आप, आपका नन्हा और शुरुआती दिनों की कुछ जरूरी बातें
ऑपरेशन थिएटर में जाते वक्त मन में बहुत डरानेवाले ख्याल थे. पता नहीं, कैसा होता होगा ऑपरेशन! कितना दर्द होता होगा, बच्चा सही-सलामत बाहर आयेगा या नहीं, नॉर्मल बेबी होगा या नहीं… ढेरों सवाल और ख्यालों के बीच मैं अपने बच्चे के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी. कमर में एनेस्थीसिया लग चुका था. […]
ऑपरेशन थिएटर में जाते वक्त मन में बहुत डरानेवाले ख्याल थे. पता नहीं, कैसा होता होगा ऑपरेशन! कितना दर्द होता होगा, बच्चा सही-सलामत बाहर आयेगा या नहीं, नॉर्मल बेबी होगा या नहीं… ढेरों सवाल और ख्यालों के बीच मैं अपने बच्चे के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी. कमर में एनेस्थीसिया लग चुका था. छाती के नीचे का हिस्सा महसूस होना बंद हो चुका था. हां, दिमाग और आंखें खुली हुई थीं.
एक हाथ में ब्लड प्रेशर और दूसरे हाथ में हार्ट बीट चेक करने के लिए मशीनों के कनेक्शन थे. दो सीनियर व दो जूनियर डॉक्टर और दो नर्स ऑपरेशन की सारी तैयारियों के बाद प्रेयर कर रही थीं. प्रेयर के बाद उन्होंने पूछा- “तुम तैयार हो?” मैंने कहा- हां. मैं न सिर्फ तैयार थी, बल्कि उतावली भी कि महीनों जिसका इंतज़ार किया, वह अब मुझसे मिलनेवाला है. वह बेटा है या बेटी, इसका जवाब कुछ ही मिनटों में मिलनेवाला था. मैं ऑपरेशन लाइट्स के मिरर में ऑपरेशन का धुंधला-सा रूप देख पा रही थी और कुछ ही मिनटों में मैंने खून से लथपथ अपने बच्चे को अपने अंदर से निकलता देखा.
मेरे लिए उस वक़्त समय रुक गया था जब मैंने पहली बार उसकी आवाज़ सुनी, उसे देखा. अपनी नन्ही-नन्ही आंखों से वह अचंभित होकर इस दुनिया को देख रहा था और मैं उसे.
वह समय का एक ऐसा हिस्सा था, जिसने अपने आपको कैद कर लिया था, पर असल में यह कोई हिंदी फिल्म नहीं थी, जिसमें ऐसे ही हसीन लम्हे में फिल्म “द एंड” हो जाती है. यह असल ज़िंदगी है और मां बनने के लिए होनेवाली अग्नि परीक्षा उस नन्हे के साथ कुछ ही समय में शुरू होनेवाली थी. ऑपरेशन थिएटर से बाहर आकर जब मैं वार्ड में आयी तब तक एनेस्थीसिया का असर धीमे-धीमे कम हो रहा था और दर्द हल्का-हल्का महसूस होने लगा था. मैं अभी न पानी पी सकती थी, न उठ-बैठ सकती थी.
अगले चौबीस घंटे मुझे ऐसे ही बिस्तर पर लेटे-लेटे बिना हिले-डुले बिताने थे. बच्चा बाहर आ चुका था, इसलिए माहवारी भी शुरू हो चुकी थी. चूंकि मैं अपने आप हिल भी नहीं सकती थी, इसलिए खून से लथपथ पेड्स भी नर्स ही आकर बदलती थी. मेरे बच्चे को कुछ समय के लिए बच्चों के वार्ड में रखा था. बच्चा स्वस्थ हुआ था, इसलिए शाम को उसे पहली बार मेरे पास दूध पिलाने भेजा गया.
आप भी अगर एक मां बननेवाली हैं, तो बता दूं कि बच्चे पैदा होने के समय अपने साथ इतना फैट लेकर आते हैं कि वे 48 घंटे यानी दो दिन बिना कुछ पिये रह सकते हैं.
