21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दो बच्चों की मां हैं, लेकिन नहीं जानती ‘पीरियड्‌स’ क्यों आता है

-रजनीश आनंद- माहवारी या Menstruation को लेकर हमारे समाज में जानकारी का घोर अभाव है. प्रभात खबर ने झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों से आयी महिलाओं से विशेष बातचीत की. चौंकाने वाली बात यह है कि जो महिला दो-तीन बच्चों की मां हैं, लेकिन उन्हें भी इस बात की जानकारी नहीं कि आखिर पीरियड्‌स आता क्यों […]

-रजनीश आनंद-

माहवारी या Menstruation को लेकर हमारे समाज में जानकारी का घोर अभाव है. प्रभात खबर ने झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों से आयी महिलाओं से विशेष बातचीत की. चौंकाने वाली बात यह है कि जो महिला दो-तीन बच्चों की मां हैं, लेकिन उन्हें भी इस बात की जानकारी नहीं कि आखिर पीरियड्‌स आता क्यों है. वे सिर्फ यह बता पाती हैं कि जब लड़कियां बड़ी हो जाती हैं तो उनके शरीर से खून आता है. जानकारी के अभाव में उन्हें कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बावजूद इसके महिलाएं डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं. एक महिला ने तो यह भी कहा कि वह डॉक्टर के पास इसलिए नहीं जाती क्योंकि डॉक्टर गलत हरकत करता है.

जयंती गगरई 20 साल की हैं. पश्चिम सिंहभूम की रहने वाली हैं. वे बताती हैं कि जब उन्हें पहली बार मासिक आया तो वे डर गयी थीं, उन्हें लग रहा था कि उन्हें कोई बीमारी हो गयी है. घर में किसी ने बताया नहीं कि मासिक क्यों होता है. आज भी मुझे यह नहीं पता कि आखिर मासिक क्यों होता है. जयंती का कहना है कि मैं पहले सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती थी, लेकिन मेरे पति ने कहा कि नैपकिन इस्तेमाल करने से बहुत परेशानी होती है, इसलिए मैं अब कपड़ा इस्तेमाल करती हूं. मुझे मासिक के दौरान काफी पेट दर्द होता है. सिर चकराता है. हम बच्चा चाहते हैं लेकिन अभी तक मैं मां नहीं बन पायी हूं. एक बार डॉक्टर के पास गयी थी, लेकिन उसने गलत हरकत की थी, जिसके कारण मैं अब डॉक्टर के पास नहीं जाती. जयंती बताती हैं कि मासिक के दौरान हमारे ऊपर कई प्रतिबंध होते हैं. हम पूजा नहीं करते, अचार नहीं छूते, भंडार गृह में भी नहीं जाते हैं. जानकारी के अभाव में इनके गांव में जो महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं, वे कपड़े को धोती तो साबुन से हैं, लेकिन घर के अंदर ही सूखाती हैं, क्योंकि इन्हें डर है कि कोई देख लेगा और पूछेगा कि यह क्या है.

पश्चिम सिंहभूम की रहने वाली उषा देवी का कहना है कि मैं माहवारी के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करती हूं, लेकिन घर से बाहर जाने पर सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हूं. उषा का कहना है कि हमारे गांव में महिलाएं ज्यादातर कपड़ा ही इस्तेमाल करती हैं. उन्हें तो यह पता भी नहीं कि सेनेटरी नैपकिन क्या होता है. महिलाओं के समूह से जुड़कर मैंने सेनेटरी नैपकिन के बारे में जाना. हालांकि मैं यह नहीं जानती कि मासिक क्यों होता है. उषा देवी के दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी. उषा का कहना है कि वह अपनी बेटी को माहवारी के बारे में पूरी जानकारी देंगी. माहवारी के दौरान जो प्रतिबंध लगाये जाते हैं उनके बारे में बात करते हुए उषा बताती हैं कि हम खाना नहीं बनाते, भंडार गृह नहीं जाते और पूजा पाठ भी नहीं करते हैं.

भारतीय समाज में माहवारी को लेकर जागरूकता का सख्त अभाव है. आज भी लगभग 20 % महिलाएं ही देश में सैनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं. 80% महिलाएं आज भी कपड़ा और अन्य साधनों का प्रयोग करती हैं, जिनमें राख प्रमुख है. अगर हम सिर्फ गांव की बात करें तो महिलाओं की कुल जनसंख्या का 75% आज भी गांवों में रहता है और उनमें से सिर्फ दो प्रतिशत ही सैनेटेरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. इनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार को बहुत प्रयास करना है. यूनिसेफ जैसी संस्थाओं को कारगर उपाय करने हैं, जबतक ऐसा नहीं होगा महिलाएं भुक्तभोगी रहेंगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें