पार्किंसन : इस बीमारी के खिलाफ हमदर्दों का साथ जरूरी, जानें कैसे होता है यह रोग

11 अप्रैल वर्ल्ड पार्किंसन डे पर विशेषमलाई वाली दूध से कम होता है पार्किंसन का खतरा नयी दिल्ली: वजन कम करने के लिए डायटिंग को फैशन की तरह अपनाने वाली पीढ़ी सावधान! बिना मलाई वाला दूध पीने से पार्किंसन की लाइलाज बीमारी होने की आशंका 39 फीसदी तक बढ़ जाती है. एक शोध से पता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2018 11:58 AM

11 अप्रैल वर्ल्ड पार्किंसन डे पर विशेष
मलाई वाली दूध से कम होता है पार्किंसन का खतरा

नयी दिल्ली: वजन कम करने के लिए डायटिंग को फैशन की तरह अपनाने वाली पीढ़ी सावधान! बिना मलाई वाला दूध पीने से पार्किंसन की लाइलाज बीमारी होने की आशंका 39 फीसदी तक बढ़ जाती है. एक शोध से पता चला है कि रोजाना मलाईरहित दूध पीने से पार्किंसन बीमारी होने का जोखिम बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अगर आप प्रतिदिन तीन बार मलाईरहित दूध ले रहे हैं तो भी पार्किंसन बीमारी का खतरा 34 फीसदी अधिक बना रहता है क्योंकि इससे भी शरीर को वसा की जरूरी मात्रा नहीं मिल पाती. पार्किंसन बीमारी में मस्तिष्क के उस हिस्से की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जो गति को नियंत्रित करता है. कंपन, मांसपेशियों में सख्ती व तालेमल की कमी और गति में धीमापन इसके आम लक्षण हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार कम वसा वाले डेयरी उत्पादों के नियमित सेवन और मस्तिष्क की सेहत या तंत्रिका संबंधी स्थिति के बीच एक अहम जुड़ाव है.

शोधकर्ताओं ने 1.30 लाख लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करके यह नतीजा निकाला. ये आंकड़े इन लोगों की 25 साल तक निगरानी करके जुटाए गए. आंकड़ों ने दिखाया कि जो लोग नियमित रूप से दिन में एक बार मलाईरहित या अर्ध-मलाईरहित दूध पीते थे, उनमें पार्किंसन बीमारी होने की संभावना उन लोगों के मुकाबले 39 फीसदी अधिक थी, जो हफ्ते में एक बार से भी कम ऐसा दूध पीते थे. शोधकर्ताओं ने कहा, लेकिन जो लोग नियमित रूप से पूरी मलाईवाला दूध पीते थे उनमें यह जोखिम नजर नहीं आया.

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शोधकर्ताओं के मुताबिक पूर्ण मलाईदार डेयरी उत्पादों के सेवन से पार्किंसन बीमारी का खतरा कम किया जा सकता है. यह अध्ययन मेडिकल जर्नल ‘न्यूरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है. राजधानी के फोर्टिस अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग में वरिष्ट कंसलटेंट डा. माधुरी बिहारी का कहना है कि शरीर की गति को नियंत्रित करने वाले हिस्से के क्षतिग्रस्त होने से यह लाइलाज बीमारी इनसान को एकदम बेबस बना देती है. ऐसे में परिवार के सदस्यों का सहयोग, सामान्य स्वास्थ्य देखभाल, व्यायाम और उचित भोजन से मरीज की परेशानियों को कुछ कम जरूर किया जा सकता है.

डा. बिहारी के अनुसार पिछले 40 वर्ष में उन्होंने ऐसे बहुत से मरीज देखे हैं जो परिवार का उचित सहयोग मिलने पर अपनी इस बेदर्द बीमारी के साथ जीना सीख लेते हैं. हाल ही में फोर्टिस अस्पताल वसंत कुंज द्वारा इस बीमारी के शिकार लोगों के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 35 मरीजों के साथ उनके तीमारदारों ने भाग लिया.

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केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के क्षतिग्रस्त होने पर पार्किंसन की बीमारी की आहट सुनाई देने लगती है. चलने और हाथ पैर को अपनी मर्जी से न हिला पाना इसके शुरुआती लक्षण हैं, जो धीरे-धीरे मरीज को हताशा और अधीरता जैसी मानसिक परेशानियों की तरफ भी ले जाते हैं. वेंकटेश्वर अस्पताल में न्यूरोलॉजी कंसलटेंट डा. दिनेश सरीन बताते हैं कि अनुवांशिकता या परिवार के एक या दो सदस्यों के इस बीमारी से पीड़ित होने पर बाकी सदस्यों के भी इसकी चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है. महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के इस बीमारी से प्रभावित होने की आशंका ज्यादा रहती है. शरीर के अंगों और चेहरे का लगातार हिलते रहना, चलने और बोलने में परेशानी तथा समन्वय तथा संतुलन की कमी इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. दुनिया भर में तकरीबन एक करोड़ लोग इस लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं.

तमाम तथ्य डराने वाले हैं, लेकिन इन सबके बीच उम्मीद की एक किरण सिर्फ परिवार और अपनों का साथ है. यह बीमारी इनसान को एकदम बेबस बना देती है और ऐसे में अगर चंद हाथ उसके आसपास रहें, कुछ आंखे उसपर नजर बनाए रहें और जरूरत पड़ने पर कुछ हमदर्द चेहरे इर्दगिर्द नजर आएं तो बीमारी भले लाइलाज हो मरीज के हौंसले की डोर मजबूत बनी रहती है.

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