औरत होना मतलब कमजोर होना नहीं
कमला कुमारी, सरकारी कर्मचारी, पटना मैं गोपालगंज के किसान परिवार में पैदा हुई थी. पिताजी धार्मिक व्यक्ति थे. मां एक सीधी-सादी घरेलू महिला. बचपन से ही पैर में पोलियो होने के कारण मैं बिना सहारे के चल-फिर पाने में असमर्थ थी. एक तो लड़की, उस पर से दिव्यांग. बावजूद माता-पिता ने कभी अहसास नहीं होने […]
कमला कुमारी, सरकारी कर्मचारी, पटना
मैं गोपालगंज के किसान परिवार में पैदा हुई थी. पिताजी धार्मिक व्यक्ति थे. मां एक सीधी-सादी घरेलू महिला. बचपन से ही पैर में पोलियो होने के कारण मैं बिना सहारे के चल-फिर पाने में असमर्थ थी. एक तो लड़की, उस पर से दिव्यांग. बावजूद माता-पिता ने कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं उनके लिए बोझ हूं. उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया.
जब आठवीं में थी, तो मुझे आगे की पढ़ाई के लिए बड़े भैया के पास पटना भेज दिया, क्योंकि गांव में उच्च स्तरीय पढ़ाई की सुविधा नहीं थी. भैया मुझे पढ़ाई में तो मदद करते ही थे, साथ ही आगे क्या करना है, यह भी गाइड करते थे. मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करते ही बिहार सचिवालय में क्लर्क की नौकरी मिल गयी. दो साल बाद शादी हो गयी. पति काम को लेकर ज्यादातर पटना से बाहर ही रहते थे, इसलिए घर-परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी अकेले मैनेज करती थी.
शुरू-शुरू में अकेले घर, ऑफिस और बच्चों को संभालना काफी मुश्किल लगा, लेकिन कहावत है न कि ‘भगवान भी उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी मदद आप करते हैं.’ मैंने हिम्मत नहीं हारी. पड़ोसन इतनी अच्छी मिली कि बच्चों को पालने में मदद की और ऑफिस में सहकर्मी इतने अच्छे मिले कि कभी मुझे अपनी कमी का अहसास ही नहीं होने दिया. सबने हमेशा सपोर्ट किया.
अगर औरत खुद को कमजोर मानती है, तो लोग भी उसे कमजोर समझते हैं. उसे खुद पर भरोसा है, तो कितनी भी बड़ी समस्या क्यूं न आये, उसे कोई कमजोर साबित नहीं कर सकता. औरत होने का मतलब कमजोर होना थोड़े न है. स्त्री तो शक्ति का प्रतीक है.