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जीवनी शक्ति को सक्रिय बनाता है प्राणायाम

प्राणायाम की सामान्य परिभाषा मानी जाती है- श्वसन पर नियंत्रण. किंतु, यह संपूर्ण अर्थ नहीं. प्राणायाम दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयम’ से मिल कर बना है. प्राण का अर्थ जीवन शक्ति और आयाम यानी नियमित करना. अर्थात् जीवन शक्ति को नियमित करना. प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 28, 2017 12:34 PM
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प्राणायाम की सामान्य परिभाषा मानी जाती है- श्वसन पर नियंत्रण. किंतु, यह संपूर्ण अर्थ नहीं. प्राणायाम दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयम’ से मिल कर बना है. प्राण का अर्थ जीवन शक्ति और आयाम यानी नियमित करना. अर्थात् जीवन शक्ति को नियमित करना. प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है. योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है. अत: आप प्राणायाम का ज्ञान रख जीवन को सुंदर बना सकते हैं.
नि:संदेह प्राणायाम द्वारा शरीर को अधिक ऑक्सीजन प्राप्त होता है तथा शरीर से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. प्राणायाम श्वसन क्रिया के माध्यम से मानव संरचना के स्थूल व सूक्ष्म स्तरों में निहित सभी प्रकार के प्राणों को संचालित कर नियंत्रित करता है. इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव मन व शरीर पर भी पड़ता है. प्राणायाम प्राणों पर नियंत्रण नहीं, बल्कि उसका विस्तार है. प्राणायाम ऐसी विधि है, जिनके द्वारा जीवनी शक्ति को सक्रिय और नियमित बनाया जा सकता है और अपनी सामान्य सीमाओं के परे जाकर स्पंदनशील ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है.
प्राणायाम के अभ्यास में श्वसन के चार महत्वपूर्ण पक्षों को उपयोग में सामान्यत: लाया जाता है, जो इस प्रकार हैं :
1. पूरक : श्वास को अंदर लेना,
2. रेचक : श्वास को बाहर छोड़ना,
3. अंतर्कुम्भक : श्वास को लेकर अंदर रोकना,
4. बहिर्कुम्भक : श्वास को बाहर छोड़कर
बाहर ही रोकना. प्राणायाम में मुख्य तौर पर सांस के इन चार पहलुओं का ही उपयोग किया जाता है. प्राणायाम के लगातार अभ्यास से नाड़ियों को शुद्धिकरण किया जाता है.
श्वास, स्वास्थ्य और प्राणायाम : श्वास हमारे जीवन की महत्वपूर्ण क्रिया है, जो हमारे प्रत्येक कोशिका व उसके क्रिया-कलापों को प्रभावित करता है, जिसका संबंध मस्तिष्क के कार्य से भी जुड़ी हुई है. एक व्यक्ति एक मिनट में 15 बार तथा 24 घंटे में 21600 बार श्वास लेता है. यह श्वास हमारे शरीर के अंदर ग्लूकोज को जलाने के लिए ईंधन का कार्य करता है. प्राणायाम से हम अपने फेफड़े का सही ढंग से इस्तेमाल करना सीखते हैं, जिसके चलते हम अपने शरीर से सर्वाधिक टॉक्सिन को निकालने में सफल होते हैं.
प्राण और जीवन शैली : हमारी जीवन शैली पर प्राणायम कोश का गहरा प्रभाव पड़ता है, जो हमारे जीवनशैली के क्रिया-कलाप, व्यायाम, कार्य, निद्रा,भोजन-ग्रहण और यौन संबंध जैसी क्रियाओं को प्रभावित करता है.
श्वसन और जीवनकाल : लंबी जीवन काल के लिए लंबी, गहरी और मंद श्वसन क्रिया बेहद जरूरी है. जो जानवर मंद-मंद श्वसन करते हैं, जैसे- अजगर, हाथी, कछुआ लंबी आयुवाले होते हैं, उसी प्रकार जो जानवर जल्दी और छोटी श्वास लेते हैं, जैसे- कुत्ता, पक्षी, खरगोश की आयु कम होती है. ठीक उसी प्रकार जो व्यक्ति प्राणायाम करता है, वह जल्दी श्वास लेनेवालों से ज्यादा आयुवाला होता है.
सामान्य निर्देश
श्वसन : हमेशा नाक से सांस लें. प्राणायाम के पूर्व जल नेती का अभ्यास जरूर करना चाहिए.
समय : प्राणायाम का अच्छा समय प्रात: वेला है. खाने के 3 -4 घंटे बाद करना उचित होगा. सोने के पूर्व भी कर सकते हैं.
स्थान : स्वच्छ व हवादार जगह में करना चाहिए.
क्रम : आसनों के बाद व ध्यान के पूर्व करना चाहिए तथा प्राणायाम के बाद कुछ क्षण के लिए श्वसन में लेटना चाहिए.
वस्त्र : ढीला व आरामदायक सूती का वस्त्र पहनें.
स्नान : अभ्यास के पूर्व स्नान करना उचित है.
खाली पेट : खाली पेट में करें या भोजन के 3-4 घंटे बाद.
पाचन : प्राणायाम शुरू करने पर कब्ज या पेशाब की मात्रा में कमी महसूस हो सकती है. अत: नमक व मसाला न लें. पानी अधिक मात्रा में लें. दस्त होने पर कुछ अभ्यास बंद कर दें.
तनाव : शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक तनाव में करना ज्यादा उचित होगा. जबरदस्ती प्राणायाम में न करें.
सीमाएं : किसी रोग के दौरान प्राणायाम न करें. रोगोपचार के लिए योग चिकित्सक या शिक्षक की सलाह लें.
धर्मेंद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर
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