महज 16 साल की उम्र में शादी और 19 साल की उम्र में विधवा जीवन. इसके बावजूद बिहार के समठा गांव की बेबी झा ने जब आगे बढ़ने का फैसला लिया, तो कुछ दबंग बरबाद करने की धमकी देने लगे. बेबी के सामने तीन बच्चों की परवरिश के अलावा जेठ के तीन अनाथ बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी थी. पति को खोने का गम भुला कर अस्तित्व बनाना जरूरी था, ताकि वह इन बच्चों की जिंदगी भी संवार सकें. इसके लिए उन्होंने किताबों की ओर रुख किया.
बेबी के पति ने उन्हें हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित किया था. शादी के बाद ही उन्होंने इंटर की पढ़ाई की थी. ऐसे मुश्किल समय में उन्होंने बीए में एडमिशन लिया. लोगों ने ताने भी दिये, पर बेबी को पता था कि यह समाज उनके बच्चों का पेट नहीं पालेगा. उन्हें ही आगे बढ़ना होगा, उन्हें पढ़ना ही होगा.
उन्होंने घर पर ही सुधा डेयरी का एक बूथ खोल लिया. गांव के कुछ लोगों ने बेबी को बरबाद करने की धमकी दी. शायद इसलिए क्योंकि वह एक विधवा थी, जो लोगों की दया पर जीने के बजाय खुद अपनी राह तलाश रही थी. बेबी तमाम मुश्किलों से जूझते हुए बिना किसी भय के दुकान चलाती रहीं. धीरे-धीरे वक्त गुजरने के साथ उन्होंने अपने अच्छे स्वभाव से सबका दिल जीत लिया. अपने तीनों बच्चों को पढ़ा-लिखा कर एक खास मुकाम तक पहुंचा दिया. बीते दिनों को याद करते हुए वह कहती हैं- जब मैं एग्जाम देने कॉलेज जाती थी, तो मेरे कैरेक्टर पर सवाल उठाते थे. विधवा देख कर मेरा पीछा करते थे. मैंने कभी इन बातों को तवज्जो नहीं दी.
बेबी ने बिजनेस से लेकर खेती-बाड़ी तक कई काम किये. आज आंगनबाड़ी में कार्यकर्ता के तौर पर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं. बेबी कहती हैं- कल तक जो लोग मुझे जलील करते थे, आज हमारी तरक्की देख तारीफों के पुल बांधते हैं.
बेबी झा
समठा गांव, बिहार