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अगर आपको है सांस संबंधी रोग है तो करें ये मुद्रासन, होगा लाभ
सांस से जुड़ा कोई भी बीमारी,जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होती है. इससे फेफड़े तक साफ हवा पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती और पीड़ित व्यक्ति सांस के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता है. सांस ही प्राण का आधार […]
सांस से जुड़ा कोई भी बीमारी,जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होती है. इससे फेफड़े तक साफ हवा पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती और पीड़ित व्यक्ति सांस के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता है.
सांस ही प्राण का आधार है, इसलिए सांस के उखड़ने या असंतुलित होने की स्थिति लंबे समयतक बनी रहे, तो मृत्यु को भी प्राप्त होने की आशंका रहती है. सांस संबंधी इन रोगों में श्वसनी मुद्रा बहुत कारगर है.
यह मुद्रा वरुण मुद्रा, सूर्य मुद्रा और आकाश मुद्रा का समन्वय है. इससे श्वसन नली में जमा श्लेष्मा बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी आती है. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से सांस छोड़ते समय अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता और धीरे-धीरे श्वसन रोग पूरी तरह विदा हो जाते हैं. सांस के रोगियों को बायीं करवट ही लेटना चाहिए और पानी का सेवन योगाचार्य की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए.
कैसे करें: कनिष्ठा और अनामिका ऊंगलियों के शीर्ष को अंगूठे की जड़ से लगाएं. मध्यमा उंगली को अंगूठे के शीर्ष से मिलाएं. तर्जनी को बिल्कुल सीधी रखें.
कितनी देर : 5-5 मिनट पांच बार.
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