तो ऐसे में यदि आपका अपना दूध नहीं निकल पा रहा है या बच्चा दूध पीना नहीं सीख पा रहा है, तो घबराएं नहीं और न ही उसे फॉर्मूला मिल्क देने की जल्दबाज़ी करें. तसल्ली रखें और कम से कम छः माह तक सिर्फ मां का दूध पिलाती रहें. हालांकि मां का दूध और फॉर्मूला मिल्क पर एक चर्चा विस्तार से मैं अपने अगले लेख में करूंगी. यहां बस इतना ही कि पैदा होने के शुरुआती दिनों में किसी भी बच्चे को दो-तीन दिनों का समय लगता है जब वह ठीक से मां का दूध पीना सीख पाता है.
जब मेरे बच्चे ने पहली बार मेरा दूध पिया तब मैं हिल भी नहीं सकती थी. दोनों हाथों में ड्रिप्स लगी हुईं थीं और बाकी शरीर एनेस्थीसिया से सुन्न था. तब एक रिश्तेदार ने मदद की और कुछ घूंट मैं उसे दे पायी. चौबीस घंटे में बच्चा सीखने लगा था कि उसे उसका खाना कैसे मिलेगा.
वहीं से शुरू हुई मां होने की पहली जिम्मेदारी. ऑपरेशन के बाद के थके शरीर और दर्द को जब आप नजरअंदाज करके हर डेढ़-दो घंटे में बच्चे को दूध पिलाने उठते हैं, बैठते हैं तो शरीर को कष्ट ज़रूर होता है, लेकिन मन को संतुष्टि होती है. इस समय में मेरे लिए जो सबसे ज्यादा सहायक हुए, वे थे मेरे पति, जो अस्पताल के उन तकलीफों भरे दस दिनों में बच्चे और मेरे साथ जी-जान से लगे रहे. बच्चे के शुरुआती महीने आपके रतजगे होंगे, जिनके लिए आपको हर हाल में तैयार रहना होगा.
शुरुआती दिनों में बच्चा बहुत ज्यादा मल विसर्जित यानी पॉटी करता है. यहां भी यदि जानकारी नहीं है, तो आप घबरा सकते हैं. मैं भी घबरा जाती थी. जब एक दिन लगभग 20 बार मेरा बेटा मल विसर्जित करता था. बच्चे के शुरुआती दिनों में उसके मोशन कुछ हद तक दस्त जैसे पतले हो सकते हैं, उनका रंग भी हरा, गहरा पीला और कई बार गहरा कत्थई भी हो सकता है.
जान लें, इसके लिए कभी भी कोई दवा देने में जल्दबाजी न करें, क्योंकि पैदा होने के तीन से चार दिन इस तरह का मोशन होना सामान्य माना जाता है. शुरुआती तीन महीने तक भी यदि बच्चा दिन में छः से सात बार मोशन करता है, तो वह भी सामान्य है. बस ध्यान रखें कि आपको मोशन और डायरिया का अंतर पता हो. यहां एक और ज़रूरी बात है कि आपके बच्चे का पेट भर रहा है या नहीं, यह आप कैसे जानेंगे?
उसका सबसे आसन तरीका है उसकी लघुशंका यानी सुसु को काउंट करना. बच्चे का पेट यदि भर रहा होगा तो वह शुरू के दिनों में कम से कम 10-12 बार सुसु करेगा.
एक घंटे में दो से तीन बार सुसु करना अच्छा माना जाता है. कई बार बच्चे हर 15 मिनट में भी सुसु करते हैं, जो पूरी तरह सामान्य है. ध्यान रखें, बच्चे की सुसु या पॉटी को कम कराने के लिए किसी भी तरह का देसी या दवाईवाला इलाज तब तक न करें जब तक बच्चा किसी बीमारी का इंडिकेशन नहीं देता. क्योंकि बच्चे के ये मोशन अपने आप धीरे-धीरे कम होते जाते हैं, जो सामान्य प्रक्रिया है.
हमारे देश में बच्चे को घुट्टी देने का चलन है, कई जगह वह इसलिए भी दी जाती है ताकि बच्चे के मोशन कम हो जाएं या बंध जाएं और वह दिन में एक से दो बार ही पॉटी करने लगे. मैं इस प्रक्रिया का समर्थन नहीं करती, क्योंकि छः माह से पहले बच्चे को मां के दूध के अलावा कुछ भी देना बच्चे के प्राकृतिक विकास में खलल डाल सकता है. आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छे से विकसित तभी होगी जब आप उसे छः माह तक सिर्फ मां के दूध पर रखेंगे.
इस लेख में बस इतना ही. क्यों WHO ने छः माह तक सिर्फ मां का दूध अनिवार्य किया, जानने के लिए अगले हफ्ते आइएगा यहीं. क्रमश: