आगाज नावा बिहान के साथ प्रकृति की छटा व रंगों की बौछार से

पुष्कर महतो-होरी : नागवंशियोंकी राजधानी चुटिया के सबरंगरांची: नागवंशियों की ऐतिहासिक व प्राचीन राजधानी चुटिया में सबसे पहले होरी खेलने की परम्परा आज तक कायम है. चुटिया में होरी के शुरुवात के बाद से ही दक्षिणी छोटानागपुर के अन्यत्र मनाया जाता रहा है. होरी का आगाज नावा बिहान के साथ प्राकृति के छटाओं व रंगों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 20, 2019 7:46 AM

पुष्कर महतो
-होरी : नागवंशियोंकी राजधानी चुटिया के सबरंग
रांची:
नागवंशियों की ऐतिहासिक व प्राचीन राजधानी चुटिया में सबसे पहले होरी खेलने की परम्परा आज तक कायम है. चुटिया में होरी के शुरुवात के बाद से ही दक्षिणी छोटानागपुर के अन्यत्र मनाया जाता रहा है. होरी का आगाज नावा बिहान के साथ प्राकृति के छटाओं व रंगों के बौछार से होता है. होली के नाम आते ही मन में खुशियों के कई रंग बिखर आते है. यादें जहां जवां और रोमांचित हो उठते है. कदम थिरकने लगते है तो मन गीत गाते-गाते स्वाभाविकता के साथ मनमीत व मनप्रीत हो जाता है. कृष्ण की भक्ति और राधा का अटूट प्रेम का रंग दिल का कोना कोना अपने-आप एक-दूसरे का हो लेता है,मतवाला बना देता है. लोगों का संजीव प्रेम कई रंगों में सहज उभरता है. श्री राधा बल्लभ मंदिर के दीवारें होरी की बानगी कहने व वैष्णव भाव प्रफुल्लित होने लगते हैं.

चुटिया की सांस्कृतिक रुप से होरी का रंग आज भी परम्परापूर्वक फगडोल जतरा के साथ संजीव हो उठता है. होली के इस फगडोल जतरा राजधानी चुटिया में दक्षिणी छोटानागपुर में रम जाता है. हजारों की संख्या में महिलाएं,पुरुष,युवक-युवातियां पंक्तिबद्घ हो रंग बिखरते व गुलाल उड़ाते हैं. अपने प्रिय श्री राधे-कृष्णा की मूर्तियों के संग रंग खेलते हैं अर्थात अबीर-गुलाल चढ़ाकर अपने प्रेम-भक्ति का तृप्ति पाते हैं. ऐसा मनोरम दृश्य शायद ही अन्यत्र देखने को मिलता है,जहां लेस मात्र का भी भेद-भाव नहीं ,ऊंच-नीच या बड़ा छोटा या फिर आदिवासी-हरजन-दुर्जन-गिरजन सभी होली के एक रंग में रंगाल, पोताल और पटाल, सामुहिकता का सबरंग अद्भूत व वैभवपूर्ण.

प्रेम के रंग व वैष्णव के प्रति भक्ति रस के इस महत्व से ओतप्रोत नृपति रघुनाथ शाहदेव (नृपति रघुनाथ राय) ने 16 वीं शताब्दी में छोटानागपुर की राजधानी चुटिया में श्री राधा बल्लभ मंदिर स्थापित किया. वर्तमान में यह मंदिर श्री राम मंदिर के नाम से प्रचलित है. मंदिर के पूरबदिशामें फगडोल जतरा स्थल का भी निर्माण कराया. स्थापत्य कला का अनूठा मिसाल और चुटिया की सामूहिकता की सांस्कृतिक बिना किसी भेदभाव के श्री राधा बल्लभ की पूजा अर्चना के बाद फाग का रंग-गुलाल का खेल और फगडोल जतरा स्थल से भगवान श्री राधा-कृष्ण का झूलन व रथ पर विर्जमान का मनोहरी दृष्य का अवलोकन मंत्रमुग्ध करता है और खुशियों के फाग रास-रंग के गीत-संगीत घासी समाज की प्रस्तुतियों के साथ मदमस्त हो नीचे चुटिया स्थित श्री राधा कृष्ण व भगवान शिव मंदिर तक आगे बढ़ता है. इस क्रम में लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने प्रिय श्री राधा-कृष्ण के संग रंग गुलाल चढ़ाकर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं. साथ ही लोग आपस में गिले शिकले भूलाकर भी एक दूसरे को गुलाल लगाकर होरी और नव वर्ष की बधाई देते है.

नागवंशियोंकी राजधानी चुटिया में 16 वीं शताब्दी में स्थापित यह परम्परा परस्पर अग्रसर है. जिस राग रंग के साथ आगाज हुआ था उसकी मिसाल वर्तमान समय में भी चुटिया के लोगों ने सामूहिकता के साथ संजीव रुप में संजोये रखा है. प्रचलित परम्परानुसार बताया जाता है कि दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में राजधानी चुटिया में सर्वप्रथम अगजा जलाया और उसके ठीक दूसरे दिन होरी खेला जाता है. इसके बाद ही दक्षिणी छोटानागपुर में होरी खेली जाती है. इसलिए चुटिया में एक दिन पूर्व ही होरी खेलने की प्रचलन रहा है. जबकि फगडोल जतरा के साथ गुलाल दूसरे दिन नही खेलने का प्रचलन आज भी चलयमान है.

Next Article

Exit mobile version