19 अप्रैल वर्ल्ड लिवर डे, अनदेखी ठीक नहीं
II डॉ मोनिका जैन II चीफ गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट, श्री बालाजी हॉस्पिटल, नयी दिल्ली लिवर शरीर का काफी महत्वपूर्ण अंग है. यह शरीर की बहुत-सी क्रियाओं को नियंत्रित करता है, जिनमें पाचन क्रिया और रक्त को साफ करना प्रमुख है. लिवर खराब होने से शरीर की कार्यक्षमता रुक जाती है. गलत आदतें, जैसे- शराब का सेवन व […]
II डॉ मोनिका जैन II
चीफ गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट, श्री बालाजी हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
लिवर शरीर का काफी महत्वपूर्ण अंग है. यह शरीर की बहुत-सी क्रियाओं को नियंत्रित करता है, जिनमें पाचन क्रिया और रक्त को साफ करना प्रमुख है. लिवर खराब होने से शरीर की कार्यक्षमता रुक जाती है. गलत आदतें, जैसे- शराब का सेवन व धूम्रपान करना, जंक फूड, पैकेज्ड फूड और अधिक नमक का सेवन इसे भारी नुकसान पहुंचाता है. इन आदतों के कारण साधारण इन्फेक्शन से कैंसर जैसा जानलेवा रोग हो सकता है.
लिवर हमारी पाचन प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है. यह बाइल फ्ल्यूड का निर्माण करता है, जो भोजन को पचाने और उसमें मौजूद पोषक तत्वों के अवशोषण में मददगार है. लिवर ब्लड को फिल्टर कर टाॅक्सिक पदार्थाें को अलग करता है. यह ब्लड में प्रोटीन बनाने का काम भी करता है. ब्लड क्लाॅटिंग को बढ़ाता है, जिससे अधिक रक्तस्राव और इन्फेक्शन की समस्या नहीं होती. यह शरीर को काम करने की एनर्जी देता है और बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है.
लिवर काफी लचीला होते हुुए भी मजबूत अंग है, क्योंकि वह खुद को रिपेयर करने की क्षमता रखता है. हालांकि, लगातार अनदेखी और खराब खान-पान की आदतें इसे खराब भी कर सकती हैं, जिसे लिवर फेल्योर कहते हैं.
दूषित भोजन समस्या : लगातार मसालेदार और वसायुक्त भोजन या दूषित भोजन-पानी, अल्कोहल का अधिक सेवन, नशीली चीजों व धूम्रपान का सेवन, व्यायाम की कमी, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना, पेट से संबंधित छोटी-मोटी बीमारियों को नजरअंदाज करना, दवाइयों का ज्यादा सेवन जैसे कारण प्रमुख हैं, जिसका असर लिवर पर पड़ता है.
लिवर मूलतः दो कारणों से संक्रमित होता है- वायरस और अधिक अल्कोहल का सेवन. लिवर डैमेज होने से े शरीर का मेटाबाॅलिक बैलेंस गड़बड़ा जाता है, जिससे कई रोग हो सकते हैं. इनमें हेपेटाइटिस, फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर आदि प्रमुख हैं.
हेपेटाइटिस : लिवर बीमारियों में हेपेटाइटिस एक ऐसा विकार है, जिसमें संक्रमित रोगी के लिवर में सूजन आ जाती है. यह विकार हेपेटाइटिस नामक वायरस से फैलता है. हेपेटाइटिस मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं, जिन्हें हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और इ नाम से जाना जाता है. हेपेटाइटिस ए और ई को आम बोलचाल में जाॅंन्डिस या पीलिया कहा जाता हैैै. इसका संक्रमण दूषित पानी और भोजन के सेवन से होता है. हेपेटाइटिस ए वायरस मुंह से शरीर में प्रवेश करता है और लिवर को नुकसान पहुंचाता है. यह वायरस लिवर में बननेवाले पीले रंग बाइलरुबीन फ्ल्यूड की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे जाॅन्डिस हो जाता है. यह फ्लेवी वायरस से होता है.
इसमें रोगी को तेज बुखार होता है. आंखें और पूरे शरीर की त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है. पेशाब गहरे पीले रंग का हो जाता है. उल्टी या जी मिचलाने की शिकायत रहती है. इसके उपचार के लिए दवाइयाें से अधिक परहेज की जरूरत होती है. शुरुआती लक्षण होने पर ही अगर हेपेटाइटिस ए का वैक्सीन मरीज को लगा दिया जाये, तो आसानी से बचाव हो सकता है.
सुरक्षित लिवर के लिए सुधारें खान-पान
इसे सबसे गंभीर प्रकार माना जाता है. यह हेपेटाइटिस बी वायरस से होता है, जो बाॅडी फ्ल्यूड (ब्लड, सीमेन और वजाइना फ्ल्यूड) के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और लिवर में पहुंच कर नुकसान पहुंचाता है. यह वायरस संक्रमित व्यक्ति का ब्लड लेने से, असुरक्षित यौन संबंध बनाने से, लंबे समय तक किडनी डायलिसिस से, संक्रमित सीरींज के उपयोग से, टैटू बनवाने, संक्रमित व्यक्ति की पर्सनल हाइजीन की चीजें (रेजर, ब्रश, नेलकटर) का इस्तेमाल करने से.
लक्षण : हेपेटाइटिस बी के लक्षण कभी-कभी शुरुआती दौर में पकड़ में नहीं आते, कई बार तो 6 महीने तक पता नहीं चल पाता जैसे-हल्का बुखार, जी मिचलाना, शरीर में कमजोरी, भूख कम लगना, मांसपेशियों में दर्द होना, पेशाब का रंग पीला होना, पेट में पानी भर जाना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं. उपचार में देरी होने से मरीज बेहोशी की अवस्था में भी चला जाता है और उसकी मौत भी हो सकती है.
हेपेटाइटिस बी के उपचार के लिए रोगी को हेपेटाइटिस बी इन्जेक्शन और ओरल मेडिसिन दी जाती है. लेकिन इन उपचारों के बावजूद 5-10 प्रतिशत मरीजों के शरीर में हैपेटाइटिस बी वायरस पूरी तरह खत्म नहीं हो पाता है और धीरे-धीरे लिवर को नुकसान पहुंचाता है. यह वायरस शरीर में ज्यादा समय तक मौजूद रहने पर लिवर सिरोसिस और लीवर कैंसर की आशंका बढ़ा देती है.
हेपेटाइटिस सी : हेपेटाइटिस सी वायरस के बाॅडी फ्ल्यूड (ब्लड, सीमेन और वजाइना फ्ल्यूड) के माध्यम से शरीर में पहुंचने के कारण होता है. आमतौर पर आनुवंशिक, संक्रमित खून चढ़ाने, संक्रमित सीरींज का इस्तेमाल करने, टैटू बनवाने, संक्रमित व्यक्ति की पर्सनल हाइजीन की चीजें शेयर करने या सेक्क्सुअल ट्रांसमीटेड डिजीज से पीड़ित व्यक्ति से यौन संबंध बनाने से होती है. इनके लक्षणों में पेल्विक पेन, भूख कम लगना, उल्टी, पेट में सूजन, पैरों में सूजन, कमजोरी, खून की कमी, पेट में पानी भर जाना आदि शामिल हैं.
लक्षणों के आधार पर इसके एक्यूट और क्राॅनिक दो प्रकार हैं. एक्यूट हेपेटाइटिस सी में वायरस मरीज के शरीर में कुछ सप्ताह से लेकर 6 महीने तक रहता है, जबकि क्राॅनिक हेपेटाइटिस जिंदगी भर चलता है और लिवर सिरोसिस, कैंसर, फेल्योर जैसी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है. हेपेटाइटिस सी से पीड़ित व्यक्ति को इंजेक्शन के अलावा 3-6 महीने के लिए सोफोसफोबिर मेडिसिन भी दी जाती है.
हेपेटाइटिस डी : इसका इन्फेक्शन तभी हो सकता है, जब मरीज को पहले से ही हैपेटाइटिस बी की शिकायत हो. इसके लक्षण भी हेपेटाइटिस बी के समान होते हैं. इसलिए जल्दी पकड़ में नहीं आते. हैपेटाइटिस डी एचडीवी वायरस से होता है.
