शिशुकाल से ही पढ़ाएं संस्कारों का पाठ
हमारी असली फसल तो हमारे बच्चे हैं, जिनमें संस्कारों, आदर्शों, मर्यादा और इंसानियत की खाद और पानी हमें शुरू से देना होगा. आप किसी भी तरह का अपराध देखिए- सबसे पहले हमारे गलत संस्कार ही सामने आयेंगे. परिस्थितियां लाख विपरीत हों, अगर हमारे संस्कार सही हैं, सही-गलत की पहचान करने में सक्षम हैं, तो हमसे […]
हमारी असली फसल तो हमारे बच्चे हैं, जिनमें संस्कारों, आदर्शों, मर्यादा और इंसानियत की खाद और पानी हमें शुरू से देना होगा. आप किसी भी तरह का अपराध देखिए- सबसे पहले हमारे गलत संस्कार ही सामने आयेंगे. परिस्थितियां लाख विपरीत हों, अगर हमारे संस्कार सही हैं, सही-गलत की पहचान करने में सक्षम हैं, तो हमसे अपराध नहीं होंगे.
अब पहलेवाला व समाज- समय नहीं रह गया, जब लड़कियों को पढ़ाया जाये या नहीं, लेकिन कढ़ाई, बुनाई, सिलाई और पाक कला जरूर सिखायी जाती थी. लड़कियां सड़क पर निकलती थीं, मगर नजरें नीची होती थीं. मानो किसी गुनाह के बोझ तले दबी हों. मुंह में जबान होती थी, मगर चुप रहने की सीख दी जाती थी. अब न तो वह दौर रहा, न ही वह तौर. उस समय की जरूरतों के अनुसार उस दौर के लिए शायद वह सिलाई, बुनाई और कढ़ाई का हुनर काबिले तारीफ था. इतने टेलर्स, बुटीक नहीं थे. महिलाएं खुद कपड़े सिलती थीं. उस पर कढ़ाई करती थीं. कैरियर को लेकर मारामारी नहीं थी. इसलिए वक्त-जरूरत पड़ने पर यही सिलाई-कढ़ाई कमाई का जरिया भी बन जाता था. चूंकि तब की जरूरतें बड़ी नहीं थीं, तो उसमें काम चलता था, मगर आज इससे काम नहीं चलेगा और अगर इसी में कोई भविष्य बनाना चाहे तो फिर उसके लिए फैशन डिजाइनिंग जैसे तमाम रास्ते हैं, जिनके लिए अलग से बहुत सारे कोर्स हैं. घर संभालनेवाली महिलाएं तो आज भी समय निकालकर अपने थोड़े-बहुत काम कर ही लेती हैं, मगर कामकाजी महिलाओं के लिए समय निकालना थोड़ा मुश्किल है. बाकी हर वस्तु आज रेडीमेड मिल जाती है, लेकिन आप संस्कार खरीदकर बच्चों को नहीं दे सकते.
यह वह धरा है जिसकी सिंचाई, निराई, गुड़ाई और देखभाल अगर आपने नियमित रूप से नहीं की, तो संस्कारों की फसल तो बरबाद होनी ही है. इससे किसी और का कुछ नहीं बिगड़ेगा. अलबत्ता आपको और आपके परिवार को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. जैसे फसल खराब होने से नुकसान किसान का ही होता है, उसी तरह बच्चों में अच्छे संस्कार न पड़ने से आपके बच्चे ही बिगड़ेंगे, गलत राह पर चलेंगे. लॉंन्ग टर्म में देश और समाज भी अवश्य ही प्रभावित होगा. एक किसान की फसल एक बार बरबाद होगी, तो उसको और परिवारीजनों को दिक्कतें-परेशानियां होंगी. साथ ही वह अपनी कमाई के लिए देशवासियों के लिए जो अन्न उगाकर बेचता था, उसमें उसका योगदान नहीं दे पायेगा, लेकिन वह किसी तरह मैनेज कर लेगा. अगली फसल बरबाद हुई, तो उसे खाने-पीने के लाले पड़ जायेंगे. जब वह खुद का परिवार नहीं पाल सकेगा, तो देश-समाज के लिए क्या योगदान देगा? यह तो एक किसान की फसल बरबाद होने की बात हुई. अगर सभी किसानों की फसलें बर्बाद हुईं, तो देश के सामने संकट ही संकट है. फिर तो संकट गुणात्मक रूप में बढ़ेंगे. फसलें बरबाद होंगी, तो हमें खाने के लिए कहां से मिलेगा. बाहर से अन्न