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World Cancer Day 2024: डर नहीं, मैंने साहस को चुना और कैंसर से जीत गयी

मॉडल और अभिनेत्री पूनम पांडेय की मौत इन दिनों सुर्खियों में है. बीते कुछ समय से वह सर्वाइकल कैंसर से जूझ रही थीं. ‘कैंसर’ का नाम सुन कर लोग बेतरह डर जाते हैं. हालांकि, अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि बिना ज्यादा तकलीफ झेले, लोग इससे निकल भी आते हैं.

World Cancer Day 2024: रचना प्रियदर्शिनी मॉडल और अभिनेत्री पूनम पांडेय की मौत इन दिनों सुर्खियों में है. बीते कुछ समय से वह सर्वाइकल कैंसर से जूझ रही थीं. ‘कैंसर’ का नाम सुन कर लोग बेतरह डर जाते हैं. हालांकि, अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि बिना ज्यादा तकलीफ झेले, लोग इससे निकल भी आते हैं. कैंसर कई तरह का होता है और सबके शरीर पर इसका प्रभाव, दवाइयों का असर आदि भी अलग-अलग होता है. हर केस दूसरे से अलग हो सकता है. इस बारे में बता रही हैं प्रसिद्ध लेखिका और कैंसर सर्वाइवर रश्मि रविजा.

डर नहीं, मैंने साहस को चुना और कैंसर से जीत गयी

इस वर्ष अपने जन्मदिन (26 दिसंबर) की पूर्व संध्या पर मैंने सोचा अपने जीवन की एक बड़ी घटना आप सबसे शेयर करूं. मुझे इसी वर्ष अप्रैल महीने में कैंसर डायग्नोज हुआ, लेकिन चिंता न करें, अब इलाज पूरा हो गया है और मैं इस बीमारी से बाहर निकल आयी हूं. डॉक्टर की अनुमति से टहलना, दोस्तों से मिलना-जुलना आदि सब शुरू हो गया है. एहतियात तो अब जिंदगी भर रखना है और उस पर अमल भी कर रही हूं. धीरे-धीरे ही सही सामान्य जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा रही हूं. दरअसल, ‘कैंसर’ नामक बीमारी का नाम ही इतना बड़ा है कि सुनकर लोग बेतरह डर जाते हैं, मगर अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि बिना ज्यादा तकलीफ झेले, लोग इस बीमारी से निकल भी आते हैं. वैसे तो कैंसर कई तरह का होता है और सबके शरीर पर इसका प्रभाव और दवाइयों का असर आदि भी अलग-अलग तरीके से होता है. हर केस दूसरे से अलग हो सकता है. बावजूद इसके अगर मेरी इस कहानी से किसी सगे-संबंधी, परिचितों या दोस्तों को हौसला मिले, एक उम्मीद बंधे और निराशा न घेरे, तो मैं समझूंगी कि मेरा लिखना सार्थक हो गया.

पार्क में टहलने के दौरान मिली आहट

10 अप्रैल, 2023 तक मैं सामान्य ही थी. उस दिन मैं एक कार्यक्रम से रात 10 बजे घर लौटी. अगले दिन शाम में जब पार्क में टहलने गयी, तो मैं चलते हुए हांफने लगी. लौटते वक्त सोचा डॉक्टर के पास चली जाती हूं. (हालांकि, सबने आश्चर्य किया कि इतनी-सी बात पर आप सीधा डॉक्टर के पास चली गयीं, पर यह मेरे लिए असामान्य-सी बात थी. 10 हजार कदम रोज चलने वाली मैं पांच सौ कदम में हांफने लगी, ये मेरे लिए बड़ा अजीब था). डॉक्टर को लगा हृदय रोग की समस्या है. सो दो दिनों तक हृदय संबंधी टेस्ट हुए, पर सब सही था. फिर उन्होंने चेस्ट स्पेशलिस्ट के पास रेफर किया. उस डॉक्टर ने तुरंत डायग्नोज कर लिया, बोले-‘फेफड़े में पानी भरा हुआ है’. यह पानी ऊपर तक आकर हृदय पर दबाव डाल रहा था, इसलिए हांफने की शिकायत हो रही थी. पानी निकाल कर टेस्ट के लिए भेजा गया. तब पता चला, उस पानी में कैंसर के सेल्स मौजूद हैं.

