महिलाओं में डिप्रेशन के लक्षण पुरुषों की अपेक्षा बहुत अलग होते हैं. ऐसे में इन लक्षणों को सही समय पर भांपना बेहद जरूरी होता है. अवसाद या डिप्रेशन में महिलाओं के साथ अक्सर मूड स्विंग की समस्या होती है. यानी बहुत जल्दी-जल्दी उनका मूड बदल जाता है. कई बार मूड इस कदर बदलता है कि उन्हें घबराहट के दौरे तक पड़ने शुरू हो जाते हैं. ऐसे में आजकल गृहिणियों में डिप्रेशन का ग्राफ क्यों बढ़ रहा है बता रही हैं जूही स्मिता.
केस 1
मालती(काल्पनिक नाम) कुछ महीनों पहले काफी खुले मिजाज की हुआ करती थी, लेकिन आज वे डिप्रेशन की मरीज हो गयी हैं. काउंसेलिंग के दौरान उन्होंने बताया कि वे गृहिणी हैं और हमेशा अपनी जिम्मेदारी को समझकर सास, ननद, पति और बच्चों का ख्याल रखती हैं. सभी को खुश रखना उनकी पहली प्राथमिकता रही. फिर भी घरवालों ने कभी भी उनकी कदर नहीं की और ऐसे में वह आज डिप्रेशन की शिकार हो गयी हैं. मालती ने दूसरे की सेवा और देखभाल करते-करते खुद पर ध्यान देना ही बंद कर दिया. हालांकि अभी उनकी काउंसेलिंग की जा रही है.
केस 2
मीना (काल्पनिक नाम) अब जीना नहीं चाहती हैं. काउंसेलिंग के दौरान पता चला कि उसने अपने बच्चों और पति के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारी बखूबी निभायी, लेकिन हाल में बच्चों के रिजल्ट आये हैं जिसमें बच्चों ने अच्छा नहीं किया. ऐसे में पति ने बच्चों के खराब रिजल्ट की जिम्मेदारी मीना पर डाल दी. जब भी मौका मिलता है वह उसे बुरा-भला कहता है. बच्चे भी उनसे ढंग से बात नहीं करते हैं. ऐसे में धीरे-धीरे मीना के विचारों में कुंठा होने लगी और वह अब अवसाद की शिकार हो गयी हैं. अवसाद की वजह से वे किसी भी बात पर ध्यान नहीं केंद्रित कर पातीं और बात-बात पर अपना आपा खोने लगती हैं.
ऐसे कई मामले हैं जो इस बात की पुष्टि करता है कि महिलाएं इन दिनों डिप्रेशन की शिकार हो रही हैं. इसके पीछे उनकी फैमिली, उनके पति और बच्चे ही जिम्मेदार हो रहे हैं. वैसे भी बदलते समय के साथ पुरुष और महिलाओं के रिश्तों में भी काफी बदलाव आये हैं. जिसमें मानसिक और सामाजिक बदलाव का रोल सबसे ज्यादा है. महिलाएं हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं फिर भी उन्हें अपने ही घर वाले कद्र नहीं करते. मनोचिकित्सकों का मानना है कि आज कामकाजी महिलाओं की तुलना में घरेलू महिलाओं में अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही. ऐसे मामले शहर में सबसे ज्यादा देखने को मिलता है.
ये आंकड़े और कारण इस बात के हैं गवाह
मनोचिकित्सकों के आंकड़े की माने तो जनवरी से अबतक कई मामले सामने आये हैं जो इस प्रकार है: 26 से लेकर 34 साल तक की महिलाओं के 27 मामले. जबकि 35 से लेकर 42 साल तक की महिलाओं के कुल 23 मामले सामने आये हैं.
ये हैं कारण
अनियमित दिनचर्या-कामकाजी महिलाओं का अपना शेड्यूल होता है और उनका सामाजिक जीवन भी बड़ा होता है. घरेलू महिलाओं में घर के कामों की वजह से अपना ध्यान नहीं रखना और अनियमित जीवनशैली उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है.
कार्यों का नहीं मिलता अनुमोदन-गृहिणी द्वारा किये गये कार्य को सदस्यों द्वारा स्वीकृत न किये जाने पर उनमें असंतोष और आत्म ग्लानि की भावना उत्पन्न होती है. ऐसे में सेल्फ कॉन्फिडेंस में कमी आती है. साथ ही उनमें संवादहीनता उत्पन्न होती है और रिश्ते टूटने और आत्महत्या तक पहुंच जाती है.
अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाना- अक्सर महिलाएं मल्टी टास्किंग होने की वजह से घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी खुद पर ले लेती हैं जिसकी वजह से उन्हें तनाव बढ़ जाता है. इमोशनल सपोर्ट नहीं होने पर परेशानी और अधिक बढ़ जाती है.
इन बातों का रखें ख्याल
हर समय थकान लगना अवसाद का एक गंभीर लक्षण है.
अवसाद से घिरी महिलाएं अक्सर अपनी ही आलोचना करती हैं.
बीते समय में जो हुआ अक्सर उन बातों को याद करके खुद को कोसती हैं.
अवसाद जब बहुत अधिक प्रभावित कर देता है तो मन में आत्महत्या तक करने का विचार आ सकता है, उन्हें अपने जीवन का कोई उद्देश्य नहीं दिखता
इस स्तर तक उनका अवसाद पहुंचे इससे पहले उन्हें चिकित्सा की जरूरत पड़ती है
सुझाव
महिलाओं को चाहिए कि अपनी जिम्मेदारी के बीच कुछ समय खुद के लिए निकालें जिसमें उनका मनपसंद काम शामिल हो.
घर के कामों में पति और बच्चों का सहयोग लें ताकि उन्हें भी आपकी अहमियत समझ में आ सके.
अच्छी नींद लें और खुद में सकारात्मक उर्जा का संचार करें.
गृहिणियों में अवसाद से जुड़े मामले ज्यादा आ रहे हैं. आज महिलाएं घर और बाहर की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. ऐसे में जरूरत है उनको महत्व देने की. महत्व नहीं मिलने पर मन में कुंठा और अवसाद ग्रस्त कर देती है. जैसे वे अपनी परिवार वालों की छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखती हैं ठीक वैसे ही परिवारवालों को भी उनके महत्व को दर्शाने की जरूरत है. इससे उनमें इमोशनल सपोर्ट मिलेगा और अपराध बोध भी नहीं होगा.
– डॉ बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक
गृहिणियों में इच्छाशक्ति कमजोर होने पर उनका आत्मबल भी कमजोर पड़ जाता है और वे अवसाद की शिकार हो रही हैं. जैसे समय पर भोजन न करना,अनियमित दिनचर्या व खुद को कम, हीन समझना, खुलकर अपनी भावनात्मक व्यक्त न करना आदि. ऐसे में पुरुषों को चाहिए की महिलाओं के कामों को महत्व दें. सही मायने में जीवन साथी द्वारा संवाद और गुणवत्ता पूर्ण समय देकर उन्हें अवसाद से उबारा जा सकता है.
– डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक