पढ़ें अंजू राठौर की लघुकथा: समर्पण
!!अंजू राठौर!!संपन्न परिवार में नाजो से पली पूजा माता-पिता की इकलौती पुत्री थी. माता-पिता ने उच्च शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दिये, ताकि ब्याह पश्चात् नये परिवेश में तारतम्य बिठाने में उसे कठिनाई न हो. आधुनिक परिवेश में पली-बढ़ी पूजा पर माता-पिता ने कभी अनावश्य बंदिशें नहीं थोपीं. पूजा का विवाह संयुक्त परिवार में […]
!!अंजू राठौर!!
संपन्न परिवार में नाजो से पली पूजा माता-पिता की इकलौती पुत्री थी. माता-पिता ने उच्च शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दिये, ताकि ब्याह पश्चात् नये परिवेश में तारतम्य बिठाने में उसे कठिनाई न हो. आधुनिक परिवेश में पली-बढ़ी पूजा पर माता-पिता ने कभी अनावश्य बंदिशें नहीं थोपीं. पूजा का विवाह संयुक्त परिवार में हुआ, ससुराल में सास-ससुर के अलावा दो छोटी ननदें भी थीं. सौभाग्य से पति शिक्षित, मॉडर्न जमाने के थे, किंतु सास-ससुर चुस्त रूढ़िवादी. उनके अनुसार आदर्श बहू के लिए साड़ी पहनना ही उचित है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि साड़ी एक मर्यादित पोशाक है.
संपन्न परिवार में नाजो से पली पूजा माता-पिता की इकलौती पुत्री थी. माता-पिता ने उच्च शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दिये, ताकि ब्याह पश्चात् नये परिवेश में तारतम्य बिठाने में उसे कठिनाई न हो. आधुनिक परिवेश में पली-बढ़ी पूजा पर माता-पिता ने कभी अनावश्य बंदिशें नहीं थोपीं. पूजा का विवाह संयुक्त परिवार में हुआ, ससुराल में सास-ससुर के अलावा दो छोटी ननदें भी थीं. सौभाग्य से पति शिक्षित, मॉडर्न जमाने के थे, किंतु सास-ससुर चुस्त रूढ़िवादी. उनके अनुसार आदर्श बहू के लिए साड़ी पहनना ही उचित है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि साड़ी एक मर्यादित पोशाक है.
बाहर जाकर जॉब करना उनके विचारों के विरूद्ध था. परिवार में सुख-शांति बरकरार रखने के लिए पूजा ने हर परिस्थितियों से समझौता कर लिया. बिना किसी गिले-शिकवे के सारे घर की जिम्मेदारियां पूजा ने बखूबी संभाल ली. कभी किसी को शिकायत का मौका न देने के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहती. जब भी वह अपनी सहेलियों की उपलब्धियों और तरक्की के बारे में सुनती, उसके मन के किसी कोने में टीस उठती. वह जान रही थी, उसके सभी सहपाठी बदलते समय के अनुसार अपने को परिवर्तित कर आधुनिक हो गये है और वह सबसे पिछड़ती जा रही थी. शायद यही जिंदगी की पेचीदगियां हैं, यह सोच कर वह अपने को संतुष्ट कर लेती.
गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ती चली गयी और पूजा की गोद दो बच्चों की खिलखिलाहट से गूंज उठी. समय कैसे पंख लगा कर उड़ गया, पता ही नहीं चला. अब छोटी ननद के लिए ब्याह के रिश्ते आना शुरू हो गये थे. एक दिन पूजा ने बच्चों के स्कूल से पैरेंट्स मीटिंग में शामिल होकर जैसे ही घर की दहलीज पर कदम रखा, उसने अपनी सासू मां को ससुरजी से कहते हुए सुना- ‘’हमारी सुधा के लिए बहुत ही बढ़िया रिश्ता आया है. ससुरालवाले बड़े ही खुले ख्यालात के हैं, पहनने-ओढ़ने, खाने-पीने, घूमने-फिरने की कोई पाबंदी नहीं है, उन्हें सुधा के नौकरी करने पर भी कोई आपत्ति नहीं है, आखिर हमने सुधा को सिर्फ चूल्हा-चौका करने के लिए तो नहीं पढ़ाया-लिखाया. बड़ी ही खुशकिस्मत है हमारी बेटी सुधा.’’
सासू मां की बातें सुन कर पूजा स्तब्ध रह गयी. उसके जेहन में अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया- क्या इनसान की सोच रिश्तों के अनुसार बदलती रहती है? क्या मेरे त्याग का कोई मोल नहीं? आंखों से आंसुओं का बांध टूट पड़ा और वे बहने लगीं. किसी तरह पूजा ने खुद को संभाला और आंसू पोंछ कर भीतर आकर बोली- ‘’मां, आज बच्चों के स्कूल से आने में देर हो गयी, क्या आपने और बाबा ने खाना खाया?’’
इमेल : arrathor70@gmail.com