बदलनी होगी सार्वजनिक स्वास्थ्य की दशा और दिशा
डॉ राजीव मेहता, मनोचिकित्सक एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ नीति आयोग ने दूसरी बार राज्य स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया है, जिसमें केरल पहले स्थान पर है, तो उत्तर प्रदेश अंतिम स्थान पर है. मैं किसी एक राज्य पर बात नहीं करूंगा, हमारी चिंता देश स्तर पर होनी चाहिए. राज्यों और केंद्र दोनों के स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य […]
डॉ राजीव मेहता, मनोचिकित्सक एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ
नीति आयोग ने दूसरी बार राज्य स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया है, जिसमें केरल पहले स्थान पर है, तो उत्तर प्रदेश अंतिम स्थान पर है. मैं किसी एक राज्य पर बात नहीं करूंगा, हमारी चिंता देश स्तर पर होनी चाहिए. राज्यों और केंद्र दोनों के स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य नीति मायने रखती है. जनस्वास्थ्य की हालत इतनी खराब क्यों है, इसका कारण है देश के अच्छे डॉक्टरों का विदेश चले जाना. यह बहुत बड़ी समस्या है.
इनको रोकने के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए. ये डॉक्टर देश में काम करने के लिए तब रुकेंगे, जब इन्हें विदेशों की तरह ही अच्छी सैलरी और सुरक्षा मिलेगी. यहां से पढ़कर जो डॉक्टर विदेश जाते हैं, वहां उन्हें एक तो तुरंत नौकरी मिल जाती है और उन्हें सुरक्षा के साथ हर जरूरी सुविधाएं भी दी जाती हैं. हमारे देश में ऐसी नीति बने, तभी संभव है कि डॉक्टरों का यह ब्रेन ड्रेन रुके. ब्रेन ड्रेन के कारण ही सार्वजनिक स्वास्थ्य की हालत खराब है.
देश में स्वास्थ्य को उत्तम और हर व्यक्ति तक सर्वसुगम बनाने के लिए कुछ बातों को समझना जरूरी है. पहली बात है स्वास्थ्य पर खर्च होनेवाले जीडीपी का प्रतिशत, जो फिलहाल डेढ़ प्रतिशत के आसपास है, जो कि बहुत ही कम है.
इसे कम से कम तीन से पांच प्रतिशत के बीच बढ़ाने की सख्त जरूरत है. जब स्वास्थ्य का बजट बढ़ाया जायेगा, तभी संभव है कि सरकारी अस्पतालों में खाली पड़े डॉक्टरों को भरा जा सकेगा और तमाम मेडिकल उपकरणों, दवाइयों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकेगा. स्वास्थ्य का बजट बढ़ाकर इन तीन चीजों को सुनिश्चित कर दिया जाये, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य की दशा और दिशा दोनों बदल जायेगी.
अस्पतालों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करना, डॉक्टरों को अच्छी सैलरी देना और फिर उन्हें सुरक्षा का माहौल मुहैया कराना, ये तीन ऐसी चीजें हैं, जिनको लेकर सरकार को नीति बनानी चाहिए. भारत में इन तीनों चीजों के अभाव ने स्वास्थ्य के क्षेत्र को बहुत कमजोर बना दिया है. यही वजह है कि अकस्मात जब कोई स्वास्थ्य संकट आता है, तो हम उससे लड़ने में नाकाम हो जाते हैं. यही नहीं, देश में जब भी कहीं कोई स्वास्थ्य संकट आता है, तो मीडिया सिर्फ मरीजों की समस्याओं को ही दिखाता है. मैं मानता हूं यह बहुत जरूरी है, लेकिन यह भी तो जरूरी है कि मीडिया डॉक्टरों की परेशानियों को दिखाये.
तकरीबन एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. लेकिन सरकार इस पैमाने पर अमल नहीं करती और सरकारी अस्पतालों में ढेरों पद खाली पड़े रहते हैं. ऐसा नहीं है कि भारत में डॉक्टरों की कमी है. मसला उनको अच्छी सैलरी और सुरक्षा का माहौल देने का है. मैं अपनी बात करूं तो मेरे बैच में सौ लोग थे, जिसमें से पचास लोग विदेश में प्रैक्टिस कर रहे हैं. और बाकी जो पचास हैं, उनमें से ज्यादातर निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं.
हर बैच का यही हाल है. किसी-किसी बैच में यह संख्या 70-80 तक भी हो सकती है. अब सवाल है कि डॉक्टर यहां से पढ़ाई पूरी कर विदेश क्यों चले जाते हैं? इसका सीधा सा जवाब है- अच्छी सैलरी और सुरक्षित माहौल. डॉक्टरों को लेकर भारत में इन दो चीजों का अभाव दिखता है.
इंसान दो बुनियादी चीजों के लिए पैसा बचाता है- एक शिक्षा, दूसरा स्वास्थ्य. इस ऐतबार से शिक्षा और स्वास्थ्य, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका बजट बढ़ाया जाना चाहिए. बजट बढ़ाकर हेल्दी और ब्रेनी इंडिया बनाने की जरूरत है.
हेल्दी इंडिया ही ब्रेनी इंडिया होगा. यानी भारत स्वस्थ रहेगा, तो यहां के लोग भी स्वस्थ मस्तिष्क वाले होंगे. स्वस्थ और शिक्षित भारत की कार्यक्षमता बहुत शानदार होगी. अगर स्वास्थ्य पर होनेवाले बेवजह के खर्च जनता बचा लेती है, तो वह उसकी कमाई हो जायेगी. लोग बीमार नहीं पड़ेंगे या बीमारी पर ज्यादा नहीं खर्च करेंगे, तो वे बचत कर पायेंगे, जिससे उनके अंदर खुशहाली आयेगी और वे देश के लिए बेहतर काम कर सकेंगे. बेहतर काम करेंगे, तो बाजार भी बढ़ेगा और इससे जीडीपी को और भी फायदा होगा.
बातचीत पर आधारित