हेपेटाइटिस वायरस जनित रोग है, जिसमें मुख्य रूप से हेपेटाइटिस बी और सी गंभीर माने जाते हैं, क्योंकि दोनों से लिवर को सीधा नुकसान होता है. आगे लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर तक होने की संभावना होती है. यह फैलनेवाला रोग है, जो असुरक्षित यौन संबंध, ड्रग एडिक्ट लोगों के इन्जेक्शन शेयर करने, मां से उसके बच्चे में इन्फेक्टेड खून के संपर्क में आने से होता है. 90 प्रतिशत लोगों काे पता ही नहीं होता कि वे संक्रमित हो चुके हैं. इससे बचाव के उपाय बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
डॉ कुमार पंकज प्रभात
फिजिसियन व डायबेटोलॉजिस्ट, रांची
हेपेटाइटिस दो प्रकार के होते हैं एक्यूट और कॉनिक. एक्यूट हेपेटाइटिस के लक्षण जल्दी नहीं पता चलते. यह दूषित भाेजन-पानी और मल करने के बाद सही से हाथ व पैरों की सफाई नहीं करने के कारण होते हैं. इससे मुख्य रूप से पाचन संबंधी समस्या देखने को मिलती है.
हेपेटाइटिस ए और इ इसी ग्रुप में आता है. खान-पान में सुधार लाकर और साफ-सफाई बरत कर इसे बिना दवाई दिये भी ठीक किया जा सकता है. कभी-कभी लक्षण के हिसाब से दवाई भी देनी पड़ती है. दूसरा प्रकार होता है क्रॉनिक का. यदि हेपेटाइटिस के वायरस छह माह से अधिक रोगी को परेशान करें, तो यह क्रॉनिक केस माना जाता है. हेपेटाइटिस बी, सी और डी इसी के अंतर्गत आते हैं. हेपेटाइटिस बी एचबीवी के कारण होता है. इसके लक्षण देर से पता चलते हैं. यह जॉन्डिस का प्रमुख कारण है. इसके प्रमुख लक्षणों में त्वचा और आंखों का पीलापन, गहरे रंग का मूत्र, अत्यधिक थकान, उल्टी और पेट दर्द हैं.
लिवर का सूजन है हेपेटाइटिस
यदि लिवर में सूजन रहता हो, तो संभव है कि आपको हेपेटाइटिस हो. यह इन्फेक्शन से होनेवाली अत्यधिक खतरनाक बीमारी है. यह वायरस और कभी-कभी बैक्टीरिया के कारण भी होता है. ग्रामीण इलाकोें में खुले में शौच करना इसका मुख्य कारण है.
तालाब या कुएं का पानी यदि संक्रमित हो जाये, तो यह पूरे गांव को बीमार कर सकता है. इसे एपिडेमिक फॉर्म कहते हैं. शहरों में पेयजल को पाइपों के माध्यम से घरों तक पहुंचाया जाता है. यदि पाइपों में रिसाव हो, तो नाले का गंदा पानी इसे भी दूषित कर देता है. इससे भी संक्रमण तेजी से फैलता है. इसके अलावा असुरक्षित यौन संबंध से, संक्रमित खून लेने से, टैटू बनवाने के दौरान इन्फेक्शन होने से और ड्रग्स के इन्जेक्शन लेने से होता है.
शराब के अत्यधिक सेवन से लिवर के डैमेज होने, मां से उसके बच्चे को, ड्रग्स की लत जिसमें एक ही सूई से कई लोगों को इन्जेक्शन या ड्रग्स का लेना, हॉस्पिटल में काम करनेवाले कर्मियों को और ब्लड ट्रांसप्लांट के दौरान इन्फेक्शन के फैलने से हेपेटाइटिस सी का खतरा होता है. हेपेटाइटिस सी का कोई इलाज नहीं है. वहीं, हेपेटाइटिस डी की बात की जाये, तो यह परजीवी वायरस है और हेपेटाइटिस बी के साथ ही जीवित रह सकता है. जब ये दोनों वायरस फैलते हैं, तो व्यक्ति को बचा पाना मुश्किल हो जाता है.
वैक्सीनेशन है बेस्ट उपाय
हेपेटाइटिस ए और बी से बचने के लिए टीका या वैक्सीनेशन बेस्ट उपाय है, पर ‘सी’ से बचने के लिए अभी तक वैक्सीनेशन नहीं आया है. इसलिए इससे बचने का एक ही उपाय है और वह है सावधानी. ड्रग्स इन्जेक्शन, इन्फेक्टेड ब्लड और असुरक्षित यौन संबंधों से बचाव कर हेपेटाइटिस सी के खतरे को दूर रखा जा सकता है. यदि क्रॉनिक हेपेटाइटिस हो जाये, तो इसकी जांच एचबीएसएजी टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, एचबीवी का डीएनए टेस्ट आदि से पता लगाया जा सकता है, पर ये जांच काफी महंगे होते हैं. इलाज के लिए एंटी वायरल मेडिकेशन किया जाता है.
