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इंटरनेशनल योग डे 21 जून : निरोग रहने के लिए अपनाएं ये योग
आधुनिक युग में योग को लोग सिर्फ एक एक्सरसाइज के रूप में लेते हैं, पर यह उससे कहीं ज्यादा है. योग आपके शरीर को निरोग रखने में तो मदद करता ही है, साथ ही यह मन-मस्तिष्क को भी शीतलता देकर आपको कई बीमारियों से दूर रखता है. ध्यान और प्राणायाम योग के अभिन्न अंग हैं, […]
आधुनिक युग में योग को लोग सिर्फ एक एक्सरसाइज के रूप में लेते हैं, पर यह उससे कहीं ज्यादा है. योग आपके शरीर को निरोग रखने में तो मदद करता ही है, साथ ही यह मन-मस्तिष्क को भी शीतलता देकर आपको कई बीमारियों से दूर रखता है. ध्यान और प्राणायाम योग के अभिन्न अंग हैं, जो आपके मन के विकारों को खत्म करते हैं और आपकी मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों को दूर रखते हैं. हमारे खास अंक में इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
हमारी क्रियाओं के तीन तल हैं. एक शरीर का तल है, जहां हम काम करते हैं. दूसरा तल है मन का. यहां हम विचारते हैं. तीसरा तल है हृदय या भाव का. यहां हम भावनाओं का अनुभव करते हैं. इन तीनों के भीतर एक चौथा तल और है. वह क्रिया का तल नहीं, वहां सिर्फ ‘होना’(उपस्थिति) होता है. उसे चेतना कहते हैं. वहां हम शरीर, मन या हृदय से कुछ भी नहीं करते. उस होने का नाम ही ध्यान है. ध्यान बुरी आदतों से निजात दिलाने और अच्छी आदतों को विकसित करने में सहायक है. इससे कामकाजी कुशलता बढ़ जायेगी, जो अंततः आउटपुट और गुणवत्ता दोनों को बढ़ायेगी. आप में निरर्थक मुद्दों को अनदेखा करने के साथ-साथ जटिल समस्याओं का आसान हल निकालने की क्षमता भी विकसित होगी.
सकारात्मक दृष्टिकोण : जो ध्यानी होगा, विपरीत परिस्थितियों में भी उसका दृष्टिकोण सकारात्मक होगा. तनाव के क्षणों में वह अधिक तेजी से प्रभावी निर्णय ले पायेगा. उसकी चारित्रिक शुचिता बनी रहेगी. उसकी इच्छा-शक्ति प्रबल होगी और उसके दिमाग के दोनों हिस्सों के बीच बेहतर तालमेल रहेगा. किसी भी चीज की मन में रूपरेखा बनाने की क्षमता बढ़ जायेगी और न सिर्फ दूसरे, बल्कि आप स्वयं भी आत्म-संतुष्टि का अनुभव करेंगे.
सुनने की शक्ति बढ़ाये : ध्यान श्रवण कौशल में निपुण बनाता है. ध्यानी लकीर का फकीर नहीं होते. मौलिकता उनका गुण होता है और उसकी झलक उनके रचनात्मक तरीके से कार्य करने में मिलती है. वे संतुलित व्यक्तित्व के स्वामी होंगे और उनमें सहनशीलता औरों से अधिक होगी. कम उम्र में ज्यादा भावनात्मक परिपक्वता उनका सहज स्वभाव होता है.
बेहतर दृष्टिकोण : ध्यान हमें उचित परिप्रेक्ष्य में घटनाओं को परखने की दृष्टि देता है. ध्यानी से मिल कर आपको उसकी आंतरिक खुशी और शांति का स्पष्ट अनुभव होगा. जो ध्यान करेगा, उसमें अतीन्द्रिय क्षमता अवश्य विकसित होगी और यह उसे जीवन का परम उद्देश्य खोजने के प्रति होशपूर्ण बनाये रखता है. ध्यानी परमात्मा के नाद और नूर रूप से परिचित होता है और ध्यान का शून्य उसमें नयी सूझ-बूझ भरता है. इसकी प्रबल संभावना होती है कि ध्यानी स्वतंत्र और आत्मनिर्भर विचारों का स्वामी होगा. उसकी वृत्ति आविष्कारक, सृजनात्मक, कलात्मक और साहित्यिक होगी.
सद्भावना का विकास : ध्यानी अंतर्मुखी जरूर होता है, मगर वह गंभीर नहीं होता. इसके विपरीत, वह तो जीवन की लीला को खेल की तरह लेता है. यही प्रवृत्ति उसे वर्तमान में जीने में मदद करती है, जिससे द्रष्टाभाव विकसित होता है और व्यक्ति के लिए स्वयं को घटना का साक्षीमात्र समझना आसान होता है. सत्ता और अहंकार से परे आत्म-चैतन्य की खोज में तल्लीन होने का यह परमसूत्र है. ध्यान हमारे भीतर सद्भावना भरता है. धीरे-धीरे व्यक्ति पूरी सृष्टि के साथ एकाकार और समरस होने की अनुभूति करने लगता है. यही अनुभव आगे चल कर व्यक्ति के जीवन में गहन तृप्ति की अनुभूति कराता है.
हमारे शरीर में ऊर्जा के सात तल हैं, जिनमें सबसे नीचे का तल मूलाधार कहलाता है और सबसे ऊपर का तल सहस्रार. प्रकृति केवल मूलाधार चक्र को सक्रिय करती है. बाकी चक्रों को सक्रिय करने के लिए व्यक्ति को प्रयास करना होता है. यदि व्यक्ति प्रयास नहीं करता, तो उसकी ऊर्जा आजीवन मूलाधार चक्र पर ही रह जाती है. चूंकि हमारी सारी ऊर्जा मूलाधार चक्र पर जमा रहती है या यूं कहें कि कुंडली मार कर बैठी रहती है. इसलिए,वहां से ऊर्जा के ऊपर उठने को कुंडलिनी जागरण कहते हैं. ध्यान की पूरी प्रक्रिया इन सातों चक्रों को सक्रिय करने का प्रयास है, क्योंकि आंतरिक जीवन की समृद्धि इसी से संभव है. कुंडली जागरण होते ही हर पल जीवन ऊर्जा का अनुभव सघन होने लगता है. ध्यानी का आज्ञा चक्र (त्रिनेत्र) सक्रिय होता है, जिससे उसके लिए आत्म-स्वामित्व का अनुभव कर पाना आसान होता है.
आज्ञा चक्र की सक्रियता से अतीन्द्रिय ज्ञान द्वार खुलते हैं और व्यक्ति पहली बार उस शक्ति से परिचित होता है, जिसे वास्तविक अर्थ में चमत्कार कहा जा सकता है. जिस किसी के भी जीवन में यह चमत्कार घटता है, वह कण-कण में प्रभु के विराजमान होने का अनुभव करने लगता है. उसकी जिंदगी प्रेम, श्रद्धा, स्नेह, करुणा जैसी श्रेष्ठ भावनाओं से ओत-प्रोत हो जाती है. ऐसा व्यक्ति जब भी विदा होगा, गहन शांति और स्वीकार भाव के साथ विदा होगा.
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