खरीदा जायेगा. मंहगाई बढ़ेगी. उचित देखभाल और संसाधनों की कमी से जमीन बंजर हो जायेगी. फिर तो हम दोबारा जमीन उपजाऊ होने की उम्मीद खो बैठेंगे और उसके लिए कितना प्रयास करना पड़ेगा, आप बेहतर समझ सकते हैं. यह है फसल की बरबादी का असर, जो हम और फिर हमारा देश भुगतेगा. इसलिए हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालें, उन्हें समय देकर एक जागरूक, जिम्मेदार और समझदार नागरिक बनाएं, जिससे परिवार के साथ देश-समाज का भी हित हो. हमारी असली फसल तो हमारे बच्चे हैं, जिनमें संस्कारों, आदर्शों, मर्यादा और इंसानियत की खाद और पानी हमें शुरू से देना होगा. आप किसी भी तरह का अपराध देखिए- सबसे पहले हमारे गलत संस्कार ही सामने आयेंगे. परिस्थितियां लाख विपरीत हों, अगर हमारे संस्कार सही हैं, हमारे अंदर उनसे निपटने की काबिलियत है, सहने की शक्ति है और अपनी महत्वाकांक्षाओं में अंधे न होकर हम सही-गलत की पहचान करने में सक्षम हैं, तो हमसे अपराध नहीं होंगे. अगर बड़े से बड़ा दुख सहने की क्षमता हमारे अंदर है, ‘किसी भी कीमत पर’ अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करने की जिद हममें नहीं है तो हम गलतियां नहीं करेंगे, लेकिन अगर हम अपनी महत्वाकांक्षाओं को ‘किसी भी कीमत पर’ पूरा करने का जुजून पाल लेते हैं, तो फिर हमें गलत राह पर जाने से कोई रोक नहीं सकेगा. कम समय में ज्यादा पाने और प्रसिद्धि की चाह हमारे लिए ही कब गड्ढा खोदना शुरू कर देगी, हमें पता भी नहीं चलेगा. हमें होश तब आयेगा जब हम गड्ढे में गिर चुके होंगे और तब कुछ नहीं हो पायेगा. हालांकि अच्छाई के रास्ते पर चलने के लिए कभी देर नहीं होती. ‘जब जागो तभी सवेरा’ मगर शर्त है कि आपकी आंखें खुलनी चाहिए. गलती-नादानी एक बार होती है, दो बार होती है, बार-बार नहीं. अगर आप बार-बार गलतियां करते हैं, तो उसे गलती की श्रेणी में नहीं रखा जाता, उसे गुनाह कहा जाता है. गलतियां अनजाने में होती हैं, लापरवाही से होती हैं, मगर बार-बार गलतियां नहीं होतीं. गलत राह पर चलनेवालों के परिणाम कभी अच्छे नहीं होते. हो सकता है- आपको सुगम- चमचमाता रास्ता मिले मगर मंजिल कांटों भरी अवश्य होगी और जब मंजिल पर आपको कांटे मिलेंगे तो सुगम रास्तों का मतलब नहीं. शार्टकट जल्दी पहुंचाते हैं, मगर खतरे ज्यादा होते हैं. अगर हम जान जायें कि शार्टकट पर चल कर मंजिल के करीब जल्दी पहुंचेंगे, लेकिन खतरे ज्यादा हैं, जिसमें जान का भी जोखिम है. दूसरी तरफ लंबा रास्ता जरूर है, मगर उसमें आप सुरक्षित हैं.
आपको समय जरूर लगेगा, मगर दिक्कतें नहीं होंगी. साहस हमेशा ही अच्छा होता है. रोमांच भी जीवन में होना चाहिए, मगर दुस्साहस नहीं. खुद को जान-बूझकर आग के हवाले करना उचित नहीं, बुद्धिमत्ता भी नहीं. इससे हमारा परिवार परेशानी में पड़ सकता है, ऐसे शार्टकट पर कभी नहीं चलना चाहिए. इसलिए बच्चों को उनके शिशुकाल से ही संस्कारों का पाठ पढ़ाना चाहिए. अगर वे न समझें, तो भी सिर्फ आदत में लाने के लिए उनके सामने बार-बार वही बातें रिपीट करनी चाहिए, जिससे उनमें आत्मसात हो जाएं. क्रमश:
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
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