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कुछ बीमारियां दबे पांव आती हैं

पहले लंग्स कैंसर का ही शक था, फिर टेस्ट के बाद पता चला कि कैंसर की शुरुआत ओवरी से हुई है. डॉक्टर ने बिल्कुल ठेंठ हिंदी में समझाया कि ‘ये सेल्स पानी बहुत बनाते हैं, इसलिए तुरंत कीमो शुरू करना होगा’. ओवरी से निकल कर कुछ पानी पहले पेट में और फिर फेफड़ों में चला गया. हालांकि, मुझे ओवरियन कैंसर था, पर मुझे कभी कोई स्त्री रोग संबंधी कोई समस्या नहीं हुई थी. इतना सारा पानी बदन में लेकर मैं निश्चिंत घूम रही थी और सोचती रहती-वॉक के बाद भी वजन टस से मस क्यूं नहीं होता! कुछ बीमारियां इतने दबे पांव आती हैं कि जरा-भी आभास नहीं होता और जिंदगी में सीधा दाखिल हो जातीं हैं.

नकारात्मकता को हावी नहीं होने दिया

मैंने कभी भी अपनी बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं सोचा-न पॉजिटिव और न नेगेटिव…बल्कि कुछ भी सोचा ही नहीं. बस जो भी डॉक्टर कहते गये, करती गयी. डॉक्टर भी अच्छे मिले हैं, हमेशा कहते रहे-‘लीड अ नॉर्मल लाइफ.’बच्चों से भी कहा- ‘इनकी एक्स्ट्रा केयर मत किया कीजिए. जहां तक हो सके, इन्हें नॉर्मल रहने दें. इन्हें पेशेंट की तरह बिल्कुल ट्रीट मत कीजिए.’ इस दौरान अपने पढ़ने-लिखने का काम सामान्य तौर पर जारी रखा, जिसने विकट स्थिति से उबरने में बहुत मदद की. मैंने घर में रहकर पेंटिंग शुरू कर दी. फिल्में-सीरीज भी खूब देखीं. इन एक्टिविटीज ने सामान्य बने रहने में बहुत मदद की.

अपने खान-पान का रखा विशेष ध्यान

इन सबके साथ बच्चे भी चौबीसों घंटे साथ थे. उन्होंने ‘वर्क फ्रॉम होम’ ले लिया था. हमारा हंसी-मजाक चलता रहता. मैंने भी इस दौरान बिलकुल अनपढ़ की तरह व्यवहार किया. गूगल पर एक शब्द सर्च नहीं करती. रिपोर्ट्स भी नहीं देखती थी. बस डॉक्टर और मित्र जो सलाह देते, वही करती. खाने-पीने में डॉक्टर ने कुछ भी मना नहीं किया था, पर मैंने अपनी मर्जी से शक्कर, बिस्किट, ब्रेड, तली भुनी चीजें सभी से परहेज कर लिया था. प्रोटीन के लिए बच्चों ने पनीर-टोफू बहुत खिलाया. रोजाना फल, गाजर-बीटरूट और व्हीटग्रास का जूस भी मुझे घोंटवाया जाता. मानसिक स्थिति मेरी ठीकठाक रही, डिप्रेशन में नहीं गयी.

वॉक व मेडिटेशन से उबरने में मिली मदद

मेरी बीमारी की बात सुन बहुतों को पहला ख्याल यही आता है, “इतना वॉक करती थी, योग करती थी,खान-पान भी सही था, फिर भी ये बीमारी कैसे हो गई? “ मुझे लगता है वॉक-योग बीमारी तो नहीं रोक सकते, पर जल्दी उबरने में जरूर मदद कर सकते हैं. कम कष्ट होने और जल्दी रिकवर होने में इसने पूरा सहयोग दिया. एक दोस्त ने कहा, ‘नियमित वॉक और योग से तुम्हारे दूसरे अंग इतने स्वस्थ थे कि उन पर असर नहीं पड़ा. क्या पता ये भी सही हो. आज आप सबकी दुआओं का ही असर है कि मैं इस झंझावात से सही सलामत निकल आयी हूं. जिन लोगों ने भी मेरी सलामती के लिए से दुआएं कीं, उन सभी का तहे-दिल से शुक्रिया.

अंत में दो जरूरी बातें

पहली बात

50 की उम्र के बाद फुल बॉडी चेकअप जरूर करवाएं. ईश्वर करे कोई बीमारी न निकले, पर अगर कोई बीमारी हो, तो जल्दी पता चल जायेगा. मेरी इस बीमारी की तरह कुछ बीमारियों के कोई लक्षण नहीं होते.

दूसरी बात

हेल्थ इंश्योरेंस जरूर करवा कर रखें. यह मरीज के परिजनों को राहत ही नहीं देता, बल्कि मरीज को ठीक होने में भी बहुत मदद करता है. अगर मेरा इंश्योरेंस नहीं रहता, तो मैं आत्मग्लानि के बोझ तले ही दब जाती कि मेरे ऊपर इतने पैसे खर्च हो रहे हैं. फिर इतनी जल्दी और खुश-खुश ठीक नहीं हो पाती.

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