नयी दिल्ली : ग्लूकोमा से पीड़ित मरीजों में ध्यान लगाने से आंख के दबाव को कम करने में मदद मिल सकती है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के राजेंद्र प्रसाद केंद्र के चिकित्सकों के हालिया अध्ययन में यह बात सामने आयी है.
यह अध्ययन एम्स में नेत्र विज्ञान के लिए समग्र स्वास्थ्य क्लीनिक ने शारीरिक विज्ञान विभाग में फिजियोलॉजी और जेनेटिक्स लैब विभाग के सहयोग से किया गया है. ग्लूकोमा या काला मोतिया भारत में अपरिवर्तनीय दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है, जिससे एक करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं.
नेत्र विज्ञान के लिए आरपी सेंटर (एम्स) के प्रोफेसर और इस अध्ययन के पहले लेखक डॉ तनुज दादा ने कहा, ‘इंट्राओकुलरप्रेशर (आइओपी) को कम करना ग्लूकोमा के लिए एकमात्र सिद्ध उपचार है और यह वर्तमान में आंखों की बूंदों, लेजर थेरेपी या सर्जरी के जरिये हासिल किया जाता है. आंखों की बूंदें महंगी हैं और इसके पूरे शरीर पर दुष्प्रभाव होते हैं और कई मरीज़ उन्हें जीवन भर की थेरेपी के रूप में जुटाने में सक्षम नहीं होतेहैं.’
यह अध्ययन जर्नल ऑफ ग्लूकोमा में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन के तहत 90 ग्लूकोमा मरीजों का चयन किया गया और उन्हें दो समूहों में बांटा गया.
अध्ययन के अनुसार, एक समूह ने ग्लूकोमा दवाओं के साथ योग के एक प्रशिक्षक की निगरानी में 21 से अधिक दिनों तक हर सुबह 60 मिनट तक के लिए ध्यान लगाया और प्राणायाम किया, जबकि दूसरे समूह ने किसी ध्यान के बिना केवल दवाएं ली.
तीन सप्ताह के बाद ध्यान लगाने वाले समूह में इंट्राओकुलर प्रेशर (आंखों के दबाव) में महत्वपूर्ण कमी देखी गयी और दबाव 19एमएमएचजी से 13 एमएमएचजी पर आ गया.
एम्स में फिजियोलॉजी विभाग, इंटीग्रल हेल्थ क्लिनिक के प्रभारी प्रोफेसर डॉ राज कुमार यादव ने कहा, ‘दुनिया में यह पहला अध्ययन है, जो मस्तिष्क को लक्षित करके ध्यान लगाने से आंखों के दबाव को कम करने और रोगियों के सामान्य स्वास्थ्य दोनों में सुधार के लिए मजबूत वैज्ञानिक साक्ष्य प्रदान करता है.’