Advertisement
तन की बीमारी का कारण हो सकता है मन
आजकल की व्यस्त और तनावग्रस्त जिंदगी में अकसर लोग छोटी-मोटी शारीरिक बीमारियों से परेशान रहते हैं. कई बार कुछ बीमारियां गंभीर रूप भी धारण कर लेती हैं. इलाज के लिए हम रोज नये डॉक्टर्स के चक्कर लगाते रहते हैं, जबकि इन सारी समस्याओं की मूल वजह हमारी मानसिक चिंताएं, तनाव और दमित इच्छाएं होती हैं. […]
आजकल की व्यस्त और तनावग्रस्त जिंदगी में अकसर लोग छोटी-मोटी शारीरिक बीमारियों से परेशान रहते हैं. कई बार कुछ बीमारियां गंभीर रूप भी धारण कर लेती हैं. इलाज के लिए हम रोज नये डॉक्टर्स के चक्कर लगाते रहते हैं, जबकि इन सारी समस्याओं की मूल वजह हमारी मानसिक चिंताएं, तनाव और दमित इच्छाएं होती हैं. ऐसी बीमारियों को मनोदैहिक बीमारियों (psychosomatic diseases) की श्रेणी में रखा जाता है. इनके लिए किसी फिजिशियन या आर्थोपीडिशियन के बजाय जरूरत होती है उन्हें किसी साइकोलॉजिस्ट या साइकाट्रिस्ट को कंसल्ट करने की.
केस स्टडी
सुरेश बाबू के गरदन, कमर और कंधों में पिछले कुछ समय से लगातार दर्द रहता है. असहनीय दर्द के कारण उनके लिए रोजमर्रा के कामों को मैनेज करना भी मुश्किल हो गया है. कई डॉक्टर्स को दिखलाया, कई तरह की दवाईयां खायीं, पर कोई फायदा नहीं हुआ. आर्थोपेडिक सर्जन ने सर्जरी की सलाह दी. इस बात से सुरेश बाबू काफी तनावग्रस्त हैं. उनके पड़ोसी श्री कौशिक ने उन्हें किसी साइकोलॉजिस्ट को कंसल्ट करने की सलाह दी. वहां जाने पर सुरेश बाबू को पता चला कि उनकी बीमारी का कारण शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक था.
मनोदैहिक बीमारियों का संबंध उन बीमारियों से है, जिनके लक्षण तो शारीरिक होते हैं, लेकिन उनके कारण मनोवैज्ञानिक होते हैं. psyche का मतलब होता है (mind) यानी ‘मन’ और soma का मतलब होता है (body) यानी ‘शरीर’. दरअसल, हमारा मन और शरीर एक-दूसरे से गहराई से संबंधित होते हैं. शरीर की समस्त कार्यवाही में इन दोनों का सम्मिलित योगदान होता है. इसी कारण किसी भी तरह के मानसिक या भावनात्मक तनाव होने पर असर शरीर पर इसका असर दिखने लगता है.
30 से 35 फीसदी लोग प्रभावित
मनोचिकित्सकों के अनुसार करीब 30 से 35 फीसदी लोगों में ऐसी शारीरिक बीमारियों के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनका मूल कारण अकसर किसी-न-किसी तरह का तनाव होता है.
तनाव या चिंता व्यक्ति के जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है. कुछ भी नया या बेहतर करने की चाह में अकसर लोग तनाव का अनुभव करते हैं. अगर यह तनाव व्यक्ति पर हावी होने लगे और इससे रोजमर्रा के काम प्रभावित होने लग जायें, तो इससे उसमें कई तरह की शारीरिक समस्याएं उभरने लग जाती हैं.
मनोदैहिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को शरीर में कमजोरी, हाथ-पांव में दर्द, दाद, खाज या खुजली होना, आंखों के नीचे गड्ढा होना या कालापन बढ़ना, गैस बनना, सीने में जलन और दर्द होना, सिरदर्द, बार बार पेशाब आना, पेट का अल्सर होना, ब्लड प्रेशर या हर्टबीट बढ़ने आदि जैसी समस्याएं रहती हैं. ये सभी लक्षण मस्तिष्क द्वारा जरूरत से ज्यादा काम करने या प्रेशर लेने के कारण उभरते हैं. ऐसी स्थिति में एड्रिनलिन हॉरमोन हमारी रक्तप्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे हमारे शरीर और मस्तिष्क के कार्य करने की प्रक्रिया शिथिल पड़ जाती है. कई बार तो डॉक्टर भी कंफ्यूज हो जाते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? कितने भी टेस्ट करवाये जायें, सारे रिपोर्टस नॉर्मल ही आते हैं, लेकिन व्यक्ति की परेशानी पूर्ववत बनी रहती है.
बच्चों को भी होती है ऐसी समस्या
स्कूल या एक्जाम प्रेशर की वजह से अकसर बच्चों में पेट दर्द, उल्टी, बुखार, गले में खराश आदि की शिकायत रहती है. उनका स्वास्थ्य गिरने लगता है. ये सारे मनोदैहिक समस्याओं के लक्षण हो सकते हैं.
कैसे बचें मनोदैहिक बीमारियों से
बेवजह अधिक न सोचें. जो वक्त बीत गया, उसे आप बदल नहीं सकते और जो अभी आया नहीं, उस पर आपका कोई बस नहीं, इसलिए वर्तमान में जीना सीखें और जीवन के हर पल को एन्जॉय करने की कोशिश करें.
अगर बताये गये किसी तरह की बीमारी के लक्षणों का आभास हो, तो तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करें.अगर बार-बार टेस्ट करवाने पर भी सारे रिपोर्ट नार्मल आ रहे हों, तो किसी साइकोलॉजिस्ट को कंसल्ट करें.
कई अलग-अलग बीमारियों के कई बार एक जैसे ही लक्षण हो सकते हैं, इसलिए बगैर जाने किसी भी गंभीर बीमारी को को-रिलेट न करें.
सात से आठ घंटे की पर्याप्त नींद लें.जिस काम में सबसे ज्यादा मन लगता हो, उसके लिए दिन भर में एक घंटे का वक्त जरूर निकालें.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement