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बच्चों को सख्ती से नहीं प्यार से समझाएं
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, facebook.com/veenaparenting, twitter @14veena आप बच्चों पर डिक्टेटरशिप मत चलाइए. सख्ती ठीक है, मगर जरूरत से ज्यादा सख्ती भी उन्हें विद्रोह करने पर मजबूर कर देगी. उनके हर काम को शक की निगाह से मत देखिए. बच्चों के हर दोस्त को शक के घेरे में मत रखिए. यह […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार
इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, facebook.com/veenaparenting, twitter @14veena
आप बच्चों पर डिक्टेटरशिप मत चलाइए. सख्ती ठीक है, मगर जरूरत से ज्यादा सख्ती भी उन्हें विद्रोह करने पर मजबूर कर देगी. उनके हर काम को शक की निगाह से मत देखिए. बच्चों के हर दोस्त को शक के घेरे में मत रखिए. यह भी सही नहीं कि अगर बेटी किसी फ्रेंड से बात कर रही है, तो आप सोचें उसका किसी से अफेयर ही होगा या आप एकदम खिलाफ हैं कि बेटियां लड़कों से बात न करें, तो यह असंभव है कि बच्चे इस बात को मानें. जब बच्चे साथ पढ़ रहे हैं, तो बात तो करेंगे ही.
अगर हम किसी को हर बात पर टोकते रहें कि यह गलत है, वह गलत है. तुम्हें ऐसे नहीं करना चाहिए था और फिर उपदेशों की झड़ी लगा दें, तो वो खीझकर कह देगा- बहुत हो गया. यह उपदेश अपने पास रख.
लेकिन वही बात हम उसे प्यार से कहें, तो उसे लगेगा कि हां, उससे गलती हुई और आगे से वह कोशिश करेगा कि ऐसी गलती दोबारा न हो. यही प्यार का व्यवहार आपको बच्चों के साथ करना है. अगर आप अपने बचपन को याद करेंगे, तो आप समझ सकेंगे कि आपको भी आपके अभिभावकों की टोका-टाकी बहुत खराब लगती थी.
एक सत्य यह भी है कि जहां ज्यादा सख्ती होती है, वहीं विरोध भी होता है. यह हमारा स्वभाव है कि हमें जो काम करने से मना किया जाता है, हम वही काम करते हैं. आप किसी से यह कहिए कि यार, यह बात अपने तक ही रखना, लेकिन वही बात आपके सभी अपनों के बीच पहुंच जाती है.
इसलिए बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो बात फैलाना चाहते हैं, वे किसी ऐसे व्यक्ति से वह बात कहते हैं जो उस बात को ऑन एयर कर दे. मतलब यह कि हम बड़े भी वही काम करते हैं, जो मना किया जाता है. इसलिए बच्चों से ‘हां’ कहना सीखना होगा. हर बात में ‘यह नहीं करना, वह नहीं करना, यहां नहीं जाना, वहां नहीं जाना’, इस तरह के तमाम ‘ना’ हैं, जो आप बच्चों के सामने दोहराते रहते हैं. आप बच्चों पर डिक्टेटरशिप मत चलाइए.
सख्ती ठीक है, मगर जरूरत से ज्यादा सख्ती भी उन्हें विद्रोह करने पर मजबूर कर देगी. उनके हर काम को शक की निगाह से मत देखिए. बच्चों के हर दोस्त को शक के घेरे में मत रखिए. यह भी सही नहीं कि अगर बेटी किसी फ्रेंड से बात कर रही है, तो आप सोचें उसका किसी से अफेयर ही होगा या आप एकदम खिलाफ हैं कि बेटियां लड़कों से बात न करें, तो यह असंभव है. जब बच्चे साथ पढ़ रहे हैं, तो बात तो करेंगे ही.
