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स्वाइन फ्लू से डरें नहीं, ऐसे करें बचाव
स्वाइन फ्लू को हौव्वा न बनाएं. यह किसी को भी हो सकता है. पिछले दिनों मशहूर एक्टर आमिर खान और उनकी पत्नी किरण राव को भी स्वाइन फ्लू हो गया था. यदि बरसात के मौसम में आपको सर्दी, खांसी और बुखार हो और यह दो-तीन दिनों में ठीक न हो, तो एच1एन1 की जांच करा […]
स्वाइन फ्लू को हौव्वा न बनाएं. यह किसी को भी हो सकता है. पिछले दिनों मशहूर एक्टर आमिर खान और उनकी पत्नी किरण राव को भी स्वाइन फ्लू हो गया था. यदि बरसात के मौसम में आपको सर्दी, खांसी और बुखार हो और यह दो-तीन दिनों में ठीक न हो, तो एच1एन1 की जांच करा लें. यदि रिपोर्ट पॉजिटिव हो, तो हॉस्पिटल में भर्ती होकर इलाज कराएं. इस बीमारी से कैसे खुद को और परिवार को बचाकर रखें, इस बारे में बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
स्वाइन फ्लू सूअर में पाये जानेवाले इन्फ्लूएंजा वायरस से फैलनेवाला रोग है. बरसात और उसके बाद सर्दियों के दिनों में इसका प्रकोप बढ़ जाता है.
शुरुआती दिनों में यह संक्रमित सूअर के संपर्क में आने से इंसानों में फैला. बाद में जागरूकता की कमी और रोकथाम के उपाय नहीं किये जाने के कारण यह इंसानों से इंसानों में भी फैलने लगा. मौजूदा हालात में स्वाइन फ्लू के वायरस ने अपना स्ट्रेन बदल लिया है, इसलिए अब यह सूअर के संपर्क में नहीं रहनेवाले लोगों के बीच भी वायरल होता जा रहा है.
यह नाक से सांस लेने के दौरान शरीर में घुसता है और फेफड़े पर अटैक करता है, जिस कारण रेस्पिरेटरी सिस्टम खराब होने लगता है. सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और समय पर इलाज न होने पर निमाेनिया हो जाता है. कई बार पूर्व में अन्य रोगों से ग्रसित लोगों में इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण उनकी मौत भी हो जाती है.
नाॅर्मल फ्लू के लक्षण
स्वाइन फ्लू के लक्षण आम फ्लू की तरह ही होते हैं, मसलन सर्दी, बुखार, जुकाम के साथ नाक से पानी आना, सांस लेने में तकलीफ, शरीर में दर्द, डायरिया, उल्टी आना या जी मिचलाना, भूख न लगना, कमजोरी महसूस करना आदि. अमूमन नॉर्मल फ्लू तीन से चार दिनों में ठीक हो जाता है, जबकि कुछ लोगों में इसका असर एक सप्ताह से अधिक रह सकता है.
वहीं, स्वाइन फ्लू के लक्षण नॉर्मल फ्लू की तरह ही होते हैं, पर इसका असर 15 दिनों तक या उससे अधिक भी रह सकता है. स्वाइन फ्लू से निमोनिया का खतरा होता है, जिसका समय पर इलाज मुमकिन है. हालांकि, ज्यादातर लोग दवा दुकान से सर्दी-जुकाम के लक्षण के अनुसार दवा खा लेते हैं. ऐसे में जब स्वाइन फ्लू के वायरस पूरी तरह जकड़ने लगते हैं, तब लोग उसका इलाज कराने अस्पताल में पहुंचते हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार स्वाइन फ्लू मुख्य रूप से मस्तिष्क, नाक, गला, फेफड़ा, किडनी, लिवर आदि को नुकसान पहुंचाता है. और निमोनिया का मुख्य कारण है. जिन लोगों को पहले से क्रॉनिक डिजीज जैसे- डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम, हाइ या लो ब्लड प्रेशर या अस्थमा आदि हो उन पर इस वायरस का असर ज्यादा खतरनाक होता है. उनका इम्यून सिस्टम पहले से कमजोर होता है और इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण उनकी तबीयत और खराब होने लगती है.
