कोख होने की सजा…
-रजनीश आनंद- उच्चतम न्यायालय ने 32 सप्ताह की गर्भवती 10 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने का अनुरोध ठुकरा दिया है. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार किया जिसमें कहा गया है कि गर्भपात करना न तो इस लड़की के जीवन के लिए अच्छा है और न ही भ्रूण के लिए. […]
-रजनीश आनंद-
उच्चतम न्यायालय ने 32 सप्ताह की गर्भवती 10 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने का अनुरोध ठुकरा दिया है. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार किया जिसमें कहा गया है कि गर्भपात करना न तो इस लड़की के जीवन के लिए अच्छा है और न ही भ्रूण के लिए. न्यायालय ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य में ऐसे मामलों में तत्परता से निर्णय लेने के लिए स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित करे.
अनचाहे बच्चे को कैसे मिल पायेगा ममत्व
जो बच्ची गर्भपात के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है, वह कैसे उस बच्चे को मां का प्रेम दे पायेगी, यह सवाल आज हमारे सामने जरूर खड़ा है. उक्त लड़की की यह मनोस्थिति स्वाभाविक है, क्योंकि उसने इस बच्चे की चाह नहीं की थी, बल्कि उसे यह मिला है एक प्रताड़ना के रूप में. जब किसी व्यक्ति ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाया. चूंकि उस बच्ची के पास कोख था, इसलिए उसे यह अनचाहा गर्भ दुष्कर्म की सजा के रूप में मिल गया है. ऐसे में आखिर कैसे वह लड़की अपने बच्चे को मां का प्यार दे पायेगी?
क्या बच्चे को मिल पायेगा सुंदर जीवन
इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि एक बच्चे का जन्म एक जैविक क्रिया है, स्त्री-पुरुष के संयोग से एक भ्रूण का निर्माण होता है. भ्रूण के निर्माण में इस बात का कोई महत्व नहीं कि यह संयोग सहमति से हो रहा है या जबरन. लेकिन सहमति से और विवाह नामक संस्था के अधीन हुए सहवास के बाद जन्मे बच्चे को सुंदर जीवन दिलाने के लिए उसके माता-पिता जी जान लगा देते हैं और यह उनका दायित्व भी होता है. लेकिन एक अनचाहे बच्चे के लिए कैसे एक परिवार और उसकी मां पर इस बात का दबाव बनाया जायेगा कि वह उस बच्चे को सुंदर जीवन उपलब्ध कराये.
क्या सरकार इस बच्चे का जीवन संवारने के लिए उपाय करेगी
कोर्ट ने रेप पीड़िता को गर्भपात की इजाजत तो नहीं दी, लेकिन ऐसे में सवाल यह है कि अगर बच्चे को जन्म देने के बाद वह लड़की और उसका परिवार बच्चे को ना पालना चाहे, तो क्या सरकर उसके लिए कोई व्यवस्था करेगी?
क्या कहता है ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’
कानून के अनुसार किसी भी महिला का गर्भपात बिना उसकी इजाजत के नहीं हो सकता है, साथ ही मेडिकल रिपोर्ट की इसमें सबसे ज्यादा अहमियत होती है. 1971 में एक कानून बनाया गया था और इसका नाम रखा गया ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’. इस एक्ट में यह बताया गया है कि किन हालात में गर्भपात कराया जा सकता है. मसलन अगर महिला की जान गर्भ के कारण खतरे में हो, गर्भ में पल रहे बच्चे की विकलांगता का शिकार होने की आशंका हो, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर सक्षम न हो कि वह बच्चे को गर्भ में पाल सके, अगर महिला के साथ रेप हुआ हो और गर्भ ठहर गया हो. तब भी गर्भपात कराया जा सकता है. इस एक्ट के अनुसार 20 सप्ताह तक के गर्भ का ही गर्भपात संभव है.