हड्डियों में दर्द हो, तो चेक कराएं बीएमडी, फिजियोथेरेपी है फायदेमंद
उम्र ढलने के साथ शरीर की मांसपेशियां व हड्डियों का कमजोर होना स्वाभाविक है, पर 40-45 की उम्र के बादयदि लगातार हड्डियों और जोड़ों में दर्द हो, तो आपको अपना बोन मिनरल्स डेंसिटी चेक करा लेना चाहिए. हो सकता हैकि आपको आॅस्टियोपोरोसिस रोग हो. इसलिए यदि ऐसे लक्षण सामने आएं, तो बिना देर किये हड्डी […]
उम्र ढलने के साथ शरीर की मांसपेशियां व हड्डियों का कमजोर होना स्वाभाविक है, पर 40-45 की उम्र के बादयदि लगातार हड्डियों और जोड़ों में दर्द हो, तो आपको अपना बोन मिनरल्स डेंसिटी चेक करा लेना चाहिए. हो सकता हैकि आपको आॅस्टियोपोरोसिस रोग हो. इसलिए यदि ऐसे लक्षण सामने आएं, तो बिना देर किये हड्डी रोगविशेषज्ञ से परामर्श करें.
आर्थराइटिस से है अलग : कई लोग इसे आर्थराइटिस डिजीज मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. आर्थराइटिस में घुटने, कलाई, हाथ-पैर की उंगलियां, हिप्स-बोन जैसे शरीर के जोड़ और उनके आसपास की टिशूज प्रभावित होते हैं.
उनमें दर्द रहता है, जिसकी वजह से मरीज का मूवमेंट या चलना-फिरना दूभर हो जाता है. आॅस्टियोपोरिसिस में शरीर के किसी भी हिस्से की हड्डियाें पर असर देखा जा सकता है. शुरुआत में इसका पता नहीं चल पाता, धीरे-धीरे असर दिखाता है. इसमें सबसे ज्यादा कूल्हे या हिप बोन, पीठ के निचले हिस्से, स्पाइन, पैर और कलाई प्रभावित होते हैं. हड्डियों और मांसपेशियों में ऐंठन और लगातार दर्द रहता है. इन जगहों पर हुआ फ्रैक्चर आसानी से ठीक नहीं हो पाता है.
महिलाओं को अधिक खतरा : आंकड़ों के अनुसार भारत में हर आठ में से एक पुरुष को और तीन में से एक महिला को आॅस्टियोपोरिसिस है.
इसकी मुख्य वजह है- प्राकृतिक रूप से महिलाओं की हड्डियां पुरुषों के मुकाबले छोटी, पतली और मुलायम होती हैं, जिससे वे आॅस्टियोपोरिसिस की गिरफ्त में जल्दी आ जाती हैं. बढती उम्र या 45-50 साल की उम्र में मेनोपाॅज के बाद महिलाओं के शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में कमी आ जाती है, जिससे उनकी बोन डेंसिटी कम हो जाती है और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. मेनोपाॅज की स्टेज पर पहुंची महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन हाॅर्मोन बहुत तेजी से कम होने लगता है.
एस्ट्रोजन हाॅर्मोन की कमी से उनकी हड्डियों का क्षय होने लगता है, जिससे उनमें आॅस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा महिलाएं अनहेल्दी लाइफ स्टाइल के चलते मोटापे का शिकार ज्यादा होती हैं. इसका प्रभाव उनके शरीर खासकर हड्डियों पर पड़़ता है और वे कमजोर हो जाती हैं.
टेस्टोस्टेरॉन हाॅर्मोन की कमी : पुरुषों में बोन मास डेंसिटी 60 साल की उम्र के बाद कम होनी शुरू होती है. वर्तमान में अनहेल्दी लाइफ स्टाइल की बदौलत पुरुषों में इस बीमारी के लक्षण बढ़े हैं और कम उम्र के लोगों मेें भी इस बीमारी का असर देख देखने को मिल जाता है.
पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हाॅर्मोन की कमी की वजह से हड्डियों में मिनरल्स डेंसिटी कम हो जाती है. इससे उनकी हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं. बीएमडी कम होने के कारण बड़ी उम्र के पुरुषों में हिप-बोन फ्रैक्चर की आशंका अधिक रहती है. आॅस्टियोपोरोसिस की शिकायत कुछ बच्चों में भी देखने को मिलती है, जिसे जुवेनाइल आॅस्टियोपोरोसिस कहा जाता है. पीड़ित बच्चे की स्पाइन में वक्रता या टेढ़ापन आ जाता है. उसकी पीठ के निचले हिस्से, हिप्स और पैरों में दर्द रहता है, जिससे उसका चलना या मूवमेंट करना दूभर हो जाता है.
