हममें से कई लोगों की यह जिज्ञासा होती है कि इस धरती पर उसका जीवन कितना बचा है, यानी हम कितने दिन और जियेंगे.
हमारी इसी जिज्ञासा को भुनाने के लिए आजकल सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ऐसे कुछ एेप्स चल रहे हैं, जो यूजर की मौत की तारीख का पूर्वानुमान लगाने का दावा करते हैं.हालांकिइन दावों मेंकितनी सच्चाई है, इसबातकीकोई गारंटी नहीं लेता. लेकिन वैज्ञानिकों ने इसी की दिशा में एक रिसर्च किया है.
इस रिसर्च कीमानें, तो डीएनए का विश्लेषण करने से यह अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है कि कोई व्यक्ति कितना लंबा जियेगा.
ब्रिटेन की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने जीवनकाल को प्रभावित करने वाले आनुवांशिक परिवर्तनों के संयुक्त असर का अध्ययन करके एक स्कोरिंग सिस्टम विकसित किया. इस रिसर्च की रिपोर्ट ‘लाइफ’ मैगजीन में प्रकाशित हुई है.
रिसर्चर्स ने पांच लाख सेज्यादा लोगों के आनुवांशिक डेटा के साथ-साथ उनके माता-पिता की जीवन अवधि के रिकॉर्डों का भी अध्ययन किया.
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के यूशर इंस्टीट्यूट के पीटर जोशी की मानें, तो स्कोरिंग सिस्टम के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि अगर हम जन्म के समय या बाद में 100 लोगों को चुनते हैं और अपने जीवनकाल स्कोर का इस्तेमाल कर उन्हें दस समूहों में बांटते हैं तो सबसे नीचे आने वाले समूह के मुकाबले शीर्ष समूह के लोगों की जिंदगी पांच साल ज्यादा होगी.