अचानक अधिक व्यायाम हृदय के लिए है घातक

हृदय के लिए व्यायाम जरूरी है. व्यायाम से हम तनाव से भी बच सकते हैं, जो हृदय रोगों का बड़ा कारण है. जो लोग सप्ताह में एक या दो बार अत्यधिक व्यायाम करते हैं, वे अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, क्योंकि शरीर अचानक पड़े इस अतिरिक्त भार के लिए तैयार नहीं होता. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2017 1:27 PM
हृदय के लिए व्यायाम जरूरी है. व्यायाम से हम तनाव से भी बच सकते हैं, जो हृदय रोगों का बड़ा कारण है. जो लोग सप्ताह में एक या दो बार अत्यधिक व्यायाम करते हैं, वे अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, क्योंकि शरीर अचानक पड़े इस अतिरिक्त भार के लिए तैयार नहीं होता.
रक्त संचार प्रणाली फेफड़े और हृदय से संचालित होती है. पुरुष का हृदय 350 ग्राम, जबकि स्त्री का 250 ग्राम वजनी होता है. हृदय एक पंप की तरह है, जो शरीर में फेफड़ों के बीच, बायीं ओर स्थित होता है. हमारा हृदय रोजाना करीब 15 हजार लीटर खून पंप करता है.
सबसे मजबूत मांसपेशी हृदय की ही होती है. जिनका वजन अधिक होता है, उनके हृदय को अधिक श्रम करना पड़ता है. जो व्यायाम नहीं करते और केवल भोजन को नियंत्रित रखने पर जोर देते हैं, उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. सम्यक व्यायाम से ही हमारा हृदय ठीक से काम करने में सक्षम हो सकता है.
गोमुखासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय के पीछे की थायमस ग्रंथि प्रभावित होती है. रोग प्रतिरोधक सफेद रक्त कणिकाएं इसी से बनती हैं.
विधि : बैठ कर दायें पैर को इस प्रकार मोड़ें कि एड़ी गुदा के नीचे आ जाये. फिर बायें पैर को मोड़ कर इस प्रकार रखें कि बायां घुटना दायें घुटने पर आ जाये तथा बायीं एड़ी दायें नितंब के पास आ जाये. बायें हाथ को ऊपर से तथा दायें हाथ को नीचे से कमर पर लाएं और दोनों हाथों की मुड़ी हुई उंगलियों को इंटरलॉक कर लें.
सांस सामान्य और गर्दन सीधी रखें. ऊपरवाली भुजा का कंधे से कोहनी तक का भाग ऊपर कान से सटा रहे. कुछ देर इस अवस्था में रुकें और फिर इसे ही दूसरे पैर से दुहराएं. ध्यान मूलाधार चक्र पर रहे.
वज्रासन : इससे हृदय सबल होता है और हृदय की पंपिंग प्रणाली मजबूत होती है. इस आसन से पिंडलियों पर भी दबाव बनता है, जिससे अशुद्ध रक्त स्वतः हृदय की ओर जाने लगता है.
विधि : आसन पर बैठ कर, दोनों पैरों के पंजों और एड़ियों को मिलाएं तथा पंजों को तानें. घुटनों को मोड़ कर पैरों को नितंबों के नीचे ले आएं. एड़ियां खुली रहें, लेकिन पैरों के अंगूठे मिले रहें. दोनों नितंब एड़ियों के बीच खाली स्थान पर रहें.
दोनों हाथों को घुटनों पर रखें. कमर और गर्दन एकदम सीध में रहें. ध्यान मणिपुर चक्र पर रहे.
मस्त्सासन : इससे दमा तथा श्वसन सहित फेफड़ों के कई रोग दूर होते हैं. यह दो तरीकों से किया जाता हैः पद्मासन में और पांव सीधा रख कर.
विधि : पीठ के बल लेटकर पद्मासन लगाएं. दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें. माथा जमीन से सटाएं. इस स्थिति में दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़कर कुछ देर रुकें. फिर गर्दन सीधी करें, दोनों हाथों को नितंबों के नीचे रखें.
शरीर को ऊपर उठाएं. गर्दन को तीन-चार बार दायें-बायें व क्लॉकवाइज तथा एंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं. फिर विश्राम मुद्रा में आ जाएं. पांव सीधा रख कर करने के लिए, पीठ के बल लेट कर दोनों पैरों की एड़ियों और पंजों को मिलाएं. गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर सिर को धरती से लग जाने दें. रीढ़ को थोड़ा ऊपर उठाएं और इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें. थोड़ी देर बाद वापस आ जाएं.
खास बात : अभ्यास में नये लोगों को किसी कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करना चाहिए.
उष्ट्रासन
इससे छाती चौड़ी होती है. फेफड़ों में लचीलापन आता है. हृदय की ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा सांस रोकने की क्षमता बढ़ती है. हृदय रोगों को ठीक करने में यह बहुत उपयोगी है.
विधि : वज्रासन में बैठ कर घुटनों के बल इस प्रकार खड़े हो जाएं कि घुटनों और पंजों के बीच कंधों जितना अंतराल रहे. पंजे लेटे हुए हों. दोनों हाथों को कमर पर रखें, ताकि अंगूठे रीढ़ के निचले भाग पर मिल जाएं. चारों उंगलियां आगे की तरफ हों. सांस भरते हुए कमर के निचले भाग से धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकें. हथेलियों को तलवों पर रखें. कुछ पल बाद वज्रासन में वापस आ जाएं.

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