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मदर्स डे: अब आइवीएफ से भर रही है गोद

राजधानी पटना में पिछले चार सालों में लगातार खुल रहे नये सेंटर और राज्य में शहर दर शहर आइवीएफ के क्लिनिकों में हो रही महीनावार काउंसेलिंग ने केवल मां बनने के लिए नयी तकनीक को प्रसिद्धि दी है बल्कि इसने बिहार में मां बनने के लिए बड़ा बाजार क्रिएट किया है. ये दो उदाहरण हैं […]

राजधानी पटना में पिछले चार सालों में लगातार खुल रहे नये सेंटर और राज्य में शहर दर शहर आइवीएफ के क्लिनिकों में हो रही महीनावार काउंसेलिंग ने केवल मां बनने के लिए नयी तकनीक को प्रसिद्धि दी है बल्कि इसने बिहार में मां बनने के लिए बड़ा बाजार क्रिएट किया है. ये दो उदाहरण हैं जो बता रहें हैं कि कैसे इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) प्रक्रिया से गोद हरी हो रही है और इसने नया रोजगार भी पैदा किया है. जिन महिलाओं को या तो पति या फिर स्वयं के स्वास्थ्य कारणों से बच्चे नहीं हैं वे आइवीएफ के जरिये मां बनने के सपने को पूरा कर रही हैं.

केस 1
पटना के पुरानी मंदिरी मुहल्ले में सरिता देवी (बदला हुआ नाम) एक स्वस्थ महिला हैं. घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने वाली सरिता देवी को अभी कुछ दिनों पहले ही एक ऑफर आया. उन्हें राजाबाजार के एक आइवीएफ फर्टिलिटी सेंटर में काम करने वाले एक कर्मचारी ने कहा कि अंडाणु दीजिए और इसके बदले में आपको तीन से चार हजार रुपये मिलेंगे. अपनी परेशानियों के बीच कमाई का जरिया देखकर उसने भी ट्राई किया और आज वह नियमित रूप से अपना अंडाणु देती है.

केस 2
राजीव नगर में रहनेवाले एक स्टूडेंट को इसी तरह कुर्जी के एक अस्पताल से संदेश मिला. यदि वह अपना स्पर्म डोनेट करता है तो फिर उसे इसके एवज में पांच हजार रुपये तक मिल सकते हैं. बस एक बार आपका टेस्ट होगा और यदि हेल्दी स्पर्म हुआ तो फिर पैसे मिल जायेंगे. अभी वह लगातार स्पर्म डोनेट कर रहा है.

क्या है आइवीएफ?
आइवीएफ तकनीक में अधिक अंडों के उत्पादन के लिए महिला को फर्टिलिटी बढ़ाने वाली दवाइयां दी जाती हैं और उसके बाद एक छोटी सी सर्जरी के माध्यम से अंडों को निकाला जाता है. इन्हें प्रयोगशाला में कल्चर डिश में तैयार पति के शुक्राणुओं के साथ मिलाकर निषेचन के लिए रख दिया जाता है.प्रयोगशाला में इसे दो-तीन दिन के लिए रखा जाता है और इससे बने भ्रूण को वापस महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. पूरी प्रक्रिया में दो से तीन सप्ताह का समय लग जाता है. इसमें डॉक्टर की सलाह, जांच, रिपोर्ट की दोबारा जांच, स्टीमुलेशन, अंडों और शुक्राणुओं का संग्रह और अंत में निषेचन के बाद भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपण शामिल है. इसकी सफलता व असफलता का पता अगले चौदह दिनों में ब्लड व प्रेग्नेंसी टेस्ट के बाद लगता है.

