हाड़ कंपाने वाली ठंड में फायदेमंद भस्त्रिका प्राणायाम, ऐसे करें
पतंजलि ने योग को चित्तवृत्ति निरोध कहा है. चित्त-शुद्धि के लिए जितनी भी क्रियाएं हैं, उनमें सर्वोच्च प्राथमिकता प्राणायाम को दी गयी हैं. कोई प्राणायाम चित्त-वृत्तियों से मुक्त करने में कितना उपयोगी हो सकता है, इसकी अनुभूति का माध्यम है-भस्त्रिका. यह शीतकाल में किया जाने वाला प्राणायाम है. यह दैहिक, मानसिक और आत्मिक, बल को […]
पतंजलि ने योग को चित्तवृत्ति निरोध कहा है. चित्त-शुद्धि के लिए जितनी भी क्रियाएं हैं, उनमें सर्वोच्च प्राथमिकता प्राणायाम को दी गयी हैं. कोई प्राणायाम चित्त-वृत्तियों से मुक्त करने में कितना उपयोगी हो सकता है, इसकी अनुभूति का माध्यम है-भस्त्रिका. यह शीतकाल में किया जाने वाला प्राणायाम है. यह दैहिक, मानसिक और आत्मिक, बल को बढ़ाने वाला और डीप ब्रीदिंग के प्रमुख प्राणायामों में सबसे पहला है. इसमें लंबी सांस लेना-छोड़ना होता है.
शरीर को मिलता है भरपूर ऑक्सीजन : इससे शरीर को कई गुना ऑक्सीजन मिलता है. शरीर पंचप्राण- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान से ही संचालित होता है. भस्त्रिका प्राणायाम से पंचप्राण को ऊर्जा मिलती है. आभामंडल का विस्तार होता है. इसमें पूरे श्वसन तंत्र का व्यायाम होने के कारण अस्थमा, कफ, एलर्जी की समस्या दूर होती है. शरीर के विभिन्न अंगों की कमजोरी दूर होती है. मधुमेह नियंत्रित रहती है. वृद्धावस्था दूर रहती है और व्यक्ति स्वयं को युवा महसूस करता है.
कैसे करें : सिद्धासन, सुखासन या पद्मासन में बैठें. गर्दन व रीढ को सीधा रखें और ज्ञान मुद्रा (अंगूठे और तर्जनी के अग्र भाग को मिलाएं और शेष उंगलियों को सीधा रखें) अथवा अपान मुद्रा (अंगूठे के शीर्ष को मध्यमा और अनामिका के शीर्ष से मिलाएं, तर्जनी और कनिष्ठा को सीधा रखें) लगा लें. वायुरोग से पीड़ित व्यक्ति वायु मुद्रा (तर्जनी को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाएं, बाकी उंगलियां बिल्कुल सीधी) लगाकर यह करें, तो उन्हें शीघ्रता से लाभ होगा. किसी भी प्रकार का तनाव रखे बिना, स्वयं को ऊर्जा से सराबोर महसूस करते हुए,
प्रसन्नतापूर्वक, शांतचित्त होकर, पूरी शक्ति के साथ गहरी सांस फेफड़े में भरें और जितना दबाव सांस लेते समय हो, उतने ही दबाव के साथ सांस बाहर निकलने दें. इसके अभ्यास के दौरान भाव करें कि आप ब्रह्मांड की दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत हो रहे हैं. इस चेतना के साथ इसे करते-करते आप अनुभव करेंगे कि आप भीतर तक आलोकित हो गये हैं.
इसे सामान्य, मध्यम और तीव्र गति से किया जा सकता है. पूरी तरह से निरोगी इसे तीव्र गति से कर सकते हैं. इसमें अंतर केवल इतना है कि धीमी गति से करने पर मन बीच-बीच में इधर-उधर भागता है, जबकि तेज गति से करने पर मन तुरंत एकाग्र हो जाता है.
गर्मी के दिनों में इसे अत्यंत धीमी गति से ही करना चाहिए. सामान्यतः भस्त्रिका करते समय सांस लेने में ढाई सेकेंड का समय लगाना चाहिए और इतना ही समय सांस को छोड़ने में लगना चाहिए.
कितनी देर करें : रोजाना दो से पांच मिनट करना ही काफी है. उससे अधिक समय तक करने से नुकसान की आशंका रहती है. कैंसर जैसे अत्यंत गंभीर रोगों में इसे 10 मिनट तक किया जा सकता है.
बरतें ये सावधानियां
– प्राणायाम की गति सामर्थ्य के हिसाब से रखें.
– सांस भरते समय हल्का पीछे झुकें और सांस छोड़ते हुए हल्का आगे झुकें.
– कई लोग भस्त्रिका के समय पेट तक ऑक्सीजन भर लेते हैं. ऑक्सीजन की उपयोगिता फेफड़े के लिए है, पेट के लिए नहीं.
– उच्च रक्तचाप, कमर में दर्द, हृदय रोग, कमजोरी, हर्निया के रोगी इसे न करें. अथवा बहुत धीमी गति से ही करें.
– भस्त्रिका करते समय कंधों में मामूली कंपन स्वीकार्य है. सिर को स्थिर रखें. भस्त्रिका करते समय बीच में फेफड़े और गर्दन में हल्की पीड़ा हो सकती है, किंतु आप रुकें नहीं, वह कुछ पल बाद दूर हो जायेगी.
– कई लोग मुंह से सांस लेते हैं, कुछ सांस तो नासिका से लेते हैं, लेकिन छोड़ते मुंह से हैं. ये दोनों ही तरीके गलत हैं. इससे थायराॅइड, पैरा थायराॅइड ग्लैंड, सैलिवरी ग्लैंड को नुकसान पहुंच सकता है. सांस नासिका से ही लें और नासिका से ही छोड़ें.
– डिप्रेशन, माइग्रेन, अल्सरेटिव कोलाइटिस, पार्किंसन, मिर्गी, पैरालाइसिस के रोगियों के अलावा, स्नायु को पुष्ट करने में भी यह प्राणायाम उपयोगी है. मासिक धर्म के दौरान इसे नहीं करना चाहिए.