इसे डेल्टा वायरस भी कहते हैं. यह इन्फेक्शन किसी संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक संपर्क में आने से होता है और बाॅडी फ्ल्यूड (ब्लड, सीमेन और वजाइना फ्ल्यूड) के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है. लिवर में जलन और सूजन की समस्या पैदा करता है. हेपेटाइटिस डी एक्यूट और क्राॅनिक दोंनों हो सकता है.
एक्यूट हेपेटाइटिस डी के लक्षण ज्यादा गंभीर होते हैं. अगर इसका संक्रमण 6 महीने से ज्यादा रुक जाता है तो यह क्राॅनिक हेपेटाइटिस डी का रूप ले लेते हैं. सूजन की वजह से लंबे समय रह जाने पर लिवर सिरोेसिस या कैंसर का रूप ले लेते हैं. हेपेटाइटिस डी के लिए फिलहाल कोई इलाज नहीं है. इसके बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी का इन्जेक्शन लगाया जाता है.
लिवर संबंधी बीमारियों में आयुर्वेद लाभकारी
डॉ शनि कुमार
शनि आयुर्वेदिक क्लिनिक, पानीपत, हरियाणा
– एमीक्योर डीएस सिरप की 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीएं.
– लिवर-52 सिरप के 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीने से लाभ मिलेगा.
– फैटी लिवर के लिए 5 ग्राम नीम की अंतर छाल, 5 ग्राम पीपल की छाल का काढ़ा सुबह-शाम पीएं.
– आक के 2 छोटे नये पत्ते गुड़ के साथ सुबह सूरज निकलने से पहले 3 दिन खाएं.
– नारियल पानी पीना फायदेमंद होगा.
– हल्दी वाला गुनगुना पानी पीएं.
– 3 ग्राम अजवायन में एक चुटकी काला नमक मिलाकर चबाएं. लाभ मिलेगा.
– 2 चम्मच पपीते के रस में आधा चम्मच नीबू का रस मिलाकर दिन में 2-3 बार लें.
– एक छोटा चम्मच एप्पल वेनेगर को एक गिलास पानी और एक चम्मच शहद मिलाकर पीएं.
– एक गिलास लस्सी में चुटकी भर पिसा भुना जीरा, काली मिर्च और हींग मिलाकर पीएं.
– गेहूं के ज्वारे या वीट ग्रास को चबाकर खाएं या जूस बनाकर पीएं
– एक गिलास पानी लें. इसमें मुलेठी की जड़ को पीस कर बना पाउडर एक छोटा चम्मच मिलाकर उबालें. छानकर ठंडा करें और पीएं.
– दिन में दो बार ग्रीन टी पीएं.
हेपेटाइटिस का इलाज : हेपेटाइटिस ए, बी और सी के उपचार के लिए फिटकरी की भस्म और दही से उपचार करें. इसके लिए पहले दिन 400 मिलीग्राम फिटकरी भस्म मरीज के मुंह में डाल कर 200 ग्राम दही पिलाएं. दूसरे दिन 800 मिलिग्राम फिटकरी भस्म डाल कर दही पिलाएं. तीसरे से सातवें दिन फिटकरी की 1200 मिलीग्राम भस्म मरीज के मुंह में डाल कर 200 ग्राम दही पिलाएं. ध्यान रहे कि फिटकरी भस्म के उपचार के एक घंटे के बाद कुछ खाने को न दें. ध्यान रखें कि किसी योग्य विशेषज्ञ को दिखाकर ही उपचार लें.
लिवर सिरोसिस
लिवर की तमाम बीमारियाें और उपचारों के बावजूद संक्रमित करनेवाले वायरस लिवर में बने रहते हैैं, जिससे लिवर सिरोसिस की समस्या होती है. इसमें मरीज का लिवर अपने वास्तविक स्वरूप या आकार में नहीं रहता, वह सिकुड़ने लगता है और लचीलापन खोकर सख्त हो जाता है.
