जिंदगी जीने के लिए शादी नहीं की. शादी और पति के बगैर भी जिंदगी खुबसूरत बनायी जा सकती है. कुछ इसी तरह से शादी जैसी बंदिशों को तोड़ सिंगल वुमेन के रूप में अपनी पहचान बना चुकीं महिलाएं खुशहाल और बिंदास जीवन जी रही हैं. जिन्होंने शादी-ब्याह जैसे बंधनों से मुक्त होकर खुद की नयी राह बना ली है. कई बड़े पदों पर कार्यरत होने के बाद भी शादी जैसे बंधनों से खुद को मुक्त रखा है. अकेले रहने के निर्णय ने इन्हें इतना बोल्ड और आत्मनिर्भर बना दिया है कि अब ये बिंदास जिदंगी जी रही हैं. इतना ही नहीं, शादी करने और पुरुषों पर आश्रित रहने जैसे मिथकों को तोड़ इन्होंने अन्य लड़कियों के लिए भी राह आसान कर दी है. यह स्टोरी इन्हीं सिंगल वुमेन पर आधारित है, जो सिंगल वुमेन के रूप में बड़े पदों पर आसीन हैं और बिंदास जिंदगी जी रही हैं. पेश है अनुपम कुमारी की रिपोर्ट.
बनाएं अपनी राह, जिएं बिंदास जिंदगी
पटना यूनिवर्सिटी की प्रतिकुलपति डॉ डॉली सिन्हा, शहर की चर्चित चेहरा हैं. लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित मगध महिला कॉलेज में लंबे समय तक प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहने और लड़कियों के शिक्षा के लिए समर्पित डॉली सिन्हा आज लड़कियों की प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं. पढ़ाई में बेहतर करने और अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने वाली डॉली सिन्हा मूल रूप दरभंगा की रहने वाली हैं. फिजिक्स में पीएचडी करने के बाद वह लेक्चरर के पद कार्यरत रहीं. इसके बाद मगध महिला में प्राचार्य और पटना विवि के डीन स्टूडेंट वेलफेयर के पद पर भी रह चुकी हैं. डॉली बताती हैं कि मैं बचपन से ही बोल्ड रही. मैं अपनी जिदंगी अपने तरीके से जीना चाहती थी. इसलिए शुरू से ही पढ़ाई को लेकर सजग रही. शादी जैसे बंधनों में बंध कर मैं नहीं रहना चाहती थी. लोग लड़कियों को कभी उसकी सुरक्षा को लेकर तो कभी आश्रित के रूप में उनकी शादी करने की बात करते हैं. पर मैं इन सब से अलग अपनी पहचान बनाना चाहती थी. इसलिए शादी नहीं करने का फैसला किया. मेरे पैरेंट्स भी सपोटिव रहें. बहनों की संख्या अधिक और एक भाई हाेने के बावजूद मुझे लड़की की तरह ट्रीट नहीं किया गया. मेरे इस निर्णय में पैरेंटस का साथ मिला. हालांकि कुछ सामाजिक परेशानी हुई, पर मेरे बुलंद इरादे हमेशा मुझे अपने निर्णयों पर अडिग बनाये रखा. सुरक्षा की नजर से मुझे थोड़ी परेशानी हुई, पर मैं खुद को इतना मजबूत बना कर मैं आगे बढ़ती रही. अब लोगों ने भी यह स्वीकार लिया है, कि लड़कियां बगैर शादी की भी अपनी जिदंगी जी सकती हैं.
शादी जिंदगी की खुशी नहीं
बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ हरपाल कौर सिंगल वुमेन के रूप में सशक्त पहचान बना चुकी हैं. कटिहार के बरारी प्रखंड की रहने वाली हरपाल का सफर भागलपुर के बीएन कॉलेजिएट से राजनीतिशास्त्र के लेक्चरर से शुरू हुई है. वर्तमान में बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं. महिला के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने के साथ-साथ समाजिक सरोकार से भी इनका नाता रहा है. वे बताती हैं कि जरूरी नहीं कि शादी के बाद ही महिलाअों की जिंदगी खुशहाल हो सके. शादी के बगैर भी जिदंगी बिंदास और खुशहाल बनायी जा सकती हैं. आज कई महिलाएं मेरे इस निर्णय को अच्छा मानती हैं. कई महिलाएं यह भी मान चुकी हैं कि महिलाओं को शादी के बगैर अपनी पहचान बनाने की जरूरत हैं. इसके लिए बस महिलाओं को अपनी पहचान बनाने की जरूरत हैं.
