World Leprosy Day 2024: कुष्ठ, जिसे लीप्रोसी (Leprosy) भी कहा जाता है, एक बैक्टीरियल रोग है जो मानव त्वचा और नसों को प्रभावित करता है. इस रोग का कारक है माइकोबैक्टीरियम लेप्राई (Mycobacterium leprae) नामक बैक्टीरिया है. यह रोग धीरे-धीरे विकसित होता है और शरीर में फैल जाता है. वैसे कुष्ठ के संक्रमण का पहला संकेत त्वचा पर छोटे गाढ़े, लाल रंग के दाने या घाव के रूप में होता है. जब यह बीमारी बढ़ती है, तो शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द और सुजन का अनुभव किया जा सकता है. लीप्रोसी का इलाज मानविकी, एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाओं का संयोजन होता है. सही समय पर उपचार लेने से इस रोग को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. कुष्ठ रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने और समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए हर साल 30 जनवरी को विश्व कुष्ठ रोग दिवस (डब्ल्यूएलडी) मनाया जाता है. आइए जानते हैं इस साल की थीम, इतिहास और महत्व के बारे में.
जनवरी के आखिरी रविवार को विश्व कुष्ठ दिवस के रूप में मनाया जाता है; इस वर्ष, यह 28 जनवरी को पड़ता है. फ्रांसीसी पत्रकार राउल फोलेरो ने इस बीमारी से प्रभावित लोगों की वकालत करने के लिए 1954 में इस दिन की स्थापना की थी. भारत में यह प्रतिवर्ष 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के साथ मनाया जाता है.
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इस साल के विश्व कुष्ठ दिवस की थीम “बीट लेप्रोसी” है. यह विषय इस दिन के दोहरे उद्देश्यों को रेखांकित करता है. कुष्ठ रोग से जुड़े भ्रम को खत्म करना और बीमारी से प्रभावित लोगों को जागरूक करना है. जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बताया है “बीट लेप्रोसी” थीम न केवल चिकित्सा पहलुओं बल्कि कुष्ठ रोग के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आयामों को भी संबोधित करने की जरूरत है.
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इस दिवस का महत्व खास है ताकि कुष्ठ रोग के बारे में समाज में जागरूकता फैलाया जा सके, बीमारी से संबंधित गलत धारणाओं को दूर किया जाए और शीघ्र पता लगने पर उपचार किया जाए है. 30 जनवरी के दिन कुष्ठ रोग से निपटने के लिए सरकारी अस्पताल, गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों में कैंप लगता है और लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जाता है.
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