इस स्थिति में लिवर की कोशिकाएं बड़ी मात्रा में नष्ट हो जाती हैं और उनकी जगह फाइबर तंतुओं का निर्माण होने लगता है. ये तंतु लिवर के टिशूज को डैमेज करने लगते हैं. इससे लिवर की कार्यों में दिक्कत आती है. लिवर में ब्लड सर्कुलेशन अवरुद्ध होने लगता है. इससे पोषक तत्वों के अवशोषण की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है. लिवर ट्रांसप्लांट ही इसका समुचित उपचार है.
लिवर कैंसर
भारत में कैंसर की बीमारी से मरनेवाले में लिवर कैंसर दूसरा बड़ा कारण है, जबकि 30 फीसदी वयस्क भारतीयों को फैटी लिवर है. यह लिवर टिश्यूज के असामान्य विकास से होनेवाली बीमारी है.
अनचाहे बढ़े हुए टिश्यूज लिवर टिश्यूज को नुकसान पहुंचाते हैं और उनके कार्यों में रुकावट डालते हैं. लिवर में इस तरह के टिश्यूज से बिनाइन ट्यूमर और मेलिगनेंट ट्यूमर असामान्य तरीके से विकसित होने लगते हैं. लिवर और आसपास के टिश्यूज को नष्ट करते हैं. हालांकि, यह जानलेवा रोग है, लेकिन शुरू में पहचान हो जाये, तो लिवर ट्रांसप्लांट से बचाव हो सकता है.
लिवर फेल्योर
लिवर से जुड़ी बीमारियां जब लंबे समय तक बनी रहती हैं और इलाज नहीं होता, तो लिवर टिश्यूज में अवरोध आ जाता है और वे काम करना बंद कर देती हैं. इसे लिवर फेल्योर कहते हैं. ये दो तरह का होता है- एक्यूट और क्राॅनिक. एक्यूट फेल्योर हैपेटाइटिस, मलेरिया, जैसी संक्रामक बीमारियों के संक्रमण से होता है. दूसरा, लंबे समय तक चल रहे लिवर रोगों की वजह से होता है.
क्या है लिवर ट्रांसप्लांट
लिवर की बीमारियों की आखिरी उम्मीद है- लीवर ट्रांसप्लांट. यानी वायरस या अल्कोहल के सेवन से होनेवाली बीमारियों की वजह से यदि लिवर डैमेज हो गया हो, तो आखिरी स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट बेस्ट आॅप्शन होता है.
ट्रांसप्लांट के लिए लिवर डोनर दो तरह के होते हैं- ब्रेन डेड की स्थिति में पहुंचे व्यक्ति का लिवर या ब्लड रिलेशन वाला रिश्तेदार. ब्लड रिलेशन में स्वस्थ व्यक्ति के लिवर का 40 फीसदी हिस्सा काट कर मरीज के लिवर की जगह ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है. अपनी रिकवरी खुद करने की खासियत के कारण ये दोनों लिवर 6-9 सप्ताह में सामान्य रूप से काम करने लगते हैं.
बातचीत : रजनी अरोड़ा
सुपाच्य आहार से स्वस्थ रहेगा लिवर
शरीर को स्वस्थ रखने में लिवर का महत्वपूर्ण योगदान होता है. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, मिनरल्स आदि को पचाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. शरीर को स्वस्थ रखने के लिए लिवर को स्वस्थ रखना जरूरी है. हमारी खराब खान-पान की आदतें और कई तरह के व्यसन लिवर को डैमेज कर सकते हैं. लिवर के डैमेज होने से हमें कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें हेपेटाइटिस, लिवर सिरोसिस, फैटी लिवर आदि प्रमुख हैं. इसके कारण पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा आती है और मरीज भोजन द्वारा संपूर्ण पोषण नहीं मिलता है. इस कारण व्यक्ति का वजन धीरे-धीरे कम होने लगतर है.
