महिलाएं इस रिपोर्ट को जरूर पढ़े और छोड़े ये बेचारगी

ये रुदालियां खुद को हमेशा सबसे दुखियारी की तौर पर पेश कर एक बेचारगी का चोला ओढ़े रहती हैं. जहां मौका लगे, वे अपने आंसू से अगले को भिंगोने लगती हैं. इस तरह से प्रलाप-विलाप से उन्हें एक प्रकार की आनंद की अनुभूति होती है, एक नशा-सा अनुभव होता है जब अगला उनकी कहानी सुन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2017 12:00 PM
ये रुदालियां खुद को हमेशा सबसे दुखियारी की तौर पर पेश कर एक बेचारगी का चोला ओढ़े रहती हैं. जहां मौका लगे, वे अपने आंसू से अगले को भिंगोने लगती हैं. इस तरह से प्रलाप-विलाप से उन्हें एक प्रकार की आनंद की अनुभूति होती है, एक नशा-सा अनुभव होता है जब अगला उनकी कहानी सुन अफ़सोस जाहिर करता है. समस्या के हल को ढूंढ़ने की जगह ये सहानुभूति कमाने की फिराक में ज्यादा रहती हैं.
प्यारी महिलाओं, सप्रेम नमस्कार.
आज मैं उन महिलाओं को यह पत्र प्रेषित कर रही हूं, जो अपने दुखों-परेशानियों का रोना रोती रहती हैं. दरअसल, हम औरतों के साथ एक ठप्पा लगा है कि हम बहुत जल्दी रोती हैं. एक भ्रांति है कि हम बहुत संवेदनशील होती हैं, सो जल्दी से रो देती हैं. बहुत-सी महिलाएं होती हैं, जो रहीम के इस दोहे पर यकीन करती हैं-
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय। सुनि इठलैहैं लोग सब,
बांटि न लैहैं कोय ॥
यानी, अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए. दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं, पर बांटता कोई नहीं.
सच पूछा जाये तो दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जिसे कोई दुख या परेशानियां न होंगी. परंतु हम स्त्रियों में ही ऐसी बहुत-सी होती हैं, जिन्हें अपनी परेशानियों को दूसरे से बोलने में बहुत आनंद प्राप्त होता है. अगला जब अफसोस प्रकट करता है या उनकी बेचारगी पर तरस दिखाता है, तो उन्हें एक प्रकार से आनंद प्राप्त होता है. वे और बढ़-चढ़ कर अपनी परेशानियों का बखान करने लगेंगी, हर किसी से अपना रोना रोती रहती होंगी. क्षमा चाहूंगी कि आपके दुखों को मैं ‘रोना रोना’ बोल रही हूं.
दोस्तो, याद आने लगी होंगी आपको अपने आस-पास की कोई महिला, जो आपसे जब मिलती होगी, अपना दुखड़ा सुनाये बिना टलती न होगी.
कुछ छोटी से लेकर हर बड़ी परेशानियों का ठीकरा अपने किस्मत पर फोड़ती हुई आपको हर बार वही कहानी रिपीट करती होंगी. अपने वर्तमान को कोसती होंगी.
सखियो, ये रुदालियां खुद को हमेशा सबसे दुखियारी की तौर पर पेश कर एक बेचारगी का चोला ओढ़े रहती हैं. जहां मौका लगे, वे अपने आंसू से अगले को भिंगोने लगती हैं.
इस तरह से प्रलाप-विलाप से उन्हें एक प्रकार की आनंद की अनुभूति होती है, जब अगला उनकी कहानी सुन अफसोस जाहिर करता है. कभी-कभी तो बेहद छोटी-छोटी बातें जैसे कामवाली बाई का न टिकना या नल का हमेशा टपकना या स्टोव का बार-बार खराब हो जाने को भी ये अपने टूटे किस्मत से जोड़ देंगी. समस्या के हल को ढूंढ़ने की जगह ये सहानुभूति कमाने की फिराक में ज्यादा रहती हैं. बहुत सारी महिलाएं हर गलत बात का जिम्मेदार अपने पति को ठहरा कोसती रहेंगी.
खैर… कहने का सार यह है कि ऐसी स्त्रियां रोना तो रोती हैं, पर अपनी समस्या का हल नहीं निकालती हैं, क्योंकि उनसे उनका वह अनकहा अंदरुनी आनंद, जिससे वे स्वयं भी अनजान रहती हैं, के छिनने का डर जो होता है.
सखियों मैं आपसे यही कहना चाहूंगी कि अब ‘ग्रो अप’ यार! क्यूं अपनी आंसुओं को बेवजह बहा कर संपूर्ण नारी जाति को बदनाम कर रही हो. अरे रोने की जगह समस्या के हल को खोजो-सोचो. आपको क्यूं नहीं समझ आता कि आपके पीठ पीछे लोग आप पर हंसते हैं. हर कोई हंसता-मुस्कुराता व्यक्ति की संगत चाहता है, लोग कतराने लगेंगें आपसे, बाय गॉड!
कहने का मतलब यह है कि आपको अपनी मदद स्वयं करनी होगी. याद रखिए, कोई भी दूसरा आपकी मदद एक लिमिट तक ही कर सकता है. अपना संबल स्वयं ही बनना होता है. सो आज से और अभी से यह बेचारगी छोड़िए. मेरा विश्वास कीजिये, जहां आपने अपना रोना छोड़ा, एक नवीन ‘स्वयं’ का उदय आप पायेंगी.

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