जबरन न उठाएं शादी का बोझ
महिला विकास निगम में काम करने वाली कर्मचारी रेखा शादी नहीं करना चाहती है. वह अपने पैरों पर खड़ा होकर बिंदास जिदंगी जीना चाहती है. ताकि उसकी जिदंगी किसी पुरुष के मुहताज न हो. पर उसे बच्चे बहुत पसंद हैं . इसलिए वह बच्चा गोद लेने की तैयारी में है. वह कहती हैं कि महिलाओं के लिए कई कानून बन गये हैं. सिंगल महिला भी अब अपने बच्चे की परवरिश कर सकती हैं. ऐसे में अब हम लड़कियों को जरूरत नहीं कि वह शादी जैसे रिश्तों का बोझ जबरन उठा सकें. अकेले रहकर भी जिदंगी खुशहाल बनायी जा सकती है. बस अपनी पहचान बनाने की जरूरत है.
पुरुष साथी की नहीं अपनी पहचान की है जरूरत
अनीसाबाद तेज प्रताप नगर निवासी सुनीता की कहानी भी बड़ी अजीब है. बचपन से शादी के बाद महिलाओं को पतियों के हाथों प्रताड़ित होते देख शादी नहीं करने का फैसला ले लिया. कहा अगर जीवन साथी के साथ की जरूरत इस रूप में हो सकती है, तो इसकी जरूरत मुझे नहीं. सुनीता की उम्र 33 वर्ष की है. तीन साल पहले सड़क किनारे फेंकी हुई लावारिस बच्ची को तड़पता देख सुनीता ने उसे अपना लिया. तीन साल से सुनीता सिंगल पेरेंट के रूप में जीवन जी रही हैं. वह मानती हैं कि जिंदगी शादी का नाम नहीं, बल्कि खुद की पहचान की जिंदगी है.
शादी और पति के साथ की जरूरत नहीं
बिहार महिला उद्योग संघ की सचिव मेनका सिन्हा सिंगल वुमेन हैं. इन्होंने शादी न करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेकर अपनी अलग राह बनायी है. उद्याेग जगत में सफल महिला होने के साथ-साथ वह गरीब बच्चों को शिक्षित कर रही हैं. इसके अलावा वैसी महिलाएं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें आजीविका से जोड़ने के लिए आर्ट और क्राफ्ट से जोड़ने का कार्य कर रही हैं. मेनका बताती हैं कि हमारे समय में बेटियों को पढ़ाना-लिखाना तो दूर उनकी शादी कर देना ही एकमात्र लक्ष्य हुआ करता था. चाहे शादी के बाद उनकी जिदंगी कितनी भी खराब न बीते. मैं शुरू से इसके खिलाफ थी. इसलिए आजीवन शादी नहीं करने का निर्णय लिया और आज मैं खुशहाल जिदंगी जी रही हूं.
सिंगल हैं, तो क्या गम है
सिंगल हैं, तो क्या गम है. मुंगेर निवासी गौरी कुमारी भी एक ऐसा ही चेहरा है, जो पेशे से अधिवक्ता हैं और शादी जैसे सामाजिक बंधन से इतर सिंगल वुमेन के रूप में अपनी जिंदगी जी रही हैं. इनकी नजर में शादी एकमात्र समझौता है. ऐसे में शादी जैसे समझौते शब्द के साथ जीवन जीने से बेहतर है कि अकेले रहकर जीवन जिया जाये. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें अपने काम से किसी प्रकार का समझौता करना है. हमें अपनी इज्जत प्रतिष्ठा अब भी प्यारी है. बस शादी के बंधन से मुक्त होकर बिंदास जिदंगी जी रही हूं. नगर-निगम पर्षद के अलावा सामाजिक कार्य को भी कर रही हैं. बच्चों के अधिकारों काम करने लिए उन्हें मुंगेर सिविल कोर्ट में बाल अधिनियम संरक्षण के विशेष लोक अभियोजक के रूप में भी कार्य कर रही हैं.