वाशिंगटन: अवसाद रोधकों के नाम पर आम तौर पर दी जाने वाली दवाएं मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के खतरे को बढ़ा सकती हैं फिर चाहे ये दवाएं इस बीमारी का पता लगने से 20 साल पहले ही क्यों न ली गयी हों. एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आयी है.
अनुसंधानकर्ताओं ने इन परिणामों तक पहुंचने के लिए मनोभ्रंश से पीड़ित 65 वर्ष से ज्यादा के 40,770 मरीजों और 2,83,933 ऐसे मरीजों का चिकित्सीय रिकॉर्ड खंगाला जिन्हें यह बीमारी नहीं थी. इसके लिए उन्होंने रिकॉर्ड में दर्ज दो करोड़ 70 लाख चिकित्सीय पर्चों का विश्लेषण किया. उन्होंने ऐसे मरीजों में मनोभ्रंश की व्यापकता ज्यादा देखी जिन्हें अवसादरोधी, मूत्राशय और पार्किंसन बीमारी से जुड़ी एंटीकोलीनेर्जिक दवाओं के सेवन की सलाह दीगयी.
अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी के नोल कैंपबैल ने बताया , “ एंटीकोलीनेर्जिक वे दवाएं हैं जो तंत्रिका तंत्र के तंत्रिका संचारक एसिटाइलकोलीन को अवरोधित करता है और उसे पूर्व में भी ज्ञान संबंधी विकार का संभावित कारण मानने के संकेत मिलते रहे. ‘ कैंपबेल ने कहा , “ यह अध्ययन इन दवाओं के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने और डिमेंशिया का पता लगने से कई साल पहले ही होने वाले नुकसान को बताने के लिए पर्याप्त है.” यह अध्ययन बीएमजे पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.