शिष्टाचार भी जरूरी है दांपत्य जीवन में
रिश्ते तो समाज की नींव होते हैं और इनसे ही तो इस दुनिया की खूबसूरती बरकरार है. ऐसे में जब इनमें ही दीमक लगने लगे, तो आनेवाले कल में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा, इस बारे में हमें गंभीरता से सोचना होगा. दांपत्य किसी व्यक्ति के जीवन का बेहद निजी रिश्ता होता है. फिर […]
रिश्ते तो समाज की नींव होते हैं और इनसे ही तो इस दुनिया की खूबसूरती बरकरार है. ऐसे में जब इनमें ही दीमक लगने लगे, तो आनेवाले कल में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा, इस बारे में हमें गंभीरता से सोचना होगा. दांपत्य किसी व्यक्ति के जीवन का बेहद निजी रिश्ता होता है.
फिर भी अगर पति-पत्नी छोटी- छोटी बातों में मात्र अपने अहम की संतुष्टि के लिए एक-दूसरे में कमियां निकालते रहें या फिर खुद को श्रेष्ठतर साबित करते रहें, तो इस रिश्ते की नींव भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है. हर रिश्ते की एक सीमा होती है और हर रिश्ता एक दूसरे से शिष्टाचार की अपेक्षा रखता है. कोशिश होनी चाहिए कि आपसी विश्वास और व्यावहारिक गरिमा को बनाये रखते हुए एक-दूसरे के साथ खुल कर जिंदगी का आनंद लें.
केस स्टडी
सुशीला जी हमेशा अपने पति को ‘आप’ कह कर संबोधित करती हैं. बहुत-सी पत्नियां ऐसा ही करती हैं. एक दिन जब उनके घर गयी, तो दोनों पति-पत्नी के व्यवहार को करीब से देखने का मौका मिला. उनके पति सुदर्शन जी भी उनके लिए ‘आप’ संबोधन ही कर रहे थे.
उन लोगों ने बताया कि वे एक-दूसरे के दायरे मे दखल नही देते. एक-दूसरे की इच्छाओं व भावनाओं को पूरा सम्मान करते हैं. ऐसा नहीं कि उनमें किसी बात को लेकर बहस नहीं होती, किंतु वे आपसी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते. किसी कारण दूसरे के अहम को ठेस पहुंचे, तो तुरंत ही माफी मांग कर समाधान निकालने का प्रयास करते हैं. कोशिश करते हैं कि उनके रिश्तों में निजी स्वार्थ और अहम आड़े न आने पाये.
नीलू सहाय
स्वतंत्र पत्रकार
हर सामाजिक रिश्ते का एक तय दायरा होता है, जिसमें वे गरिमापूर्ण तरीके से फलते-फूलते हैं. लेकिन वर्तमान में हम अपने आस-पास अकसर रिश्तों के इन दायरों को टूटते-बिखरते देख सकते हैं. इसी वजह से ज्यादातर रिश्ते अपनी गरिमा खोते जा रहे हैं. रिश्ता चाहे माता-पिता और उनकी संतान के बीच का हो या फिर पति-पत्नी, भाई-बहन या फिर दोस्तों के बीच का हो. इन सबमें पहले जैसा स्नेह-सम्मान, गरमजोशी और एक-दूसरे के प्रति विश्वास का अभाव देखने को मिलता है.
आये दिन अखबारों या टीवी में हमें ऐसी खबरें देखने-पढ़ने को मिल ही जाती हैं कि कहीं किसी बेटे ने पिता की हत्या कर दी, तो कहीं किसी बेटे ने पिता का गला घोंट दिया. कहीं पत्नी ने पति को मरवा दिया, तो कहीं पति ने पत्नी की हत्या करवा दी. नजदीकी रिश्तों में बलात्कार जैसी घटनाएं तो आम हो गयी हैं. एक तरह से कहें, तो अविश्वास का एक ऐसा वातावरण निर्मित होता जा रहा है, जिसमें हर रिश्ता खोखला और बेमानी नजर आने लगा है.
रिश्ते तो समाज की नींव होते हैं और इनसे ही तो इस दुनिया की खूबसूरती बरकरार है. ऐसे में जब इनमें ही दीमक लगने लगे तो, आनेवाले कल में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा, इस बारे में हमें गंभीरता से सोचना होगा.
शिष्टाचार है बेहद अहम
बचपन से हमें बड़ों का आदर करने, छोटों से प्रेम करने, सबके साथ सद्भाव रखने आदि की सीख दी जाती है. इनमें से कई बातें हमें याद रहती हैं और काफी कुछ वक्त के साथ हम भूल भी जाते हैं. वैसे रिश्ता चाहे जो भी हो, शिष्टाचार हर रिश्ते में अहम भूमिका निभाता है.
दांपत्य सुखद जीवन का वह बंधन है, जिससे परंपराओं और युगों का विकास होता है, परंतु इसमें भी संवेदनहीनता देखने को मिल रही है. अकसर पति-पत्नी एक-दूसरे पर अपना हक जमाने के चक्कर में अपनी व्यवहारिक शिष्टाचार की सीमाएं लांघना अपना अधिकार समझते हैं. सोचते हैं पति-पत्नी के बीच कैसी औपचारिकता? यह तो सबसे निजी रिश्ता है, फिर इसमें कैसा दिखावा? लेकिन यह समझना जरूरी है कि शिष्टाचार, औपचारिकता व दिखावे में अंतर है.
मुश्किल है, नामुमकिन नहीं
पति-पत्नी जब निजी स्वार्थ और अहम से उठ कर खुद को दांपत्य के दायरों में बांधने की कोशिश करेंगे, तो इस रिश्ते को सुखद, शांतिपूर्ण और गौरवपूर्ण बनाना कोई मुश्किल काम नहीं. ऐसा करके वे अपनी संतान को भी विरासत के रूप में बेहतर रिश्तों की धरोहर दे सकेंगे, लेकिन इसके लिए सबसे पहले उन्हें स्वयं में बदलाव लाना होगा. अपने दांपत्य को आपसी सहयोग और विश्वास से सींचना होगा. यह रिश्ता यदि मित्रवत हो, फिर तो सोने पे सुहागा होगा.
रिश्तों में हो आपसी विश्वास
दांपत्य बेहद निजी रिश्ता है. फिर भी अगर पति-पत्नी छोटी- छोटी बातों मात्र अपने अहम की संतुष्टि के लिए एक-दूसरे में कमियां निकालते रहें या फिर खुद को श्रेष्ठतर साबित करते रहें, तो इस रिश्ते की नींव भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है. हर रिश्ते की एक सीमा होती है और हर रिश्ता एक दूसरे से शिष्टाचार की अपेक्षा रखता है.
इस बात से इनकार नहीं किया सकता कि जो अपने परिवार के साथ शिष्ट नहीं है, उसका बाहरी व्यक्ति के साथ केवल शिष्टता का दिखावा करता है, लेकिन मात्र दिखावे के लिए दूसरे के अहम को संतुष्ट करना शिष्टाचार है? कोशिश होनी चाहिए कि आपसी विश्वास और व्यावहारिक गरिमा को बनाये रखते हुए एक-दूसरे के साथ खुल कर जिंदगी का आनंद लें.
इमेल : sinha.neelu123@gmail.com