स्वास्थ्य सूचकांक 2017-18 चिंताजनक है जनस्वास्थ्य

नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक ने इस आवश्यक तथ्य को रेखांकित किया है कि अनेक सरकारें स्वास्थ्य सेवा और उससे संबंधित सुविधाओं और संसाधनों के विस्तार पर समुचित ध्यान नहीं दे रही हैं. आर्थिक वृद्धि के अनुरूप इस क्षेत्र में विकास नहीं हो सका है. अच्छी प्रगति कर रहे राज्यों से अन्य सरकारें सीख ले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2019 6:29 AM
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक ने इस आवश्यक तथ्य को रेखांकित किया है कि अनेक सरकारें स्वास्थ्य सेवा और उससे संबंधित सुविधाओं और संसाधनों के विस्तार पर समुचित ध्यान नहीं दे रही हैं. आर्थिक वृद्धि के अनुरूप इस क्षेत्र में विकास नहीं हो सका है. अच्छी प्रगति कर रहे राज्यों से अन्य सरकारें सीख ले सकती हैं. नीतियों और कार्यक्रमों को वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए ठोस प्रयास होने चाहिए. इस प्रक्रिया में केंद्र सरकार और नीति आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है. स्वास्थ्य सूचकांक के प्रमुख तथ्यों के साथ इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों..
‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ रिपोर्ट
नीति आयोग ने ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ रिपोर्ट का दूसरा संस्करण जारी किया है. इसमें दो वर्षों की अवधि के दौरान राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और सुधार के आधार पर रैंकिंग जारी की गयी है. रिपोर्ट को आधार वर्ष (2015-16) और संदर्भ वर्ष (2017-18) में बांटा गया है.
रैंकिंग को बड़े राज्यों, छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया है. इस रिपोर्ट में शामिल स्वास्थ्य सूचकांक (हेल्थ इंडेक्स) को 23 संकेतकों के आधार पर तैयार किया गया है, जिन्हें विशिष्ट बीमारियों के बाद विभिन्न उपायों, स्वास्थ्य में सुधार (हेल्थ आउटकम्स), शासन एवं सूचना और महत्वपूर्ण जानकारियों/ प्रक्रियाओं के क्षेत्र (डोमेन) में बांटा गया है. एक नजर, इस रिपोर्ट के महत्वपूर्ण पहलुओं पर……
बड़े राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में केरल अव्वल
वर्ष 2017-18 संदर्भ वर्ष के लिए बड़े राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक अंकों में काफी असमानता है. पहले स्थान और निचले स्थान पर रहनेवाले राज्य के बीच 45.04 अंकों का फासला है. इस सूचकांक में 74.01 अंकों के साथ केरल जहां पहले स्थान पर है, वहीं 65.13 के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे, 63.99 के साथ महाराष्ट्र तीसरे, 63.52 के साथ गुजरात चौथे और 63.01 के साथ पंजाब पांचवें स्थान पर है. निचले पांच पायदान पर उत्तराखंड 17वें, मध्य प्रदेश 18वें, ओडिशा 19वें, बिहार 20वें और उत्तर प्रदेश 21वें पायदान पर है.
सात राज्यों ने सुधारी अपनी रैंकिंग
बड़े राज्यों में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा, असम और राजस्थान ने 2015-16 की तुलना में 2017-18 में अपनी रैंकिंग में सुधार किया है. आंध्र प्रदेश और हरियाणा ने तो वर्ष 2015-16 की तुलना में 2017-18 में क्रमश: अपनी रैंकिंग में छह और चार स्थानों का सुधार किया है. महाराष्ट्र की रैंकिंग जहां आधार वर्ष के मुकाबले संदर्भ वर्ष में तीन स्थान ऊपर पहुंची है, वहीं कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा अौर असम ने अपनी रैंकिंग में क्रमश: एक-एक स्थान का सुधार किया है.
नौ राज्यों की रैंकिंग में आयी गिरावट
समग्र प्रदर्शन के आधार पर नौ राज्यों की रैंकिंग में कमी आयी है. इस सूचकांक में सबसे खराब प्रदर्शन तमिलनाडु का रहा है. यह तीसरे स्थान से नौवें स्थान पर पहुंच गया है. पंजाब और उत्तराखंड की रैंकिंग में क्रमश: तीन और दो स्थानों की कमी आयी है, वहीं हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और बिहार की रैंकिंग में क्रमश: एक-एक स्थान की कमी दर्ज हुई है. इस सूचकांक में पांच राज्यों केरल, गुजरात, जम्मू व कश्मीर, झारखंड और उत्तर प्रदेश की रैंकिंग में आधार व संदर्भ वर्ष में कोई बदलाव दर्ज नहीं हुआ है.
इंक्रीमेंटल परफॉर्मेंस में झारखंड शीर्ष तीन राज्यों में
सकारात्मक बदलाव के मामले में हरियाणा, राजस्थान व झारखंड क्रमश: पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे. इन राज्यों ने क्रमश: 6.54, 6.31 और छह अंकों की वृद्धि हासिल की है. वहीं नकारात्मक प्रदर्शन के मामले में -6.35 अंकों के साथ बिहार ने निचला स्थान प्राप्त किया है.
