सशक्तीकरण का सीधा संबंध निर्णय करने के अधिकार से हैं. भारत एक ऐसा देश है जहां महिलाओं की मर्जी को बहुत अधिक तरजीह नहीं दिया जाता था,बात चाहे उनकी शिक्षा की हो, स्वास्थ्य की या फिर उनकी शादी की. लेकिन समय के साथ महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया गया और परिस्थितियां काफी बदलीं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़े काफी हद तक सकारात्मक संकेत देते हैं.
NFHS-5 के अनुसार महिला सशक्तीकरण का जो डाटा 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की स्थिति का आकलन करते हुए बनाया गया है, उसके अनुसार विवाहित महिलाओं की घरेलू कार्यों में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी है. वे अब अपने घर के महत्वपूर्ण कार्यों में अपनी भागीदारी निभा रही हैं. वैसी विवाहित महिलाएं जिन्होंने अपने घर के तीन महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी निभाई इनकी संख्या शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में बढ़ी है.
हालांकि अभी NFHS-5 का राष्ट्रीय स्तर का आंकड़ा जारी नहीं हुआ है, लेकिन राज्यों के जो आंकड़े हैं उससे यही बात जाहिर हो रही है. आंध्रप्रदेश के आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में 83.4 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने घर के तीन महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी निभाई है, जबकि ग्रामीण इलाकों में इनकी संख्या 84.3 प्रतिशत है. कुल महिलाओं की बात करें तो तो डाटा 84.1 प्रतिशत का है. जबकि पांच साल पहले यानी कि 2015-16 में यह आंकड़ा 79.9 प्रतिशत था .
वहीं बिहार में यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 84 प्रतिशत, ग्रामीण इलाकों में 87 प्रतिशत और कुल 86.5 प्रतिशत है, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 75.2 प्रतिशत था.
महाराष्ट्र में यह आंकड़ा शहरी इलाकों में 90.7 प्रतिशत, ग्रामीण इलाकों में 89.2 प्रतिशत और कुल 89.8 प्रतिशत है. जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 89.3 प्रतिशत था.
बंगाल जिसे नारी शक्ति का केंद्र कहा जाता है वहां की स्थिति पर बात करें तो यहां की स्थिति भी अन्य राज्यों जैसी ही है. शहरी इलाकों में घर के तीन कार्यों के निर्णय में भागीदारी निभाने के फैसले में 96. 1 प्रतिशत महिलाएं भागीदारी देती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में संख्या 85.8 प्रतिशत है. कुल आंकड़ा 88.9 प्रतिशत का है, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 89. 9 प्रतिशत का था.
आर्थिक सशक्तीकरण की बात करें तो पिछले 12 महीनों तक काम करने वाली और नकद भुगतान पाने वाली महिलाओं की संख्या आंध्र प्रदेश के शहरी इलाकों में 36.5 प्रतिशत, ग्रामीण इलाकों में 44.5 प्रतिशत और कुल 42.1 प्रतिशत हैं. वर्ष 2015-16 से तुलना करें तो स्थिति जस की तस है. यानी उस समय भी यह आंकड़ा 42.1 प्रतिशत ही था. बिहार में स्थिति बिगड़ी हुई नजर आती है. यहां पिछले 12 महीनों तक काम करने वाली और नकद भुगतान पाने वाली महिलाओं की संख्या चिंताजनक है. शहरी इलाकों में मात्र 11.7 प्रतिशत महिलाओं को नकद भुगतान हुआ, ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 12.8 का है, जिसके कारण कुल आंकड़ा भी 12.6 प्रतिशत पर ही अटक गया है, 2015-16 में यह डाटा 12.5 प्रतिशत का था.
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बंगाल की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है यहां भी पिछले 12 महीनों तक काम करने वाली और नकद भुगतान प्राप्त करने वाली महिलाओं की संख्या शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 20.2 प्रतिशत ही है. जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 22.8 प्रतिशत का था.
Posted By : Rajneesh Anand