिए आंतरिक शिकायत समितियों की स्थापना करता है, जो एक सुरक्षित कार्य वातावरण के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है.
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
भारतीय संविधान की धारा 498 महिलाओं को मौखिक, आर्थिक, भावनात्मक और यौन शोषण सहित घरेलू हिंसा से बचाती है. अपराधियों को गैर-जमानती कारावास का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके घरों में हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को कानूनी सहारा मिलेगा.
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मातृत्व संबंधी लाभ का अधिकार
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 6 महीने तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं. यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है. इसमें कहा गया है कि एक महिला कर्मचारी जिसने एक कंपनी में प्रेग्नेंसी से पहले 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक काम किया है, वह मैटरनिटी बेनेफिट पाने की हकदार है. जिसमें मैटरनिटी लीव, नर्सिंग ब्रेक, चिकित्सा भत्ता आदि शामिल हैं.
दहेज के खिलाफ अधिकार
शादी के समय या उसके बाद लड़के के परिवार वाले या लड़का खुद दहेज की मांग करता है तो लड़की के परिवार वालों को मजबूरी में दहेज देने की जरूरत नहीं है. एक महिला को यह अधिकार है कि वह इसकी शिकायत कर सकती है. IPC के Section 304B और 498A, के तहत दहेज का आदान-प्रदान और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैर-कानूनी व अपराधिक करार दिया गया है.
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वर्चुअल शिकायतें दर्ज करने का अधिकार
महिलाएं ईमेल या पंजीकृत डाक पते से पुलिस स्टेशन को भेजी गई लिखित शिकायत के माध्यम से आभासी शिकायतें दर्ज कर सकती हैं. यह उन लोगों के लिए रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करता है जो शारीरिक रूप से पुलिस स्टेशन जाने में असमर्थ हैं.
स्टॉकिंग के ख़िलाफ़ अधिकार
आईपीसी की धारा 354डी उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है जो बार-बार व्यक्तिगत बातचीत या इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से महिलाओं का पीछा करते हैं. यह प्रावधान पीछा करने के अपराध को संबोधित करता है और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.