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आप भी राधा की तरह समाज से जुड़िए, मानवता से प्यार करिए

लखनऊ की राधा मेहता पिछले 14 साल से लखनऊ में राहगीरों को हर साल मई और जून में पानी पिला रही हैं.

इस बार गर्मी ने अप्रैल में गर्म-गर्म तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे, और अब तो जून भी बीतने को है. तब से लेकर आज तक हम इसमें झुलस रहे हैं. हमारे पास तो इससे उबरने के क्षणिक साधन हैं. उनका क्या जो मूक हैं या जो साधान विहीन हैं. गर्मी में सूरज की रोशनी दिनोंदिन प्रचंड होती जा रही है. पिछले एक महीने से ज्यादा समय से हीटवेव से आम और खास जन परेशान हैं. जो थोड़ा समर्थ हैं वे पहाड़ों की यात्रा पर निकल गये हैं और जो घरों में हैं, वे एयरकंडीशन से जी रहे हैं और इससे भी थोड़ा निचला वर्ग कूलर तो सबसे निचली पायदान पर बैठा आम आदमी का पंखे के बिना जीना मुहाल है. कहते हैं कि गर्मी ने पिछले अट्ठाइस साल बाद इतनी भयंकर दस्तक दी है कि दोपहर को अघोषित कर्फ्यू जैसी स्थिति देखने को मिल रही है. बाजार खाली दिखते हैं और गरीब पेड़ों की छाया ढूंढ रहे हैं. यह सारी हीटवेव की कहानी पेड़ों के इर्द गिर्द ही तो जुड़ी हुई है. सोशल मीडिया पर आ रहा है कि एक लकड़हारा पेड़ काटने आया लेकिन कड़ी धूप के चलते यह कह कर उसी की छाया में बैठ जाता है, यह कहते हुए कि अभी बहुत गर्मी है, बाद में पेड़ काटता हूं . है न कमाल. जो पेड़ हमें छाया और ठंडी हवा, फल और लकड़ी देते हैं, हम उन्हें ही काटने निकले हैं. कभी हरे भरे पेड़ों से जो पहाड़ बहुत खूबसूरत दिखते थे, वही पहाड़ अब नंगे दिखते हैं, जैसे कोई आदमी गंजा हो गया हो. वहां देवदारों की छाया कम हो गयी है और पहाड़ पर भी अब बिजली के पंखे चलते दिखाई देते हैं. इस गर्म मौसम में भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनके लिए मानवता के आगे कुछ नहीं.

मानवता की मिसाल हैं राधा

ऐसी हैं लखनऊ की राधा मेहता. राधा, पिछले 14 साल से लखनऊ में राहगीरों को हर साल मई और जून में पानी पिला रही हैं. इस काम में सिर्फ मानवता ही उनकी सहायता करती हैं. राधा, घरेलू महिला हैं, जो अपने बल पर राहगीरों को पानी, शरबत और मठ्ठा पिलाती हैं. यह नेक काम वह सोमवार से शुक्रवार सुबह 10 से शाम 4 तक करती हैं. इस काम में उनके साथ उनकी टीम मदद करती है. पर्यावरण की चिंता हैं राधा को है. इसके तहत वो पानी प्लास्टिक या डिस्पोसेबल गिलास में पानी नहीं स्टील के गिलास में पिलाती हैं. उन्होंने बताया कि हर शनिवार को वह खुद हाथों से खाना बनाकर राहगीरों का पेट भरती हैं. सबसे खास बात है वह खाना भी पत्तों से बने दोने में खिलाती हैं, ताकि पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे. सलाम है उनके जज्बे को. 77 साल में जो वो कर रही हैं, शायद कोई दूसरा हो तो वो उम्र और अन्य लाचारियों के आगे रखते हुए इस काम को अमली-जामा नहीं पहनाए. अब आपको भी आगे आना होगा. राधा, जैसा काम आपको भी अपने-अपने शहरों, कस्बों, मुहल्ले, चौक, बाजारों, गलियों में करना होगा. याद रहे भगवान मंदिरों में जाने से नहीं मानव सेवा से खुश होंगे. आपने जिसे शीतलता दी, वो कभी न कभी आपको शीतलता किसी न किसी रूप में लौटाएगा. कितना सटीक कहा है कबीरदास ने –
दान दिए धन ना घटे, नदी न घटे नीर.
अपनी आंखों देख लो, यों क्या कहे कबीर.

राधा मेहता की उदारता

लखनऊ की साधारण सी गृहिणी राधा मेहता ऐसी ही भावना का उदाहरण हैं, जो असाधारण दृढ़ संकल्प के साथ समाज सेवा के लिए तत्पर है. इसी सोच के साथ वे पिछले 14 सालों से हर गर्मी में मई-जून के महीने में राहत शिविर चलाती हैं, इस दौरान वे ज़रूरतमंद लोगों को भोजन, पानी और पेय पदार्थ मुहैया कराती हैं उनकी कहानी समाज सेवा, सहानुभूति, समर्पण का पर्याय है, जो भीषण गर्मी में लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन जाती हैं.

14 सालों से सेवा

हर साल तापमान बढ़ने के साथ राधा मेहता इस शिविर की शुरूआत कर देती हैं. वे अपने इन कार्यों से समाज को शक्तिशाली संदेश देती हैं कि मनुष्य को हमेशा एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए. उनकी प्रतिबद्धता दूसरे लोगों को भी स्वेच्छा से मानव सेवा एवं दान के लिए प्रेरित करती है. पिछले 14 सालों के दौरान राधा हर साल दो महीने अपने इसी मिशन को समर्पित करती आई हैं, जो सबसे चुनौतीपूर्ण समय में दयालुता और उदारता का बेहतरीन उदाहरण है.

77 वर्षीय राधा को सलाम

77 वर्षीय राधा मेहता की एनर्जी युवाओं को भी मात देती है. वह इंदिरा ब्रिज से निशातगंज की ओर जाने वाले फ्लायओवर के सामने दो महीने तक भोजन वितरण शिविर लगाती हैं. हालांकि एक दिन के लिए भी इस तरह का कैम्प लगाना अपने आप में मेहनत का काम है, लेकिन राधा दो महीने तक इसे जारी रखती है. उनका उत्साह, बहादुरी और दृढ़ इरादा सही मायनों में प्रेरणादायी है.

राधा हैं पर्यावरण प्रेमी

राधा पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं. इस कैम्प में वे प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल गिलास में नहीं बल्कि स्टील के गिलास में पान पिलाती हैं. हर शनिवार को वह खुद खाना बनाकर, आस-पास से गुजरने वाले राहगीरों का पेट भरती हैं. उनके बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह भोजन भी पत्तलों में परोसती हैं, ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे. इसके अलावा खाना बांटने की प्रक्रिया भी ठीक तरह से होती है, लोग कतार में लगकर खाना लेते हैं, पूरी प्रक्रिया में पर्यावरण की सफाई और सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता है.

भोला करता है मदद

राधा मेहता की टीम में कॉलेज के छात्र, महिलाएं और स्वयंसेवी शामिल हैं. मधुबनी, बिहार से भोला मंडल दो महीने इस कैम्प में उनकी सहायता करते हैं. इसी तरह छात्र जैसे सुमित, आयूष और अमन भी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उनके साथ समाज सेवा में योगदान देते हैं. अक्सर कैम्प में दान देने वालों की इच्छा के मुताबिक कुछ खास चीज़ें भी बांटी जाती हैं, जो निरंतर हो रहे चैरिटेबल प्रयासों को दर्शाता है.

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