मौखिक प्रताड़ना कर सकती है बीमार
डॉ बिन्दा सिंह 20 साल के अनूप की भूख मर गयी थी. पढ़ाई से दूर होने लगा था, चिड़चिड़ा होने के साथ असहनीय सिरदर्द की शिकायत कर रहा था. चेकअप में कुछ नहीं निकला तो डॉक्टर ने काउंसलिंग की सलाह दी. अभिभावक ने बताया कि वे उसे मारते-पीटते नहीं हैं, फिर इसे क्या हो गया. […]
डॉ बिन्दा सिंह
20 साल के अनूप की भूख मर गयी थी. पढ़ाई से दूर होने लगा था, चिड़चिड़ा होने के साथ असहनीय सिरदर्द की शिकायत कर रहा था. चेकअप में कुछ नहीं निकला तो डॉक्टर ने काउंसलिंग की सलाह दी. अभिभावक ने बताया कि वे उसे मारते-पीटते नहीं हैं, फिर इसे क्या हो गया.
अनूप ने बताया कि उसके माता-पिता कभी हाथ नहीं उठाते, लेकिन ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो असहनीय है. बचपन से उसे क्रिकेट खेलना, ड्रामे में भाग लेना बहुत पसंद था. मगर उसके पिता हर दिन कहते थे- ‘क्या सचिन तेंदुलकर ही बन जायेगा’. मां कहती है- ‘हीरो बनना बंद करो. पढ़ो नहीं, तो किसी लायक नहीं रहोगे’. अक्सर हम बिना सोचे ऐसी बात बोल जाते हैं, जो व्यक्ति को संवेगात्मक रूप से तोड़ कर रख देता है. भले ही हमारी मंशा गलत न हो.
धीरे-धीरे ये बातें व्यक्ति को मानसिक बीमार बना देती हैं. रिश्तों में प्रताड़ना चाहे अभिभावक द्वारा, शिक्षक, पति या पत्नी या दोस्त द्वारा हो, वह यातना से भी खराब असर डालता है. व्यक्ति खुद को बेइज्जत महसूस करता है और संवेगात्मक रूप से टूट जाता है.
फलत: उसमें हीन भावना आ जाती है. वह चिंता, हताशा, अस्थमा, माइग्रेन आदि का शिकार हो जाता है. उसमें आत्महत्या तक के विचार आने लगते हैं. फिर हम किसी को क्यों तकलीफ देकर मानसिक बीमार बना देते हैं.