Loading election data...

‘रविवार’ से हो रही साल 2023 की शुरुआत, सूर्य देव की अराधना से मिलेगा लाभ, जानें रविवार व्रत कथा

Surya Dev ki Puja: हिंदू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होते हैं. ऐसे में रविवार का दिन हिंदू धर्म में भी महत्व रखता है. रविवार का दिन भगवान सुर्यदेव को समर्पित है. यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों ही करते हैं.

By Bimla Kumari | January 1, 2023 8:30 AM
an image

Surya Dev ki Puja: हिंदू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होते हैं. ऐसे में रविवार का दिन हिंदू धर्म में भी महत्व रखता है. रविवार का दिन भगवान सुर्यदेव को समर्पित है. यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों ही करते हैं. रविवार का व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा करने का विधान है. रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन और शत्रुओं से रक्षा होती है. रविवार का व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आपको मान-सम्मान, धन-सम्पत्ति और यश तथा अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है. यह व्रत कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी रखा जाता है.

रविवार व्रत में पूजा विधि

  • रविवार का व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए श्रेष्ठ है. इस व्रत की विधि इस प्रकार है. प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. शांत रहें और सूर्य देव का स्मरण करें. एक बार से ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए. भोजन और फल सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ही खाना चाहिए.

  • इसके बाद भगवान सूर्य की धूप और फूल से विधि-विधान से पूजा करें. पूजा के बाद व्रत कथा सुनें. व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें. उसके बाद सूर्य देव का स्मरण करते हुए सूर्य को जल देकर सात्विक भोजन और फल अर्पित करें.

  • व्रत के दिन कभी भी नमकीन तेलयुक्त भोजन न करें. इस व्रत को करने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है और शत्रुओं का नाश होता है. आंख के दर्द के अलावा अन्य सभी दर्द दूर हो जाते हैं.

रविवार के व्रत में क्या न करें

  • तैलीय खाना नहीं खाना चाहिए.

  • सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए.

  • नमकीन खाना नहीं खाना चाहिए

Also Read: 2023 में 162 सर्वार्थ सिद्धि के बन रहे योग, जानिए क्यों खास है साल का पहला दिन?
Ravivar Vrat Katha: रविवार व्रत कथा

प्राचीन समय में किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी. वह रोज सुबह उठकर नहा-धोकर आंगन को गाय के गोबर से लीपकर साफ करती थी. उसके बाद सूर्य देव की पूजा कर स्वयं भोजन बनाकर भगवान को भोग लगाते थे. भगवान सूर्यदेव की कृपा से उन्हें किसी प्रकार की चिंता और परेशानी नहीं हुई. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भरता जा रहा था. उस बुढ़िया को सुखी देखकर उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं रखी. इसलिए रविवार को घर लाने के लिए वह अपने पड़ोस के आंगन में गाय का गोबर बांधकर लाती थी. पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के अंदर बांध लिया. रविवार को गोबर न मिलने के कारण बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी. बुढ़िया ने उस दिन सूर्यदेव को भोग नहीं लगाया और स्वयं भी भोजन नहीं किया. सूर्यास्त के समय बूढ़ा भूखा-प्यासा सो गया. इस प्रकार उन्होंने व्रत किया. रात्रि में सूर्य देव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा भोग न लगाने का कारण पूछा. घर के अंदर गायों को बांधने और गोबर न मिलने की बात बुढ़िया ने बड़े करुण स्वर में कही. अपने भक्त की परेशानी का कारण जानकर सूर्य भगवान ने उसके सारे दुख हर लिए और कहा- हे माता, हम आपको एक ऐसी गाय देते हैं जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. क्योंकि आप हमेशा रविवार के दिन पूरे घर में गाय के गोबर से भोजन बनाकर स्वयं भोजन करते हैं, इससे मैं बहुत प्रसन्न होता हूं. मेरा व्रत करने और कथा सुनने से निर्धनों को धन की प्राप्ति होती है और बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है. स्वप्न में उस बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर भगवान सूर्य अंतर्ध्यान हो गए.

सुबह सूर्योदय से पहले बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में एक सुंदर गाय और बछड़े को देखकर हैरान रह गई. गाय को आंगन में बांधकर वह जल्दी से उसे चराने ले आया और खिला दिया. पड़ोसन ने पुराने आंगन में बंधी उस सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो वह और भी जलने लगी. फिर गाय ने सोने का गोबर किया. गोबर देखते ही पड़ोसन की आंखें फटी रह गईं. पड़ोसन ने बुढ़िया को पास में न पाकर तुरंत गाय का गोबर उठाया और अपने घर ले गई और वहां उसकी गाय का गोबर रख दिया. पड़ोसन थोड़े ही दिनों में सोने के गोबर से धनी हो गई. गाय रोज सूर्योदय से पहले सोने का गोबर करती थी और बुढ़िया के उठने से पहले पड़ोसन उस गाय के गोबर को ले जाती थी.

बहुत देर तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता नहीं चला. बुढ़िया हर रविवार भगवान सूर्यदेव का व्रत करती और कथा सुनती. लेकिन जब सूर्य देव को पड़ोस की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई. आंधी का प्रकोप देख बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया. सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के अंदर बांधने लगी. कुछ ही दिनों में बुढ़िया सोने के गोबर से बहुत धनी हो गई. उस बुढ़िया के ऐश्वर्य से मोहल्ला बुरी तरह जलकर राख हो गया. जब उसे सोने का गोबर प्राप्त करने का कोई उपाय नहीं सूझा तो वह राजा के दरबार में पहुंची और राजा को सारी बात बताई. जब राजा को पता चला कि गाय बुढ़िया को सोने का गोबर दे रही है, तो उसने अपने सैनिकों को भेजा और बूढ़ी गाय की गाय लाने का आदेश दिया. सिपाही बुढ़िया के घर पहुंचे. उस समय बुढ़िया सूर्यदेव को भोग लगाकर स्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी. राजा के सिपाहियों ने गाय को खोलकर अपने साथ महल में ले गए. बुढ़िया ने सिपाहियों से गाय न लेने की विनती की, बहुत रोई पर राजा के सिपाहियों ने मना कर दिया. गाय के चले जाने से बुढ़िया को गहरा दुख हुआ. उसने उस दिन कुछ भी नहीं खाया और पूरी रात सूर्य भगवान से गाय को वापस लाने के लिए प्रार्थना करने लगी. दूसरी ओर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ. लेकिन अगले दिन जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भर गया और घबरा गया. उसी रात भगवान सूर्य उनके स्वप्न में आए और बोले- हे राजन. इस गाय को बुढ़िया को लौटा देने में ही तुम्हारी भलाई है. रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर ही मैंने उसे यह गाय दी है.

भोर होते ही राजा ने बुढ़िया को महल में बुलवाया और आदर सहित बहुत-सा धन देकर गाय लौटा दी और क्षमा मांगी. इसके बाद राजा ने पड़ोसी को दंड दिया. ऐसा करने के बाद राजा के महल से गंदगी साफ हो गई. उसी दिन राज्य ने घोषणा की कि रविवार का व्रत सभी स्त्री-पुरुषों को करना चाहिए. रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए. चारों तरफ खुशियां छाई हुई थीं. सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए.

Exit mobile version