लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे रहीं बौद्ध धर्म की नन

हिमालय के सीमावर्ती इलाकों की बौद्ध नन लद्दाख के गांवों में लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखा रहीं हैं. ताकि वे समाज में आत्मनिर्भर हो कर रह सकें. बौद्ध धर्म के द्रपका वंश की नन अपनी शक्ति, एथलेटिक क्षमता और मानवतावादी राहत कार्य के लिए जानी जाती हैं. द्रपका वंश का भारत में सबसे प्रमुख […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2017 11:31 AM

हिमालय के सीमावर्ती इलाकों की बौद्ध नन लद्दाख के गांवों में लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखा रहीं हैं. ताकि वे समाज में आत्मनिर्भर हो कर रह सकें.

बौद्ध धर्म के द्रपका वंश की नन अपनी शक्ति, एथलेटिक क्षमता और मानवतावादी राहत कार्य के लिए जानी जाती हैं. द्रपका वंश का भारत में सबसे प्रमुख बौद्ध वंश है. इस वंश के 999 वर्ष पूरे होने पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था.

लद्दाख के परंपरागत गांवों में ये नन गांवों की लड़कियों की शिक्षा के लिए जागरूक कर रहीं हैं. एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार, जब जिग्मे रिगजिन 19 वर्ष की थी तब उसने अपने पैरेंट्स से पूछा कि क्या वह नन बन सकती है.

लेकिन, उन्होंने मना कर दिया और कहा कि नन मठों केवल रसोईघर का काम और बर्तन, कपड़े धोने का काम करती हैं. तुम क्यों नन बनाना चाहती हो? लेकिन बाद में जिग्मे ने अपनी मां को मना लिया. जिग्मे अब बौद्ध धर्म के द्रपका वंश की नन हैं.

ग्यालवांग द्रपका जो द्रपका लिंगे के प्रमुख हैं, उन्होंने बताया कि नन का पारंपरिक जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं. ध्यान, गायन, जप, प्रार्थना करना यह सकारात्मक जीवन शैली है और नकारात्मक पहलू साधुओं के कपड़े साफ करना उन्हें खाना खिलाना और बर्तन साफ करना है.

इन्होंने सदियों पुराने प्रतिबंध को तोड़ कर नन को दुनिया देखने, एथलेटिक प्रशिक्षण देने और मानवतावादी नेता बनने के लिए प्रोत्साहित किया है. अब यहां की नन महिला सशक्तीकरण व पर्यावरण संरक्षण पर लोगों को जागरूक करने के लिए साइकिल से गांव-गांव की यात्रा करती हैं.

इस वर्ष अगस्त में जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती लद्दाख में हिंसा, बलात्कार और तस्करी से प्रभावित महिलाओं के साथ आत्मरक्षा कार्यशाला का आयोजन किया है. आत्मरक्षा कार्यशाला के आयोजन किया के दौरान नन ने डर पर काबू पाने के अपने अनुभव लड़कियों से साझा किये और लड़कियों को आत्मरक्षा के व्यावहारिक कौशल की ट्रेनिंग दी.

जिग्मे बताती हैं कि हमने हाल ही में काठमांडू स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों के छोड़े गये भोजन और सिंक साफ किया. जो सालों में कभी साफ नहीं हुआ था और उससे बदबू आती है. गाय और कुत्ते यहां खाने वाले प्लास्टिक खाकर मर जाते हैं, इसलिए हमने क्षेत्र साफ करने के लिए तीन महीने पहले मिशन शुरू किया था.

लड़कियों को नहीं मिलती आजादी

इस समूह की एक और नन तेनेजिन ल्हमो बताती हैं कि मैं जब हमारा समूह बिहार गया तो वहां की लड़कियां हमसे बात तक करने के लिए आगे नहीं आयीं. वे बस दरवाजे से हमें देखती रहीं. यहां लड़कियों पर पाबंदी है. वे ज्यादा घर में ही रहती हैं. लेकिन लद्दाख में ऐसा नहीं है. जिग्में बताती हैं कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत के अधिकतर क्षेत्र में लड़कियों को घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाती.

जिग्मे बताती हैं कि लड़कियों को भी वह ताकत मिल सकती है. हम पांच सौ नन एक साथ साइकिल से यात्रा पर जागरूकता के लिए निकलती हैं. इस दौरान यातायात में कोई परेशानी होती है तो हम खुद उसे निबटाते हैं. ल्हमो बताती हैं कि हम वे सारा काम करते हैं जिसमें मेहनत लगता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितना मुश्किल है.

तब लोग हमें देख कर कहते हैं कि ये काम तो लड़के भी नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि हम यह इसलिए कर रहे हैं. ताकि, आप भी समझें कि हमारी बेटी भी यह कर सकती है. यदि आप उसे एक मौका देते हैं तो हम आपकी बेटियों को ऐसा बना सकते हैं.

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