अगर आपको पता है कि फलां रास्ते पर चलकर आपका बच्चा सही मंजिल पा सकता है, लेकिन रास्ते में कुछ व्यवधान आयेंगे. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप बच्चों को व्यवधान में न पड़ने के लिए सचेत करें. अगर फिर भी वे उसमें फंस गये हैं, तो वहां से सुरक्षित निकलने में आपको ही उसकी मदद करनी होगी. हमें बच्चों को मजबूत बनाना होगा, जिससे किसी भी परेशानी में, व्यवधान में वह सकुशल बाहर निकल आएं. जरूरी हो तो आप भी उनकी मदद कीजिए, लेकिन उन पर हर बात में शक करना, उचित नहीं. कहीं न कहीं आपको भी उन्हें स्पेस देना होगा.
जब बच्चे आपको अपनी बातें बताएं तब भी उन पर शक करना और यह कहना कि तुम अधूरी बातें बता रहे हो. मामला कुछ और ही है या बेटी अपने किसी अच्छे दोस्त के बारे में बताती है और खुलकर कहती है कि वह मेरा अच्छा दोस्त है और आप उसकी बात न मानकर अपने मन में धारणा बना लें कि बेटी मुझसे झूठ बोल रही है. कुछ न कुछ जरूर है.
इस बात से बच्चे में आक्रोश घर कर जायेगा. हो सकता है कि वे केवल अच्छे दोस्त ही हों, लेकिन आपके शक के कारण जिद में आपकी बेटी या बेटा प्यार की बातें करने लगे. अक्सर ऐसा होता है कि जिधर हम देखना ही नहीं चाहते, बरबस हमारी नजरें वहीं जाकर जमती हैं, क्योंकि हमने ठान रखा है या हमें जबरन देखने से मना किया गया है. एक उदाहरण मुझे याद है.
एक बार मेरे पापा ने मम्मी से यह बात कही थी. तब कुछ समझ नहीं आया और लगा कि पापा ये क्या घोड़े और लगाम की बात कर रहे हैं. मम्मी की किस बात पर पापा ने ऐसा कहा, यह संदर्भ याद नहीं, लेकिन पापा ने कहा था कि ज्यादा सख्ती करोगी तो बच्चे ऊब जायेंगे.
फिर जैसे ही मौका मिलेगा, वह सख्ती तोड़ने का प्रयास करेंगे. जैसे घोड़े की लगाम आपके हाथों में है और आप उसे कसकर पकड़े रहेंगे तो वह आपके नियंत्रण में रहेगा, लेकिन बिना सोचे-समझे आपने जरा भी ढील दी या चूक हो गयी, तो वह बेतरतीब भागेगा. आपके नियंत्रण में नहीं रहेगा. हमारे बच्चे घोड़े नहीं, लेकिन याद रखना चाहिए कि बच्चों को सख्ती से नहीं, बल्कि प्यार से समझाना चाहिए.
मम्मी हमारी सारी बातें पापा से बताती थीं. मुझे नहीं याद कि पापा ने कभी गुस्सा किया हो, लेकिन पापा-मम्मी ने हमेशा हमें समय दिया और कैसी भी बात हो, वे समझाते थे.
मां-पिता को यह कोऑर्डिनेशन बनाकर रखना होगा. अगर बच्चे की किसी बात पर शक हो रहा है, तो खुलकर बात करें. कोशिश करें कि आपको खुद बताये और जो बता रहा है, उस पर भरोसा करें, लेकिन आप उसे समझाने में कोताही न करें.
अगर उसका व्यवहार बदल रहा है, वह गलत तरह से रिएक्ट कर रहा है, तो इन बातों पर जरूर गौर करिए, क्योंकि आपने बच्चे को जन्म दिया है. आप उसकी रग-रग से वाकिफ हैं. उसका बदला व्यवहार आपको नोटिस करना होगा और सोच-समझकर कदम उठाना होगा. प्यार से, सख्ती से नहीं.
क्रमश:
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