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संविधान में महिलाओं के मिले हैं ये अधिकार, समान जिंदगी जीने का देता है हक

संविधान में स्त्रियों को कई ऐसे अधिकार दिये गये हैं, जो उनको पुरुषों के समान जिंदगी जीने का हक देते हैं. आज संविधान दिवस के मौके पर जानें संविधान से उन्हें मिले प्रमुख अधिकारों के बारे में.

By Prabhat Khabar News Desk | November 26, 2023 12:27 PM
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Constitution Day: आज महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में वे बराबर की हिस्सेदार बन रही हैं. मगर ऐसी कई वजहें भी हैं, जिससे उन्हें पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है. घरेलू हिंसा, लिंग भेद व उत्पीड़न जैसी परेशानियों से उन्हें गुजरना पड़ता है. इसलिए संविधान में स्त्रियों को कई ऐसे अधिकार दिये गये हैं, जो उनको पुरुषों के समान जिंदगी जीने का हक देते हैं. आज संविधान दिवस के मौके पर जानें संविधान से उन्हें मिले प्रमुख अधिकारों के बारे में.

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961

इस कानून के तहत हर कामकाजी महिला को छह महीने के लिए मैटरनिटी लीव मिलती है. इस दौरान महिलाएं पूरी सैलरी पाने की हकदार होती हैं. यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है. इसमें कहा गया है कि एक महिला कर्मी, जिसने एक कंपनी में प्रेग्नेंसी से पहले 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक काम किया है, वह मैटरनिटी बेनीफिट पाने की हकदार है. साल 1961 में जब इस कानून को लागू किया गया था, तो उस समय छुट्टी का समय सिर्फ तीन महीने था, जिसे साल 2017 में बढ़ाकर 6 महीने तक कर दिया गया है.

सुरक्षित गर्भपात का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार दे रखा है. कोर्ट ने मैरिड-अनमैरिड में किये जानेवाले अंतर को असंवैधानिक बताया है. जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ की बेंच के मुताबिक, किसी महिला को सिर्फ विवाह न होने के चलते 20 हफ्ते तक के गर्भ को गिराने की अनुमति न देना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने जैसा होगा. हालांकि, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में 20 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति थी. मगर स्पेशल केस में इसके दायरे को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया है.

समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

इस अधियनियम के तहत एक ही तरह के काम के लिए महिला और पुरुष दोनों को मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए, यानी यह पुरुषों और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है. यह अधिनियम 8 मार्च 1976 में पास हुआ था. आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद कई जगह उन्हें समान तनख्वाह के लायक नहीं समझा जाता.

प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट

आजकल अधिकतर महिलाएं कामकाजी हैं और लड़कियां भी स्कूल जाती हैं. ऐसे में उन्हें पता होनी चाहिए कि अगर उनसे कोई दुर्व्यवहार करता है, तो वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती है. हैरेसमेंट से बचने के लिए महिलाएं आइपीसी की धारा 354 और प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट के तहत शिकायत कर सकती हैं. आज महिलाओं को डर से बाहर आकर कुछ कर गुजरने की जरूरत है.

प्रताड़ना के विरुद्ध अधिकार (घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005)

घरेलू हिंसा को अक्सर ससुराल या दहेज से जोड़कर ही देखा जाता है. जबकि, ऐसे मामले भी कम नहीं हैं, जब छोटी व किशोरियों को अपने पिता या भाई द्वारा प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है. अगर कोई बदसलूकी कर रहा है, तो घरवालों के खिलाफ भी घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती हैं. अगर कोई मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है, तो उसके लिए हेल्पलाइन नंबर 1091 का इस्तेमाल करें. आपके इलाके की महिला सेल न केवल शिकायत दर्ज करती है, बल्कि आपकी हर तरह से मदद भी करती है. इस कानून के तहत घरेलू महिलाओं के अलावा लिव इन रिलेशनशिप में रहनेवाली महिलाओं को भी शिकायत दर्ज करवाने का अधिकार है. भारतीय दंड संहिता ऐसी महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करती है. धारा 498ए के तहत आरोपी को 3 साल की सजा का प्रावधान है.

मुफ्त कानूनी सहायता

लीगल सर्विसिज अथॉरिटी एक्ट 1986 के तहत अगर आप किसी कानूनी मसले का शिकार हैं और कानूनी मदद के लिए पैसे नहीं हैं, तो आपकी सहायता दी जाती है. लीगल सर्विसिज अथॉरिटी एक्ट 1986 उन पर भी लागू होता है, जो महिलाएं कामकाजी हैं. ये एक्ट कहता है कि किसी भी इनकम स्लैब में आप फ्री लीगल एड की सहायता ले सकते हैं. देश के सभी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में ये सुविधा उपलब्ध है.

कार्यस्थल पर महिलाओं संग उत्पीड़न

अगर किसी महिला के साथ उसके ऑफिस में शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न किया जाता है, तो आरोपी के खिलाफ महिला शिकायत दर्ज करा सकती है. यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाली उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलती है. इसके लिए पॉश कमेटी गठित की गयी. यह कानून सितंबर 2012 में लोकसभा और 26 फरवरी, 2013 में राज्यसभा से पारित हुआ था.

महिलाओं को गरिमा और शालीनता के साथ जीने का अधिकार

संविधान में हर महिला को गरिमा और शालीनता के साथ जीने का अधिकार मिला है. अगर कोई भी व्यक्ति इसे भंग करने की कोशिश करता है, तो उसे कानून में सजा देने का प्रावधान है. महिलाओं के खिलाफ किये गये अपराध जैसे यौन उत्पीड़न (धारा 354ए), निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला (धारा 354 बी), लज्जा भंग करने के लिए स्त्री पर हमला करना (धारा 354) या महिला की ताक-झांक करना (354 सी ) जैसे अपराधों के लिए दंड का प्रावधान है. अगर कोई व्यक्ति महिला का पीछा करता है, उसके लिए भी धारा 354 डी के तहत सजा दी जा सकती है. अगर किसी मामले में महिला खुद आरोपी है या कोई मेडिकल ट्रीटमेंट चल रहा है, तो यह काम किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में ही होना चाहिए. दुष्कर्म के मामलों में, अगर संभव हो, तो एक महिला पुलिस अधिकारी को ही केस दर्ज करानी चाहिए.

स्त्री धन व तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

अगर कोई महिला तलाकशुदा है, तो वह अपने पति से 125 सीआरपीसी मेंटेनेंस के तहत पैसे ले सकती है, जब तक उसकी दूसरी शादी नहीं हो जाती है. वहीं, हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 25 के तहत केवल गुजारा भत्ता देने का ही नियम था, जिसमें अब कई बदलाव किये गये हैं. हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 का सेक्शन 14 और एचएमए सेक्शन 27 इस बात को पुख्ता करते हैं कि महिला के पास स्त्री धन का पूरा अधिकार है. इसका खंडन होने पर वे सेक्शन 19 का सहारा ले सकती हैं. जो भी बच्चे लिव इन रिलेशनशिप में 2010 से पहले पैदा होते थे, उन्हें अवैध घोषित किया जाता था. मगर, 2010 के बाद कानून में संशोधन करके अब उनका भी संपत्ति पर उतना ही मालिकाना हक होता है, जितना शादी से होने वाले वाले बच्चों का होता है.

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