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एम्स में बना सिंथेटिक कॉर्निया

देश में डोनेशन से मिले कॉर्निया की जितनी जरूरत है, उतनी डिमांड पूरी नहीं हो पाती. अब एम्स के डॉक्टरों ने पहली बार आर्टिफिशल कॉर्निया तैयार किया है. इस सिंथेटिक कॉर्निया से 12 लोगों को आंखों की रोशनी मिल चुकी है. इस कॉर्निया को ‘बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया’ कहा जाता है. आइ डोनेशन की कमी इससे पूरी […]

देश में डोनेशन से मिले कॉर्निया की जितनी जरूरत है, उतनी डिमांड पूरी नहीं हो पाती. अब एम्स के डॉक्टरों ने पहली बार आर्टिफिशल कॉर्निया तैयार किया है. इस सिंथेटिक कॉर्निया से 12 लोगों को आंखों की रोशनी मिल चुकी है. इस कॉर्निया को ‘बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया’ कहा जाता है. आइ डोनेशन की कमी इससे पूरी हो सकती है. एम्स के आइ स्पेशलिस्ट का कहना है कि सिंथेटिक कॉर्निया के रिजेक्क्शन का खतरा बिल्कुल नहीं होता. यह सिंथेटिक कॉलेजन से बनता है, इसलिए इसे सिंथेटिक कॉर्निया भी कहते हैं. अभी इसका यूज केवल इंटीरियर लेयर खराब होने की स्थिति में किया जा रहा है, जिसका अच्छा रिजल्ट आया है. मरीजों को देखने में कोई समस्या नहीं हो रही.
कम एक्टिव हैं महिलाएं
भारतीय महिलाओं को पुरुषों की तुलना में स्वास्थ्य का ज्यादा खतरा है, जिसकी वजह है उनका कम फिजिकली एक्टिव होना. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक स्टडी की मानें, तो एक्सरसाइज की कमी से दुनियाभर में चार में से एक इंसान को कार्डियोवस्कुलर डिजीज, टाइप 2 डायबीटीज, डिमेंशिया और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
इसके मुताबिक 2001 से दुनियाभर में फिजिकल एक्टिविटी में कोई सुधार नहीं हुआ है. लेसेंट जर्नल हेल्थ में छपी दिलचस्प बात है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा इनएक्टिव पायी गयीं. यहां 25% ऐसे पुरुष थे, जो अपर्याप्त फिजिकल एक्टिव थे, वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा 44% पाया गया. कम आय वाले देशों में अपर्याप्त एक्टिविटी का स्तर 16% था, जबकि ज्यादा इनकम वाले देशों में 37% पाया गया.

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