कुछ करने की थी चाह पति ने भी दिया साथ

जरूरी नहीं कि हर कोई आर्थिक तंगी से जूझने पर ही किसी बिजनेस में अपनी किस्मत आजमाने की सोचे. कई लोग भीड़ से अलग अपनी एक पहचान बनाने और जीवन में कुछ बेहतर करने के उद्देश्य से भी ऐसा करते हैं. ऐसी ही एक महिला हैं गीतू रानी, जिन्होंने दादी-नानी के काम को ही सफल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2017 1:36 PM

जरूरी नहीं कि हर कोई आर्थिक तंगी से जूझने पर ही किसी बिजनेस में अपनी किस्मत आजमाने की सोचे. कई लोग भीड़ से अलग अपनी एक पहचान बनाने और जीवन में कुछ बेहतर करने के उद्देश्य से भी ऐसा करते हैं. ऐसी ही एक महिला हैं गीतू रानी, जिन्होंने दादी-नानी के काम को ही सफल बिजनेस कांसेप्ट बनाया.

पीढ़ियों से हम अपने घर में मां, चाची, दादी, नानी को में बड़ी, पापड़, अचार बनाते हुए देखते आ रहे हैं, लेकिन उनके स्वाद को मार्केट में पहचान दिलाने के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा या अगर सोचा भी हो, तो उस दिशा में गंभीर प्रयास किया होगा. लेकिन पटना के फुलवारीशरीफ, गांव नवादा की गीतू रानी ने अपने पुरखों की इस कला का इस्तेमाल करके न केवल अपनी पहचान बनायी, बल्कि कई अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद की.

गांव में कौशल विकास कार्यक्रम में मिला प्रशिक्षण

वर्ष 2000 में गीतू के गांव में बिहार सरकार के लोक कल्याण समिति के कुछ कार्यकर्ता घूम-घूम कर पुरुषों-महिलाओं को सरकार के कौशल विकास कार्यक्रम से जुड़ने के लिए संपर्क अभियान चला रहे थे. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य लोगों को आत्मनिर्भर बनने हेतु उचित सलाह एवं प्रशिक्षण देना था. गीतू के पति को जब इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने गीतू को इससे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. पति का सहयोग मिला, तो गीतू ने भी घर में बने अचार, पापड़, बड़ी, सत्तू आदि की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और उसकी मार्केटिंग का फंडा सीख लिया. कुछ समय बाद ‘निदान’ संस्था से तरह-तरह के पापड़ बनाना सीखा और फिर खादी ग्रामोद्योग से मधुमक्खी पालन की भी ट्रेनिंग ली. इसके बाद धीरे-धीरे योजना बना कर काम करने लगीं. गांव की और महिलाएं भी उनके संपर्क में आने लगीं.

बैंक से एक लाख का लोन लेकर शुरू किया बिजनेस

प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद गीतू ने अपने गांव की 20 अन्य महिलाओं को भी इन सारे कामों का प्रशिक्षण दिया. उन सबके साथ जुड़ कर ‘उज्जवल महिला स्वयं सहायता समूह’ का निर्माण किया. उसके बाद बैंक से एक लाख रुपये का लोन लेकर अपने बिजनेस की शुरुआत की. एक मधुमक्खी पालन यूनिट स्थापित करने के अलावा घर में सामान बनाने से लेकर उनकी मार्केट तक की सारी जिम्मेदारी वह ही निभाती थीं. बाद में उनके पति भी उनके इस कारोबार से जुड़ गये. तब गीतू ने खुद को केवल प्रोसेसिंग और पैकेजिंग तक सीमित कर लिया. मधुमक्खी पालन की जिम्मेदारी पति को सौंप दी.

बड़े पैमाने पर काम को बढ़ाने के लिए हैं प्रयासरत

मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग लेने के बाद गीतू ने अपना खुद का प्रोसेसिंग यूनिट स्टार्ट करने के लिए बैंक से डेढ़ लाख रुपये का लोन लिया. वह बताती हैं- ”इस काम में मुझे इतना फायदा मिला कि मैंने तय समय से पहले ही अपना लोन चुका दिया. इस कारण से मुझे आगे भी जब दो बार लोन लेने की जरूरत पड़ी तो, मुझे आसानी से मिल गया. पहले की तुलना में आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो गयी है.”

आज गीतू और उनके पति दोनों मिल कर हर महीने 30-35 हजार रुपये की आमदनी कर लेते हैं. गीतू को बस अफसोस है तो इतना कि सरकार ने ट्रेनिंग तो दी, लेकिन प्रोडक्ट की मार्केटिंग में उसकी तरफ से कोई सहायता नहीं मिली. अगर इस दिशा में थोड़ी मदद मिल जाती, तो वे लोग और बेहतर कर पातीं.

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