लेकिन ऐसे मामले बहुत कम मात्रा में ही देखे जातेे हैं. किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होने के कारण चल रहे मेडिकल ट्रीटमेंट या अनहेल्दी लाइफस्टाइल और डाइट की वजह से बच्चों में ऐसा हो सकता है.
आॅस्टियोपोरिसिस के प्रमुख लक्षण
– हेल्दी लाइफ स्टाइल फॉलो न करना
– बैलेंस न्यूट्रीशन डाइट खासतौर पर कैल्शियम और विटामिन-डी से भरपूर डाइट न लेना, इससे शरीर में विटामिन-डी की कमी हो जाती है. विटामिन-डी शरीर में आंतों से कैल्शियम अवशोषित कर हड्डियों तक पहुंचाता है, जिससे हड्डियाें का निर्माण होता है.
– धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन ज्यादा करना
– डेली रूटीन में व्यायाम, एक्सरसाइज या योग न करना, ज्यादा एक्टिविटी वाले काम न करना
– टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज, हाइपर पैरा-थायराॅइड, रूमेटाॅइड आर्थराइटिस, सिलिएक जैसी बीमारियों से जूझ रहे व्यक्ति, जिनके शरीर का मेटाबाॅलिक रेट गड़बड़ा जाता है और बोन डेंसिटी कम हो जाती है, में इस बीमारी के लक्षण अधिक देखे जाते हैं.
चेक कराएं बीएमडी
आॅस्टियोपोरोसिस में बोन मिनरल्स डेंसिटी टेस्ट (बीएमडी) कराया जाता है, जिससे हड्डियों की सघनता का पता चलता है. यह टेस्ट ड्यूअल-एनर्जी एक्स-रे एब्जॉप्टिओमेटरी या bone densitometry से किया जाता है. डाॅक्टर 40 साल के बाद नियमित रूप से बीएमडी टेस्ट कराने की सलाह देते हैं.
उपचार : हड्डियों के क्षरण को रोकने के लिए केटाबाॅलिक और नयी हड्डियों के निर्माण के लिए एनाबाॅलिक मेडिसिन दिये जाते हैं. मरीज की हड्डियों को स्वस्थ बनाये रखने के लिए उन्हें कैल्शियम और विटामिन डी की सप्लीमेंटरी मेडिसिन भी दी जाती हैं.
पेन-मैनेजमेंट के लिए डाॅक्टर गुनगुने पानी से स्नान करने की सलाह देते हैं. प्रभावित जगह पर पेन-सेंसिंग नर्व्स को राहत पहुंचाने, सूजन और जलन में आराम पहुंचाने के लिए मरीज को कोल्ड पैक या आइस पैक इस्तेमाल करने के लिए कहा जाता है. फिजियोथेपिस्ट एक्टिव रहने के लिए समुचित व्यायाम करने की सलाह देते हैं.
डाइट का रखें खास ख्याल
कैल्शियम और विटामिन-डी से भरपूर आहार का सेवन करें. दूग्ध उत्पाद हड्डियों को मजबूत बनाने में अहम भूूमिका निभाते हैं. इनमें कैल्शियम होता है. आॅस्टियोपोरोसिस के मरीज को नियमित रूप से कम वसा वाले दूध का सेवन करना चाहिए. कम वसा होने से फैट की समस्या नहीं होगी, जो हड्डियों पर अतिरिक्त बोझ डालती है.
दही, मक्खन, चीज, पनीर, खोया जैसे दूध से बने डेयरी प्रोडक्ट शामिल करें. पालक, बीन्स, ब्रोकली, चुकुंदर, केला, संतरा, सेब जैसे फल-सब्जियों और अंजीर, अखरोट, बादाम जैसे ड्राइ फ्रूट्स का नियमित सेवन आॅस्टियोपोरोसिस से बचाव में मदद करता है. जहां तक हो सके विटामिन-डी में समृद्ध अंडे, मशरूम को भी अपनी डाइट का हिस्सा बनाएं. सुबह की धूप विटामिन-डी का सर्वोतम प्राकृतिक स्रोत है.
