Internet Addiction: सेंट्रल इंस्टीयूट ऑफ साइकियैट्री, रांची के डायरेक्टर बासुदेव दास के अनुसार, झारखंड समेत पूरे देश में इंटरनेट एडिक्शन तेजी से बढ़ रहा है. बच्चों से लेकर युवा तक इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं. अभिभावकों ने अगर अभी से अपने बच्चों को इस नशे से बचाने की कोशिश नहीं की, तो आने वाले दिनों में बहुत मुश्किल हो जायेगी. समाज और देश को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
अल्कोहल यानी शराब, गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस का नशा तो पहले से था ही. युवाओं में आजकल इंटरनेट का नशा तेजी से फैल रहा है. स्मार्टफोन व अन्य गैजेट्स से बच्चों-युवाओं के व्यवहार में आया बदलाव है. इसके जरिये तरह-तरह के सोशल मीडिया साइट्स के अलावा पोर्नोग्राफी साइट्स और गेमिंग साइट्स की लत उन्हें घेर रही है. इसकी वजह से कई तरह की परेशानियां बढ़ रही हैं. उनकी पढ़ाई छूट जा रही है. उनके व्यवहार में गड़बड़ी या बदलाव देखे जा रहे हैं.
हमारे समाज में बड़ी संख्या में लोग बिहेवियरल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है. इसके शिकार लोगों में कई तरह की मानसिक समस्या बढ़ सकती है. डिप्रेशन और नींद की समस्या बढ़ सकती है.
पहले मैट्रिक या इंटर तक विद्यार्थियों के पास मोबाइल फोन नहीं होते थे. कोविड के दौरान ऑनलाइन क्लास अटेंड करने के लिए मोबाइल जरूरी था. उस समय अभिभावकों को बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल की निगरानी करने की जरूरत थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. धीरे-धीरे यह नशा बन गया. जब हालात सामान्य हुए तो बच्चों को एडजस्ट करने में काफी दिक्कतें आने लगीं.
यह सही है कि मोबाइल के बिना आज जीवन आसान नहीं है, लेकिन हमें इसके लिए कुछ समयसीमा तय करनी होगी. बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल को नियंत्रित करना होगा. बच्चों के लिए एक टाइम स्लॉट तय कर दें कि दिन में आधा घंटा या एक घंटा ही आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर पायेंगे. अगर हम ऐसा कर पाये, तो बच्चों को इंटरनेट के एडिक्शन से बचा सकते हैं. इसके लिए हमें समय रहते कदम उठाना होगा.