साबूत अनाज व फल लाभकारी :
हेपेटाइटिस से ग्रस्त लोगों को स्वस्थ रखने के लिए पोषक आहार लेना जरूरी है, जिसमें फल, सब्जियां, साबूत अनाज आदि लाभकारी हैं. इस रोग में अधिक वसायुक्त आहार जैसे-तेल, घी, मसाला आदि का सेवन कम करना चाहिए. सादे या साबूत अनाज, दलिया, सब्जी और फल, कम वसायुक्त दूध और दूध से बनी चीजें, पनीर, दही, मछली और पोलट्री उत्पाद, मेवा, दाल जो विटामिन एवं खनिज लवण से भरपूर होता है, लेना चाहिए.
उच्च वसा वाले आहार मलाई युक्त दूध, दही, क्रीम, पीनट बटर, आलू चिप्स, मक्खन, मसालेदार स्नैक्स, बिस्कुट, केक, वसायुक्त मछली, खाल सहित मुर्गा इत्यादि चीजें नहीं लेनी चाहिए. सप्ताह में तीन अंडे से अधिक न लें. साथ ही सबसे महत्वपूर्ण शराब और सिगरेट सहित अन्य व्यसनों से दूर रहें.
आजकल के समय में फैटी लिवर होना आम बात हो गयी है. यह बीमारी सभी उम्र के लोगों में हो रही है. लिवर के बढ़ने से पेट भी बड़ा हो जाता है. इसमें लिवर में चर्बी की मात्रा सामान्य से 5-10% अधिक बढ़ जाती है. लिवर हमारे शरीर में फिल्टर की तरह काम करता है, जो शरीर के बाकी अंगों को सुरक्षित रखने के लिए पाचन प्रणाली को दुरुस्त रखता है और शरीर के लिए नुकसानदेह पदार्थों (टॉक्सिक) को छान कर अलग कर देता है, जिससे दिल दिमाग एवं फेफड़े सुरक्षित रहते हैं.
फैटी लिवर का प्रमुख कारण अत्यधिक शराब का सेवन, मलेरिया, फ्लू का बार-बार होना, गंदा पानी पीना, सटेराॅयड दवा का प्रयोग आदि है. इसके लक्षणों में मुंह का स्वाद बिगड़ना, कब्ज की शिकायत, जीभ पर मैल जमा होना, पीलिया होना, बुखार आदि शामिल हैं. वहीं जॉन्डिस में पेशाब का रंग, शरीर का बाहरी भाग और आंखों का सफेद हिस्सा पीला होने लगता है.
लीजिए सुपाच्य आहार
जॉन्डिस व फैटी लिवर में मरीज का आहार हल्का एवं सुपाच्य होना चाहिए. जौ के आटे की रोटी, जौ का सत्तू, मूंग दाल, साबुदाना का खीर, उच्च फाइबर वाले फल व सब्जियां, साबूत अनाज आदि भोजन में शामिल करें. नाश्ते में खिचड़ी, दलिया और उबली हुई सब्जी, दोपहर में छिलके सहित आटे की दो रोटी, दो कटोरी उबली हुई सब्जी, एक कटोरी कटा पपीता और एक गिलास छांछ लेना चाहिए. रात के खाने में मोटे दरदरे आटे की दो रोटी व सब्जी और सोने से पहले मलाई रहित एक गिलास दूध लें. ऐसे मरीजों को फल में सेब, पपीता, तरबूज, अनार, आंवला, मौसमी, अमरूद, चीकू, अंगूर, खजूर और सिंघाड़ा लेना चाहिए.
सब्जियों में करेला, बैंगन, मूली, नीबू, लहसुन, लौकी, धनिया, ब्रोकली, विभिन्न तरह के साग लेने चाहिए. शुद्ध गन्ने का रस एवं नारियल पानी भी लाभकारी है. मरीजों को गरिष्ठ घी, तेल में तले मिर्च-मसालेदार भोजन, शराब, पास्ता, चाय, मैगी, चाउमीन, काॅफी, तंबाकू, जंक फूड, मैदा से बनी चीजें, सोडा, कोला आदि नहीं लेना चाहिए. जॉन्डिस में हमेशा उबला छना क्लोरीन पानी लें और ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीना चाहिए.
डॉ श्वेता जायसवाल
कंसल्टेंट डाइटिशियन नगरमल मोदी सेवा सदन बरियातु, रांची