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विश्व मधुमेह दिवस : डायबिटीज में बड़े उपयोगी हैं व्यायाम

शायद ही ऐसा घर हो, जहां इस बीमारी का प्रवेश न हुआ हो डॉ एन के सिंह सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के 20 से 30 उम्र के लोगों में जिस तेजी से डायबिटीज की बीमारी बढ़ रही है, वह इंगित कर रही है कि केवल जेनेटिक और परंपरागत रिस्क फैक्टरों से इसे नहीं तौला जा सकता. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2017 12:20 AM
शायद ही ऐसा घर हो, जहां इस बीमारी का प्रवेश न हुआ हो
डॉ एन के सिंह
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के 20 से 30 उम्र के लोगों में जिस तेजी से डायबिटीज की बीमारी बढ़ रही है, वह इंगित कर रही है कि केवल जेनेटिक और परंपरागत रिस्क फैक्टरों से इसे नहीं तौला जा सकता. हालिया अध्ययनों में डायबिटीज की व्यापकता दर और प्रतिदिन क्लिनिकों में आ रहे मरीजों की संख्या में तालमेल नहीं दिख रहा है.
जून, 2017 में अमेरिका के सेंट डियागो शहर में अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ एल्विन ने अपने भाषण में यह कह कर चौंका दिया कि साइंस को पता नहीं है कि टाइप ‘वन’ एवं टाइप ‘टू’ डायबिटीज किसी को होता क्यों है? अंधाधुंध हो रहे शोधों के नतीजों के बावजूद अमेरिका जैसे विकसित देश में करीब 38 प्रतिशत लोगों की ही बीमारी नियंत्रित है. जो अच्छी दवाइयां और तकनीकें उपलब्ध हैं, वह काफी महंगी होने के कारण जनसुलभ नहीं हो पाती हैं.
सेंट डियागो में ही दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात डायबिटीज की नयी दवा ‘केनाग्लीफोजीन’ को लेकर उभरी. 2015 में वियेना के यूरोपियन सम्मेलन में इमपारेग अध्ययन ने तब पूरी दुनिया को चौंका दिया था, जब यह पता चला कि यह दवा न केवल डायबिटीज का नियंत्रण प्रभावकारी ढंग से करती है, बल्कि यह ऐसी दवा है, जो कार्डियो वासकुलर दुष्परिणामों से होने वाली डायबिटीज रोगियों की मौत को 38 प्रतिशत तक कम कर देती है.
चिंता की बात यह भी सामने आयी कि यदि हजार मरीजों को इसे दिया जाये तो छह लोगों के पैरों को काटना पड़ सकता है. इसलिए जिन डायबिटीज मरीजों के पैरों में खून के प्रवाह कम होने के लक्षण हों, उन्हें इसे नहीं दिया जाना चाहिए.
इसी ग्रुप की दवा डायाग्लीफोजोन पर हुए ‘सीवी रियल स्टडी’ ने तो यह दिखाया कि यह डायबिटीज के रोगियों में मरणशीलता की दर 59% तक की कमी कर देती है.
इन महत्वपूर्ण शोधों के हवाले आज दुनिया के बड़े डायबिटीज-विशेषज्ञ यह बता रहे हैं कि मरीजों को इन दवाइयों को जल्दी से जल्दी शुरू करना चाहिए.
तीनों दवाइयां भारत में उपलब्ध हैं और इनकी एक गोली की कीमत 40 से 48 रुपये के बीच की है. यक्ष प्रश्न यह है कि क्या भारत की जनता इसे लगातार लेने में सक्षम है? इन दवाइयों के सही इस्तेमाल की जानकारी केवल विशेषज्ञ चिकित्सकों के पास है.
पिछले दो सालों में मैंने इन दवाइयों को हजारों मरीजों पर इस्तेमाल किया है और कभी-कभी इसके प्रभाव चमत्कृत कर देते हैं. यह दवा बड़े प्रभावकारी ढंग से सुगर को नियंत्रित करती है. वजन को घटाती है, रक्तचाप को भी कम करती है और सबसे बड़ी बात यह है कि मानवता के इतिहास में पहली ऐसी दवा है जो हृदय और किडनी की बर्बादी को बचाती है.
2017 में लिस्बन सम्मेलन में इंसुलिन के टेबलेट पर हुए प्रभावकारी शोध को प्रस्तुत किया गया. इस शोध ने यह दिखाया कि इंसुलिन का टेबलेट उतना ही प्रभावकारी था जितना कि इंसुलिन ग्लारजीन का इंजेक्शन. इस शोध ने आशा जगायी है कि फेज-थ्री ट्रायल, जो बड़े पैमाने पर मरीजों में किया जायेगा, यदि सफल हुआ तो यह मानवता के लिए एक बड़ी राहत की खबर होगी.
डायबिटीज के इलाज का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष खान-पान और शारीरिक श्रम को लेकर है. सही भोजन, सही तेल, रक्षात्मक अखरोट/ बादाम और खूब साग-सब्जियों और फलों के इस्तेमाल से डायबिटीज की दिशा बदलने लगती है. नवीनतम रिसर्च फिजिकल एक्सरसाइज की ही महिमा गा रहे हैं.
चालीस मिनट तेज और लगातार वॉकिंग डायबिटीज के इलाज में और बचाव में सबसे बड़ा ‘मैजिक’ है. यह इंसुलिन को संवेदनशील कर देता है और अरमानों को नये पंख देता है. रेसिसटेंस टाइप के व्यायाम, जो जिम में उपलब्ध होते हैं, वे भी डायबिटीज में बड़े उपयोगी है. योगासन इंसुलिन को स्रावित करने वाले बीटा सेल्स को नवजीवन प्रदान करते हैं.
हाल में बॉयलॉजिकल क्लॉक के रहस्य की जानकारी दुनिया को मिली है. इस साल का नोबेल प्राइज इसी तिलिस्म को खोजने वाले को दिया गया है. इस प्रणाली का सूत्रधार मेलाटोनिन हॉरमोन है, जो ब्रेन के पीनियल ग्रंथी से स्रावित होता है. नये रिसर्चों ने साफ दिखाया है कि शरीर में मेलाटोनिन की सिग्नलिंग जहां बिगड़ी, वहां डायबिटीज होने का रिस्क शुरू हो जाता है.
यह बड़े रहस्य की बात है कि ध्यान व प्राणायाम द्वारा हम मेलाटोनिन सिग्नलिंग को पूर्णत: सुचारू रख सकते हैं. तो क्या यह साइंस को इस दिशा में ले जा रहा है कि भारतीय योग प्रणाली इतनी ठोस है कि यही हमें स्वस्थ जीवन की उन्मुक्त उड़ान भरने की गारंटी देता है.
(लेखक डायबिटीज हार्ट सेंटर धनबाद के निदेशक और झारखंड एपीआइ के चेेयरमैन हैं)

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