बड़े राज्य : आधार से संदर्भ वर्ष में वृद्धिशील प्रदर्शन का वर्गीकरण
सुधार नहीं : पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, ओड़िशा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार.
बहुत कम सुधार : : गुजरात, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश.
औसत सुधार : : तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और जम्मू व कश्मीर.
सबसे ज्यादा सुधार : : हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, आंध्र प्रदेश व असम.
हेल्थ आउटकम में झारखंड शीर्ष पर
वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2017-18 में लगभग आधे बड़े राज्यों के विभिन्न उपायों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा हुआ है. इन राज्यों में झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और असम शामिल हैं. हेल्थ आउटकम के मामले में 11 प्रतिशत अंकों की वृद्धि के साथ झारखंड शीर्ष पर है, जबकि सात अंकों के इजाफे के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर है.
वहीं पांच इएजी (एंपावर्ड एक्शन ग्रुप) राज्यों ओड़िशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के हेल्थ आउटकम्स में बड़े पैमाने पर गिरावट आयी है. इस सूची में -8.01 व -6.65 अंकों के साथ ओड़िशा व बिहार निचले पायदान पर माैजूद हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े प्रयास की दरकरार
बड़ी संख्या में आमजन की पहुंच आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं तक नहीं हो सकी है. पिछली सरकार जिन मुद्दों को लेकर जनता के बीच पहुंची थी, उनमें स्वास्थ्य नीतियां सबसे अहम थीं.
बहुचर्चित आयुष्मान भारत योजना, मातृत्व लाभ योजना समेत अन्य कई स्वास्थ्य योजनाओं से आमजन में बड़ी उम्मीद जगी है. हालांकि, जिस तरह से देश के प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश से स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछड़ेपन के चौंकानेवाले आंकड़े सामने आ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि नयी सरकार के सामने आनेवाले वर्षों में कई प्रकार की चुनौतियां होंगी.
स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिहाज से वर्ष 2018 सबसे अहम रहा, जब सरकार ने हेल्थकेयर सेक्टर में बदलाव लानेवाली कई नीतियों की घोषणा की. नयी सरकार के गठन के बाद अब उन नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने और समुचित बजट आवंटन कर लक्ष्य प्राप्त करने की चुनौती होगी.
सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च बीते कई वर्षों से लगातार लगभग 1.3 प्रतिशत पर स्थिर है. भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर साल 2008 से 2015 के बीच कुल जीडीपी का मात्र 1.3 प्रतिशत ही खर्च किया. वर्ष 2016-17 में मामूली सुधार के साथ यह आंकड़ा 1.4 प्रतिशत पर पहुंचा. हालांकि, यह आंकड़े विश्व औसत से काफी नीचे हैं. देश में मौजूदा स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी का 2.5 तक करने का लक्ष्य रखा गया है.
आयुष्मान भारत
हेल्थकेयर सेक्टर में बड़े बदलाव की उम्मीदों के साथ मोदी सरकार द्वारा सबसे महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत’ शुरू की गयी. इस योजना के तहत देश की 50 करोड़ आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है.
सरकार द्वारा वित्त पोषित दुनिया की सबसे बड़ी इस हेल्थकेयर पॉलिसी को कितनी कामयाबी मिलेगी, यह आनेवाले वर्षों में पता चलेगा, लेकिन आमजन तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास निसंदेह ही सराहनीय है. इस वर्ष सरकार द्वारा हेल्थकेयर सेक्टर के लिए 63,298.12 करोड़ का प्रावधान किया गया है.
मातृत्व लाभ
मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम, 2017 द्वारा महिला कर्मचारियों को दिये जानेवाले भुगतानशुदा मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 हफ्तों से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया. नये प्रावधानों के तहत जिन कंपनियों में 50 कर्मचारी या 30 महिला कर्मचारी (जो भी कम हो) कार्यरत हैं, वहां नयी मां बननेवाली महिलाओं को घर से काम करने की सुविधा देने और वर्कप्लेस पर क्रेच आदि सुविधाएं प्रदान करने का प्रावधान किया गया है. विधेयक में उम्मीद की गयी है कि 18 लाख कार्यरत महिला कर्मचारियों को इससे लाभ मिलेगा.
स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी नीतियां
स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने में निजी क्षेत्रों की भागीदारी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में अहम माना गया है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के तहत देश में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बढ़ावा देने, मानसिक बीमारी से बचाव, सुलभ चिकित्सा और जागरूकता आदि को बढ़ावा देने की पहल की गयी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक बीमारी से प्रभावित होगी.
विभिन्न संकेतकों पर बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल की स्थिति
बिहार
नवजात मृत्युदर : प्रति 1,000 जीवित शिशु जन्म पर वर्ष 2017-18 में नवजात मृत्यु दर 27 रही, जो वर्ष 2015-16 के 28 से एक कम है.
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर : प्रति एक हजार शिशु पर आधार वर्ष के 48 मृत्यु मामले की तुलना में संदर्भ वर्ष में 43 मामले दर्ज हुए.
जन्म के समय शिशु का कम वजन : लो बर्थ वेट (2500 ग्राम से कम वजन) मामले में यह 7.22 प्रतिशत से बढ़कर 9.23 प्रतिशत हो गया है.
लिंगानुपात : प्रति एक हजार लड़कों पर 916 लड़कियों से यह कम होकर 908 पर पहुंच गया है.
पूर्ण टीकाकरण : आधार वर्ष के 89.73 प्रतिशत की तुलना में संदर्भ वर्ष में यहां 89.74 प्रतिशत टीकाकरण हुआ है.
अस्पतालों या स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव : आधार वर्ष में यहां 57.10 प्रतिशत प्रसव अस्पतालों में हुए, वहीं संदर्भ वर्ष में इसका प्रतिशत महज 56.01 है.
टीबी इलाज की सफलता दर : इसकी सफलता दर 89.70 प्रतिशत से घटकर 71.90 प्रतिशत रही.
झारखंड
नवजात मृत्युदर : प्रति एक हजार जीवित शिशु पर नवजात मृत्यु दर 23 से घटकर 21 दर्ज हुई.
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मुत्यु दर : प्रति 1,000 जीवित शिशु पर 39 मृत्यु से घटकर यह आंकड़ा 33 पर दर्ज हुआ.
जन्म के समय शिशु का कम वजन : लो बर्थ वेट मामले में 7.42 प्रतिशत से कम होकर 7.12 प्रतिशत पर आ गया है.
लिंगानुपात : प्रति एक हजार जन्में लड़कों पर लड़कियों की संख्या 902 थी, यह बढ़कर 918 हो गयी.
टीकाकरण : आधार वर्ष में 88.10
प्रतिशत से बढ़कर 100 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया गया.
अस्पतालों में प्रसव : 67.36 प्रतिशत से बढ़कर 88.15 प्रतिशत हो गया है.
टीबी इलाज की सफलता दर : आधार वर्ष में 90.90 से बढ़कर 91.70 प्रतिशत हो गयी है.
प बंगाल
नवजात मृत्यु दर : प्रति एक हजार जीवित शिशु पर 18 मृत्यु
मामले की तुलना में संदर्भ वर्ष में 17 मामले ही दर्ज हुए.
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मुत्यु दर : प्रति 1,000 जीवित शिशु पर 30 मृत्यु से गिरकर यह आंकड़ा 27 पर रहा.
जन्म के समय शिशु का कम वजन : लो बर्थ वेट में यहां कोई बदलाव नहीं है. दोनों ही वर्षों में यह प्रतिशत 16.45 है.
लिंगानुपात : आधार वर्ष में प्रति एक हजार जन्मे लड़के पर लड़कियों की संख्या 951 से घटकर 937 पर आ गयी है.
टीकाकरण : आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष का प्रतिशत एक समान95.85 है.
अस्पतालों में प्रसव : आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष का प्रतिशत एक समान 81.28 प्रतिशत ही रहा है.
टीबी इलाज की सफलता दर : आधार वर्ष के 86.50 प्रतिशत की तुलना में संदर्भ वर्ष (85.70 प्रतिशत) में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
अन्य देशों का स्वास्थ्य पर खर्च
पीआरएस के अनुसार भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा संयुक्त रूप से जीडीपी का लगभग 3.9 प्रतिशत खर्च किया जाता है. इसमें लगभग एक तिहाई (30 प्रतिशत) खर्च पब्लिक सेक्टर से आता है. हालांकि, दुनिया के तमाम विकासशील और विकसित देशों की तुलना में भारत का सार्वजनिक खर्च बहुत कम है. रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील 46 प्रतिशत, चीन 56 प्रतिशत, इंडोनेशिया 39 प्रतिशत, अमेरिका 48 प्रतिशत और ब्रिटेन 85 प्रतिशत खर्च करता है. हेल्थकेयर सेवाओं में सरकारी भागीदारी बड़ी होने से हेल्थकेयर इकोसिस्टम, विशेषकर हॉस्पिटल सर्विसेज और निवेश को प्रोत्साहन मिलता है.
स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचागत व्यवस्था
ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी बुलेटिन 2017-18 के अनुसार मार्च, 2018 तक देश भर में 32900 उपकेंद्रों (5000 की आबादी पर), 6430 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी, 30000 आबादी पर) और 2188 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों ( 80000 से 1,20,000 की आबादी के लिए) की कमी है.
भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) के अनुसार मात्र 7 प्रतिशत उपकेंद्र, 12 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 13 प्रतिशत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ही पूर्ण क्षमता के साथ संचालित हैं. जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति काफी दयनीय है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित आबादी और डॉक्टर अनुपात भारत में 25 गुना कम हैं.

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