हाई बीपी, खतरे की सीटी

डॉ. स्कंद शुक्ला (फेसबुक वाल से) आम तौर पर लोग ब्लड-प्रेशर को एक स्थिर संख्याओं के जोड़े के रूप में समझते हैं. वह जो है, वही है. हाई है, तो हाई है. लो है, तो लो है. सामान्य है, तो सामान्य है. यह धारणा भ्रामक है. ब्लड-प्रेशर की संख्याएं वस्तुतः हृदय की हर धड़कन के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 20, 2017 2:14 PM

डॉ. स्कंद शुक्ला (फेसबुक वाल से)

आम तौर पर लोग ब्लड-प्रेशर को एक स्थिर संख्याओं के जोड़े के रूप में समझते हैं. वह जो है, वही है. हाई है, तो हाई है. लो है, तो लो है. सामान्य है, तो सामान्य है. यह धारणा भ्रामक है. ब्लड-प्रेशर की संख्याएं वस्तुतः हृदय की हर धड़कन के साथ बदलती है. न विश्वास हो तो किसी कार्डियक मॉनिटर पर अपना ब्लड-प्रेशर देखिएगा, मौका पड़ने पर. वह हर नब्ज के साथ बदलता नजर आयेगा.

लेकिन यह बदलाव बहुत अतिवादी नहीं होता. अमूमन 112 / 80 से ब्लड प्रेशर अगली ही धड़कन में 182 / 112 नहीं हो जाता. वह एक रेंज में रहा करता है. उसी के भीतर रहने के कारण डॉक्टर उसे बढ़ा-सामान्य-घटा समझते हैं. अब सवाल यह है कि क्या किसी का बढ़ा ब्लड-प्रेशर किन्हीं परिस्थितियों में सामान्य हो सकता है? बिलकुल हो सकता है. घट सकता है? बिलकुल घट सकता है. कभी भी, कोई भी गतिविधि शरीर के ब्लड-प्रेशर पर प्रभाव डालकर उसे बदल सकती है. ऐसे में उसके नियमित मापन का महत्त्व बढ़ जाता है.

रक्तचाप एक शारीरिक क्रिया है, जिसे शरीर के तमाम अंगों तक रक्त पहुंचाने के लिए बनाया गया है. एक ही व्यक्ति में दिन के अलग-अलग समय यह अलग-अलग आ सकता है. दवाओं पर भी यह बढ़ सकता है, या फिर घट भी सकता है. ऐसे में इसकी रीडिंगों पर लगातार निगरानी का महत्त्व बढ़ जाता है.

साठ साल के अनवर कई सालों से डायबिटीज़ और हाई ब्लड-प्रेशर के मरीज़ हैं और नियमित दवाई लेते रहे हैं. लेकिन आज अस्पताल में उनका ब्लड-प्रेशर 80 / 60 निकलता है. कारण पेचिश है. पिछले दो दिनों में उन्हें प्रतिदिन सोलह-सत्रह बार दस्त हुए हैं. पेट में दर्द, बुख़ार, बेचैनी, सुस्ती. डॉक्टर उनकी ब्लड-प्रेशर की दवाएं बंद करके उनके लक्षणों का कारण जानने में जुटे हैं. उन्हें पूरा सन्देह गैस्ट्रोएन्टेराइटिस के साथ हुए सेप्टिसीमिया पर है. पेट के रास्ते कोई ऐसा संक्रमण है, जो रक्त-प्रवाह में दाख़िल हो गया है.

पच्चीस वर्षीया सुनीता को हाई ब्लड-प्रेशर कभी नहीं था. अब वे गर्भवती हैं और पांचवां महीना चल रहा है. रूटीन जांच के दौरान उनका ब्लड-प्रेशर पहली बार बढ़ा हुआ निकलता है और पेशाब की जांच में अतिरिक्त प्रोटीन भी.

इक्यावन की उम्र वाली ननकूबाई को तीस से अधिक साल से हाई ब्लड-प्रेशर है. ऐसा कि दवाएं खा-खाकर भी नियंत्रण में मुश्किल आती है. पिछले साल मगर डेंगी के दौरान उनकी हालत ऐसी हुई कि प्राण बस किसी तरह बच पाये. उस दौरान ब्लड-प्रेशर सामान्य क्या, घटा हुआ निकला. मगर अब वे ठीक हैं और उनका हाई ब्लड-प्रेशर भी वापस है.

छह साल की रोमी कुछ दिनों पहले तक हंसती-खेलती सामान्य बच्ची थी. फिर उसे शरीर में सूजन रहने लगी. डॉक्टर को दिखाने पर गुर्दों से प्रोटीन अत्यधिक रिसने का एक रोग नेफ्रॉटिक सिण्ड्रोम निकला. साथ में ब्लड-प्रेशर मापा गया, तो उम्र के अनुसार बढ़ा हुआ था.

जगतार सिंह ब्लडप्रेशर के पुराने रोगी थे. कई साल लापरवाही की, वज़न भी बेलगाम बढ़ने दिया. पिछले साल उन्हें पहली बार हृदयाघात हुआ, जिसके लिए उनकी एंजियोप्लास्टी हुई. उसके बाद भी उनकी लापरवाही जस-की-तस. इस साल फिर उन्हें दूसरा हृदयाघात पड़ा. डॉक्टर से सख़्ती से उन्हें परहेज़ और उपचार के नियम बता दिये. लेकिन एक बात ख़ास हुई. उनका बढ़ा ब्लड-प्रेशर अब सामान्य-निचले स्तर पर रहने लगा.

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