वहीं, इस का वैक्सीनेशन 0,1,6 या 0,1,12 की तर्ज पर किया जाता है, जिसका मतलब होता है, पहले महीने, फिर एक माह बाद और फिर छह या 12 माह बाद वैक्सीनेशन कराना. वैक्सीनेशन का खर्च 200 रुपये के करीब आता है, पर क्रॉनिक स्टेज में एक टेस्ट का खर्च तीन से चार हजार रुपये आता है और यह हर तीन माह पर कराना पड़ता है. क्रॉनिक स्टेज में डीएनए लेवल का वैल्यू ज्यादा हो, तो लिवर सिराेसिस और लिवर कैंसर तक हो सकता है. जो व्यक्ति के मौत का कारण बनता है.
बातचीत : सौरभ चौबे
नशामुक्ति और स्वच्छता से दूर रखें हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस ए और इ के मामले 90% तक देखे जाते हैं. इसका संक्रमण दूषित पानी और भोजन से होता है. मानव मल में इनके वायरस पनपते हैं और शौच के बाद ठीक से हाथ-पैर नहीं धोने के कारण यह फैलते हैं. वहीं, हेपेटाइटिस बी और सी को क्रॉनिक इन्फेक्शन में के रूप में देखा जाता है, जो काफी खतरनाक है और लिवर सिरोसिस तथा लिवर कैंसर का रूप भी ले सकता है. 2015 में हेपेटाइटिस बी से विश्व में 8.87 लाख लोगों की मौत हो गयी थी.
नवजात में हेपेटाइटिस का कारण
90 प्रतिशत मामलों में यह बीमारी बच्चे को संक्रमित मां से होती है. घर पर अनहाइजिनिक प्रसव कराने से भी इसका खतरा बढ़ जाता है. आज भी गांवों में प्रसव घर में ही करा दिया जाता है और सबसे चिंताजनक स्थिति यह होती है कि वहां साफ-सफाई भी नहीं होती है. बच्चे को भी पुरानी फटी साड़ी या चादर में लपेट दिया जाता है. नली काटने के लिए भी नये ब्लेड का उपयोग कई बार नहीं होता. ऐसी परिस्थितियों में हेपेटाइटिस की आशंका बढ़ जाती है. प्रसव के दौरान मां का फ्ल्यूड अगर बच्चे के शरीर पर लगता है, तो संक्रमण तेजी से फैलता है. प्रसूता की देखरेख के दौरान एक ही टिश्यू या कपड़े से बच्चे और मां की सफाई भी कर दी जाती है. यह भी संक्रमण का कारण हो सकता है.
ए, बी और सी का अधिक खतरा
हेपेटाइटिस ए और सी संक्रमित व्यक्ति का स्लाइवा चुंबन, छूने या जूठा खिलाने से बच्चों में फैलता है. इन कारणों से बच्चे को बी और सी हेपेटाइटिस होता है. वहीं, ए का वायरस दूषित भोजन व पानी से और गंदगी से होता है. गांव में अक्सर लोग नदी के किनारे मल त्यागते हैं, जिससे ए हेपाटाइटिस का वायरस फैलता है और जॉन्डिस जैसी बीमारी फैलती है. गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि वे प्रसूता या बच्चे को छूने से पहले साबुन से हाथ जरूर धोएं. प्रसूता और नवजात के लिए अलग-अलग तौलिए का इस्तेमाल करें. आजकल हैंडवाश की जगह सेनेटाइजर का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, डॉक्टर हाथ धोने की सलाह देते हैं.
बीमारी के लक्षण
नवजात शिशु को जन्म के साथ पीलिया हो सकता है, जो सामान्य है. मगर, ये 15 दिन में ठीक नहीं हो, तो तत्काल डॉक्टर से जांच करानी चाहिए. भूख न लगना, चिड़चिडापन, बच्चा काफी देर तक रोता रहे ये इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसकी जांच के लिए एलएफटी, रेटिक काउंट, ब्लड ग्रुप, आरएच इंफलामेट्री टेस्ट कराया जा सकता है. अल्ट्रासाउंड भी कराया जा सकता है.
क्या है उपचार
सबसे जरूरी है साफ-सफाई. परिवार यदि किसी को हेपेटाइटिस हो, तो जरूरी है कि डाॅक्टर की सलाह से पूरे परिवार में सभी को टीका लगवाएं. यदि गर्भवती से नवजात को इन्फेक्शन न हो, तो उसका रूटीन चेकअप कराते रहें. यदि बीमारी हो, तो बच्चे को इम्यूनोग्लोबिन ड्रग दिया जा सकता है. जब बीमारी बढ़ती है, तो लिवर काम करना बंद कर देता है. शरीर पर चकत्ते, अंदरूनी रक्तस्राव, मल में खून आदि परेशानी आती है.
बातचीत : दीपा श्रीवास्तव