– रखें ध्यान : यह सच है कि आॅस्टियोपोरोसिस पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन ठीक समय पर पकड़ में आने व समय पर उपचार कराने से भविष्य में फ्रैक्चर होने का खतरा कम हो जाता है. कम उम्र में हुआ आॅस्टियोपोरोसिस समुचित मेडिकल ट्रीटमेंट से ठीक हो सकता है. अधिक उम्र में प्राकृतिक रूप से हड्डियों के क्षय की प्रक्रिया को मेडिसिन से कंट्रोल किया जा सकता है, पर रोका नहीं जा सकता है.
फिजियोथेरेपी है फायदेमंद
डाॅ कपिल चौहान
विभागाध्यक्ष, फिजियोथेरेपी डिपार्टमेंट, हेल्थ सिटी अस्पताल, फरीदाबाद
आॅस्टियोपोरोसिस के मरीजों की हड्डियों को मजबूती प्रदान करने और मसल्स को रिलैक्स करने में फिजियोथेरेपी काफी मददगार है. एक्सरसाइज से हड्डियों के कमजोर होकर क्षरण को कंट्रोल किया जा सकता है और दर्द में राहत पायी जा सकती है. मरीज को ये एक्सरसाइज पूरे एहतियात के साथ करनी चाहिए, क्योंकि कई बार कमजोर हो चुकी हड्डियां हल्के से दबाव या झटके से टूट सकती हैं.
ऐसी स्थिति में फिजियोथेरेपिस्ट डाॅक्टर का रोल अहम हो जाता है. फिजियोथेरेपिस्ट मरीज की स्थिति के हिसाब से एक्सरसाइज का चयन करते हैं. मरीज को फिजियोथेरेपिस्ट की गाइडेंस में ही एक्सरसाइज करना चाहिए.
आॅस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए वेट-बियरिंग एक्सरसाइज या वजन घटाने वाले व्यायाम करना फायदेमंद है. अधिक वजन होने से हड्डियों पर दबाव पड़ता है और उनके टूटने का खतरा होता है. मरीज वाॅकिंग, ब्रिस्क वाॅकिंग, जाॅगिंग, सीढ़ियां चढ़ना जैसे एक्सरसाइज कर सकते हैं. इनसे शरीर के विभिन्न अंगों में मूवमेंट होती है, मसल्स एक्टिव रहते हैं, जिससे ये आसानी से जरूरी पोषण अवशोषित कर लेते हैं और हड्डियां मजबूत रहती हैं. एक्सरसाइज सही बाॅडी पाॅश्चर को मेंटेन रखते हैं.
एक्सरसाइज नियमित रूप से करें. शुरू में हल्के एक्सरसाइज से शुरू करें, इन्हें धीरे-धीरे बढ़ाएं. वेट लिफ्टिंग जैसे हार्ड एक्सरसाइज न करें. लो-वेट एक्सरसाइज कर सकते हैं. गिरने या चोट लगने वाले एक्सरसाइज न करें. सिट-अप्स जैसी एक्सरसाइज जिसमें स्पाइन को मोड़ना पड़ता है, न करें. तेजी से एरोबिक या जंपिंग न करें.
छोटी उम्र से ही अगर इन तथ्यों पर अमल में लायेंगे, तो भविष्य में आॅस्टियोपोरोसिस का खतरा कम होगा.
– नियमित व्यायाम और एक्सरसाइज फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह से करें. वाकिंग और जाॅगिंग जैसे हल्के एक्सरसाइज करें. रोज आधा घंटा और सप्ताह में तीन दिन व्यायाम जरूर करें.
– विटामिन डी, प्रोटीन, कैल्शियम, फाॅस्फोरस जैसे न्यूट्रीशियन से भरपूर बैलेंस्ड डाइट लें. डेयरी प्रोडक्ट, हरी पत्तेदार सब्जियां नियमित रूप से आहार में शामिल करें.
– वजन को कंट्रोल में रखने के लिए आॅयली व जंक फूड केे सेवन से परहेेज करें.
– धूप विटामिन-डी का नेचुरल स्रोत है. रोज कम-से-कम आधा घंटा धूप में रहें.
– धूम्रपान और मद्यपान का सेवन न करें.
– चाय-काॅफी जैसे कैफीनयुक्त पेय पदार्थ सीमित मात्रा में ही लें.
बातचीत : रजनी अरोड़ा