कमर व कंधा दर्द से है परेशान तो ये आसन आपके लिए है ””रामबाण””

द्विकोणासन द्विकोणासन मुख्य रूप से खड़े होकर किया जानेवाला अभ्यास है. ‘द्वि’ का अर्थ है ‘दो’. अत: इस आसन द्वारा हम शरीर को इस तरह मोड़ते हैं कि शरीर में दो कोण बने. यह अासन मेरुदंड के ऊपरी भाग और स्कंधास्थि के बीच की पेशियों को मजबूत बनाता है. इससे वक्ष व गर्दन मजबूत होते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2017 1:50 PM
द्विकोणासन
द्विकोणासन मुख्य रूप से खड़े होकर किया जानेवाला अभ्यास है. ‘द्वि’ का अर्थ है ‘दो’. अत: इस आसन द्वारा हम शरीर को इस तरह मोड़ते हैं कि शरीर में दो कोण बने. यह अासन मेरुदंड के ऊपरी भाग और स्कंधास्थि के बीच की पेशियों को मजबूत बनाता है. इससे वक्ष व गर्दन मजबूत होते हैं.
विधि : जमीन के ऊपर मैट बिछा लें. उसके ऊपर सीधे खड़े हो जाएं. दोनों पैरों को यथा संभव एक फिट की दूरी पर रखें. दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाते हुए ऊंगलियों को आपस में फंसा लें. यह उस अभ्यास की प्रारंभिक स्थिति है.
बिना जोर लगाये हाथों को इस तरह मोड़ें कि हथेलियां उर्ध्वमुखी तथा शरीर के दूर हो जाये. ध्यान रहे उंगलियां आपस में फंसी रहें. अब अपने कमर के पास से धड़ को सामने की ओर झुकाएं, साथ-ही-साथ अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे ऊपर की ओर उठाते हुए तानें. अपने हाथों को और ऊपर की ओर तानने का प्रयास करें, कंधों को पीछे की तरफ खींचते जाएं. लेकिन ध्यान रहे कि अभ्यास के क्रम में बिना किसी कारण के अनावश्यक जोर नहीं लगाना चाहिए. भुजाएं ऊत्तोलन का काम करती हैं और कंधों एवं वक्ष में होनेवाले खिंचाव को द्विगुणित करती जाती हैं.
जितना संभव हो सके सामने की ओर देखने का प्रयास करें, जिससे आपका चेहरा जमीन के समानांतर हो जाये. कुछ समय तक आप अंतिम स्थिति में रहें और फिर सीधी या प्रारंभिक स्थिति में वापस लौट जाएं. अभ्यास के क्रम में आपकी भुजाएं लिवर की तरह कंधों और छाती में खिंचाव को बढ़ाने का कार्य करेगी.
पांच चक्र से करें शुरुआत
शुरुआती दिनों में इस अभ्यास के पांच चक्र काफी हैं, पर जैसे-जैसे इसमें आप पारंगत होते जाएं, अभ्यास के चक्रों की संख्या बढ़ा कर आठ से 10 बार तक कर सकते हैं.
अभ्यास के क्रम में जब आप खड़े होते हैं, तब सांस को अंदर की तरफ लें और जब आप सामने की तरफ झुकते हैं, तो उस समय सांस को बाहर की तरफ छोड़ते हैं. जब आप वापस प्रारंभिक स्थिति में लौटते हैं, उस समय पुन: सांस को अंदर की तरफ लें. अंतिम स्थिति में अपने सांस को थोड़ी देर रोकें.
सजगता : शारीरिक गतिविधि, श्वसन तथा अंतिम अवस्था में अपने कंधे और छाती के प्रसार में वर्धन के प्रति सजग रहें. आध्यात्मिक स्तर पर आप इस अभ्यास के दौरान अपने अनाहत चक्र के प्रति सजग रहें.
सीमाएं : जिस व्यक्ति को एकंध-संधि में तीव्र पीड़ा हो, वैसे व्यक्ति को इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए. साथ ही जिनको सर्वाइकल, कमर में दर्द, सायटिका के कारण दर्द बढ़ा हुआ हो, छह महीने के अंदर किसी प्रकार का शारीरिक शैल्य चिकित्सा हुई हो, तो वैसे लोगों को इस अभ्यास से बचना चाहिए. गर्भावस्था में भी इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए. माइग्रेन या आंखों से जुड़ी कोई समस्या हो, तो भी यह अभ्यास न करें.
लाभ
इस आसन सेछाती अनपेक्षित रूप से फैलता है. इससे स्नायू और मांसपेशियां ढीलें और शिथिल होते हैं. गर्दन और मेरुदंड की हड्डियां मजबूत होती हैं. इससे अभ्यास में कंधों और जोड़ों के जकड़न वाले हिस्सों में लचीलापन आ जाता है. वैसे लोगों को खास कर इसका अभ्यास करना चाहिए, जिन्हें शरीर के ऊपरी भाग में जकड़न की समस्या हो. यह मस्तिष्क में रक्त संचार को सुचारू करने के लिए भी लाभदायक हैं.

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