सेलिब्रिटीज से लेकर सिंपल लेडी में छाया है साड़ी का क्रेज, जानें रोचक तथ्य

साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्य पहनावा है. हर उम्र, वर्ग, समुदाय की महिलाओं में इसका क्रेज दिखता है. यह यहां संस्कृति और सभ्यता का परिचायक है. भारतीय महिलाओं की पहचान है. वे भले ही कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जायें, आज भी विशेष अवसरों पर साड़ी पहनना ही पसंद करती हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 14, 2019 1:08 PM

साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्य पहनावा है. हर उम्र, वर्ग, समुदाय की महिलाओं में इसका क्रेज दिखता है. यह यहां संस्कृति और सभ्यता का परिचायक है. भारतीय महिलाओं की पहचान है. वे भले ही कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जायें, आज भी विशेष अवसरों पर साड़ी पहनना ही पसंद करती हैं. राजनीति में सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, इंदिरा गांधी, सुषमा स्वराज, जय ललिता जैसी नेत्रियों की साड़ी वाली छवि ने हमेशा ही जनमानस को आकर्षित किया है.

‘इटलीवाली बहू’ सोनिया गांधी ने भी भारतीय राजनीति में प्रवेश करने पर अपने पहनावे में साड़ी को ही वरीयता दी. सुषमा स्वराज ने यूएन एसेंबली में भाषण देते वक्त भी साड़ी ही पहनी थी और उनके इस रूप ने पूरी विश्व में भारतीय नारी की एक सशक्त छवि स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी. पश्चिमीकरण से सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होनेवाला बॉलीवुड भी साड़ी के इस मोहपाश से खुद को अब तक मुक्त नहीं कर पाया है. शिल्पा शेट्टी और विद्या बालन ने अपनी शादी पर लाल रंग की साड़ी पहनी थी. ऐश्वर्या राय ने अपनी शादी पर गोल्डन रंग की साड़ी पहनी थी. मान्यता दत्त ने भी अपनी शादी पर ऑफ-व्हाइट रंग की साड़ी पहनी थी.

दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा, सुष्मिता सेन, विद्या बालन सहित कई अभिनेत्रियां अक्सर साड़ियों में नजर आती हैं. उन्हें देख कर आम महिलाओं एवं युवतियों में भी साड़ी पहनने का क्रेज लगातार बढ़ रहा है.
रोचक तथ्य
-दिल्ली निवासी रीता कपूर चिश्ती साड़ी पहनाने की क्लास चलाती हैं. वह साड़ी पहनने के करीब 108 तरीके जानती हैं.
-भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा महिलाओं के लिए प्रकाशित पत्रिका में साड़ी पहनने की बांगला शैली का विज्ञापन साड़ी बेचने के लिए किया जाता था.
-पूर्वी भारत और बांग्लादेश के बुनकरों द्वारा बुनी जानेवाली जामदानी साड़ी को बनाने में करीब दो साल का समय लगता है.
-70 वर्षों पूर्व पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक साड़ी किसी खास धर्म या मजहब की नहीं थी. हिंदू-मुस्लिम सब इसे पहनते थे. मुहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना ने पूरी जिंदगी साड़ी पहनी. पाक के पहले वज़ीर-ए-आज़म लियाकत अली खान की पत्नी बेगम राना लियाकत अली खान साड़ी पहनती थीं.
-1977 के तख्तापलट के बाद जियाउल हक पाकिस्तान को शरिया के मुताबिक चलाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने 1985 में एक नियम लागू किया कि सरकारी नौकरी करने वाली महिलाएं साड़ी नहीं पहन सकतीं. तभी से कट्टरपंथियों में साड़ी के प्रति द्वेष पनपना शुरू हुआ. वे इसे दुश्मन मुल्क का पहनावा मानने लगे.

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