एच1एन1 का टीका लगाना है जरूरी
स्वाइन फ्लू बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को ज्यादा परेशान करता है, क्योंकि वयस्कों की अपेक्षा उनका इम्यून पावर कमजोर होता है. इसलिए यदि इस मौसम में आपको या परिवार में किसी को भी फ्लू के कारण सर्दी, बुखार, सिर दर्द, शरीर में दर्द, उल्टी, पेट खराब, डायरिया के लक्षण दिखें, तो तुरंत उन्हें किसी अच्छे फिजिसियन से दिखाएं. साथ में हो सके, तो एक बार एच1एन1 की जांच करा लें.
सुरक्षा और वैक्सीनेशन है इलाज
पहली बार भारत में जब 2009 में स्वाइन फ्लू यानी एच1एन1 वायरस की पुष्टि हुई थी, तब बरसात का मौसम था. यह वायरस दो बार एक्टिव होता है. ठंड और बरसात के सीजन में. कुछ वर्षों से यह वायरस इस मौसम में वातावरण में मिल जाता है.
इसलिए स्वाइन फ्लू से बचने के लिए हर साल वैक्सीनेशन जरूरी है. आजकल एच1एन1 वायरस के साथ एच3एन2 वायरस भी सक्रिय हो गये हैं. ऐसे में कई बार पता नहीं चल पाता है कि कौन-सा वायरस है. इसलिए जब शुरू में ही सांस लेने में तकलीफ हो, तो इलाज के लिए पहुंचना चाहिए.
यदि जांच पॉजिटिव आये, तो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराएं और डॉक्टर की देखरेख में इलाज कराएं. कोशिश करें की परिवार में सभी को एच1एन1 का टीका लगवाएं. यह टीका 70 से 80 प्रतिशत तक वायरस को फैलने से रोकता है. स्वाइन फ्लू का सीधा कोई इलाज नहीं होता, उसके लक्षणों के हिसाब से ही उसकी दवाई दी जाती है. इसलिए वैक्सीनेशन इससे बचने का अहम उपाय है.
नाक पर मास्क लगाना है जरूरी
स्वाइन फ्लू के एक भी मरीज का पता लगते ही मोहल्लेवाले मास्क लगाना शुरू कर देते हैं. इससे लोगों में हड़कंप मच जाता है, पर घबराएं नहीं. यह सावधानी बरतने के लिए जरूरी है क्योंकि इन्फ्लूएंजा के वायरस ज्यादातर संक्रमित व्यक्ति के छींकने से हवा में फैल जाते हैं और फिर आस-पास रहनेवाले व्यक्तियों को संक्रमित करते हैं.
इसलिए मास्क लगाने से वायरस सांस लेने पर भी शरीर के अंदर नहीं जा पाते हैं. इसके साथ ही वैसी आम लोगों की उपयोग वस्तुएं, जिन्हें हर कोई उपयोग में ला सकता है, जैसे-दरवाजे का हैंडल, कीबोर्ड, पानी का बोतल, टीवी का रिमोट और मोबाइल फोन आदि के उपयोग करने से बचें और यदि उपयोग करते हैं, तो उसके बाद अपने नाक को न छूएं.
हो सके तो सैनेटाइजर यूज करें. कुछ भी खाने-पीने की वस्तु को ढककर रखें. कोशिश करें कि ताजा और सुपाच्य भोजन करें.
एंटीबॉडी नहीं बनाने से होती है मौत
जब मनुष्यों में नॉर्मल फ्लू होता है, तो वह दो-तीन दिन में ठीक हो जाता है, इसका कारण है शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना, जिसे एंटीबॉडी भी कहते हैं. स्वाइन फ्लू के मामले में मनुष्य के शरीर में सूअर में पाये वायरस का एंटीबॉडी नहीं बन पाता है.
इसके लिए वैक्सीनेशन ही एक मात्र उपाय है. क्रॉनिक डिजीज, बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं में इम्यून सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है, इसलिए उनके शरीर में काफी समय तक एंटीबॉडी नहीं बन पाता है, जिस कारण मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है और कई बार उसकी मौत हो जाती है.
प्रस्तुति: सौरभ चौबे
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