एना बर्न्स : ‘मिल्कमैन” के बेनाम किरदारों से दुनियाभर में नाम बटोरने वाली लेखिका

नयी दिल्ली : सीधी सादी लेकिन दिल में उतर जाने वाली सटीक भाषा में अपनी बात कहकर पेचीदा इनसानी रिश्तों की उलझी गांठों और मानसिक द्वंद्व को बड़े करीने से कागज पर उतारने वाली आयरलैंड की लेखिका एना बर्न्स एक किताब के बेनाम किरदारों के जरिए दुनियाभर में नाम कमा गईं. अपने उपन्यास ‘मिल्कमैन’ के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2018 11:35 AM

नयी दिल्ली : सीधी सादी लेकिन दिल में उतर जाने वाली सटीक भाषा में अपनी बात कहकर पेचीदा इनसानी रिश्तों की उलझी गांठों और मानसिक द्वंद्व को बड़े करीने से कागज पर उतारने वाली आयरलैंड की लेखिका एना बर्न्स एक किताब के बेनाम किरदारों के जरिए दुनियाभर में नाम कमा गईं.

अपने उपन्यास ‘मिल्कमैन’ के लिए मैन बुकर अवार्ड हासिल करने वाली एना यह उपलब्धि हासिल करने वाली आयरलैंड की पहली लेखिका है. बेलफास्ट में 1962 में जन्मी एना की परवरिश एक सामान्य कैथोलिक जिले आरडोयन में हुई और सेंट गेमा हाई स्कूल में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की. 1987 में वह लंदन चली गईं, लेकिन आयरलैंड के हालात का असर उनपर हमेशा बना रहा और उनकी कलम उसे कागज पर उतारने के लिए मचलती रही। ईस्ट ससेक्स में रहने वाली एना का पहला उपन्यास ‘नो बोन्स’ एक ऐसी लड़की की कहानी बयां करता है जो आयरलैंड के हिंसक और उथल पुथल वाले हालात में बड़ी हुई. उस वक्त के आयरलैंड के हालात पर लिखे गए साहित्य में एना के इस उपन्यास का अपना एक खास स्थान है और इसकी भाषा की विशेष रूप से सराहना की गई.

इस उपन्यास ने 2001 का विनिफ्रेड हाल्टवाय मेमोरियल पुरस्कार जीता। वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय उपन्यास का यह पुरस्कार रायल सोसायटी ऑफ लिटरेचर द्वारा प्रदान किया गया। बुकर पुरस्कार के लिए ‘मिल्कमैन’ का चयन करने के कारणों में भी निर्णायकों ने इसकी भाषा का विशेष रूप से जिक्र किया. साल 2018 के बुकर पुरस्कार के विजेता का चयन करने के लिए बनी समिति के अध्यक्ष क्वामे एंथनी एपिया ने तो यहां तक कहा कि हम में से किसी ने भी आज से पहले ऐसी कोई चीज नहीं पढ़ी. एना बर्न्स की एकदम अलहदा तरीके से उठायी गयी आवाज परंपरागत सोच को चुनौती देती है और एक चौंकाने वाले गद्य को आकार देती है.

क्वामें कहते हैं, ‘‘एक बंटे हुए समाज में निष्ठुरता, यौन उत्पीड़न और प्रतिरोध की इस कहानी को व्यंग्य मिश्रित हास्य में पिरोया गया है.” इस उपन्यास की एक और बड़ी खासियत है कि इसमें पात्रों के नाम नहीं हैं. इस बारे में खुद एना का कहना है कि उन्होंने जब किताब लिखना शुरू किया था तो इसमें पात्रों का नाम दिये थे, लेकिन उन्हें ऐसा लगा कि इससे कहानी कहीं बोझिल और और बेजान हो चली है, इसलिए उन्होंने बेनाम लड़की की मार्फत पूरे उपन्यास का ताना बाना बुन डाला। बर्न्स की यह रचना एक ऐसी लड़की की दास्तां है जो एक ऐसे शख्स का सामना कर रही थी जो यौन उत्पीड़न के लिए पारिवारिक रिश्तों, सामाजिक दबाव और राजनीतिक प्रतिष्ठा सरीखे हथकंडों का इस्तेमाल कर रहा था.

इस बेनाम लड़की की कहानी ने दुनियाभर में एना का नाम ही नहीं किया, बल्कि एक अच्छी खासी रकम भी उनकी झोली में डाल दी. लगभग 50 लाख रूपए का यह पुरस्कार मिलने से बेहद खुश एना का कहना है कि उनके लिए यह रकम बहुत मायने रखती है. वह इस रकम से अपने कुछ कर्जे चुकाने के साथ ही अपने कुछ अधूरे कामों को पूरा करने की योजना बना रही हैं. बर्न्स ने अमेरिकी लेखक रिचर्ड पावर, कनाडाई उपन्यासकार एसी एडुगन समेत तीन अन्य लेखकों को पछाड़ कर यह पुरस्कार जीता. वर्ष 1969 में स्थापित, मैन बुकर पुरस्कार मूल रूप से ब्रिटिश, आयरिश और राष्ट्रमंडल देशों के लेखकों को ही दिया जाता था, लेकिन साल 2014 से अमेरिकी लेखकों को भी इसकी पात्रता सूची में शामिल कर लिया गया.

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