एक आइवीएफ में लग रहे हैं 5 से 10 लाख रुपये
अभी एक आइवीएफ में कम से कम 5 से 10 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. एक अनुमान के अनुसार राज्य में हर साल दस हजार से ज्यादा गर्भधारण आइवीएफ की ही तकनीक से हो रहा है. इस हिसाब से करोड़ों का कारोबार आइवीएफ से हो

रहा है. डॉक्टरों के मुताबिक आपकी उम्र प्रजनन प्रक्रिया पर असर डालती है. बढ़ती उम्र के साथ अंडे बेकाम होने लगते हैं और उनकी संख्या भी कम हो जाती है. इस समय अपने अंडों से बच्चा पाना मुश्किल हो जाता है, इसलिए उम्र को गंवाकर आइवीएफ की तरफ बढ़ना बहुत अक्लमंदी का काम नहीं है. इसके साथ ही यदि आप एक बार

मां बन चुकी हैं और आपका साथी आपके पहले
बच्चे का पिता है तो आइवीएफ के सफल होने की अधिक संभावना है. अगर पहले आपका गर्भ कई बार गिर चुका है एवं आपका साथी नया है तो सफलता की संभावना कम हो जाती है. इसके अन्य कई कारण भी होते है जैसे कि बच्चेदानी में गर्भधारण की क्षमता ना होना, अंडे ठीक ना होना या नये साथी में कमी का होना, जिसका निदान भी आवश्यक हो जाता है.

क्यों बढ़ रहे हैं आइवीएफ के सेंटर?

पुरुषों में शुक्राणु की कमी, शुक्राणु का न होना या असामान्य होना बांझपन का एक प्रमुख कारण बन जाता है. बच्चेदानी की संरचना में कोई गड़बड़ी या ट्यूमर भी इसके कारण है. बदलती हुई जीवनशैली के कारण लोग देर से शादी करते हैं, बच्चे से परहेज करते हैं और बाद में जब चाहत होती है तो निराशा हाथ लगती है. यदि स्त्री और पुरुष दोनों में कमी है तो मुश्किल और बढ़ जाती है. इसके कारण आइवीएफ एक आसान उपाय होता है. यही वजह है कि आइवीएफ सेंटर की संख्या लगातार बढ़ रही है. अंडे की गुणवत्ता व डोनर की उम्र दोनों बहुत मायने रखते हैं. अगर स्त्री जो मां बन चुकी है और उसकी उम्र चालीस वर्ष या ज्यादा है तो उसे किसी कम उम्र और बेहतर गुणवत्ता वाले अंडे वाली स्त्री का इस्तेमाल करने से सफलता मिल सकती है.

कई सारे साइड इफेक्ट्स

आइवीएफ प्रक्रिया के कई सारे साइड इफेक्ट्स भी हैं. मल्टीपल प्रेग्नेंसी चूंकि आइवीएफ ट्रीटमेंट में कई भ्रूण ट्रांसफर किये जाते हैं, इसलिए मल्टीपल प्रेग्नेंसी का खतरा बढ़ जाता है. ये जुड़वा, ट्रिपल या इससे अधिक भी हो सकते हैं. यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक है. इससे बच्चे में कम वजन और मानसिक लकवा भी हो सकता है. इसके साथ ही ट्रीटमेंट में समय पूर्व लेबर या डिलिवरी होती है, चाहे कितने भी बच्चे हों.

आइवीएफ से सिंगल प्रेग्नेंसी के चांस कम
आइवीएफ से सिंगल प्रेग्नेंसी के चांस काफी कम होते हैं. ज्यादातर जुड़वा या उससे ज्यादा बच्चे होते हैं. प्रेगनेंसी टाइम पीरियड से पहले भी हो जाता है. इसमें माता को विशेषज्ञ की सलाह में रहना पड़ता है. डॉक्टर से रूटीन एडवाइस से लेकर लगातार चेक अप भी कराना होता है. कई बार दो बच्चे में से एक में शारीरिक और मानसिक समस्या भी देखने को मिलती है.
-डॉ के मंजू, कार्यकारी प्रमुख, स्त्री रोग विभाग, पीएमसीएच

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