स्लिप डिस्क से छुटकारा दिलाता है गरुड़ासन
स्वामी निर्मल राणा, योगाचार्य, ओशोधाराअच्छा स्वास्थ्य संपूर्ण सुखों का आधार है. स्वस्थ वह है, जो कफ, पित्त व वात के त्रिदोषों से मुक्त है और जिसकी जठराग्नि सम है. स्वस्थ शरीर वही है, जिसमें सप्ताधातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा वीर्य) उचित अनुपात में हो. मलमूत्र की क्रिया सम्यक प्रकार से होती हो […]
स्वामी निर्मल राणा, योगाचार्य, ओशोधारा
अच्छा स्वास्थ्य संपूर्ण सुखों का आधार है. स्वस्थ वह है, जो कफ, पित्त व वात के त्रिदोषों से मुक्त है और जिसकी जठराग्नि सम है. स्वस्थ शरीर वही है, जिसमें सप्ताधातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा वीर्य) उचित अनुपात में हो. मलमूत्र की क्रिया सम्यक प्रकार से होती हो और 10 इंद्रियां (कान, नाक, आंख, त्वचा, रचना, गुदा, उपस्थ, हाथ, पैर एवं जिह्वा) ठीक से काम कर रहे हों. यदि मन और इसका स्वामी आत्मा भी प्रसन्न हों, तो सोने पर सुहागा. महर्षि चरक के अनुसार, ऐसी अवस्था तभी प्राप्त हो सकती है, जब आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य- तीनों का पालन हो. इन्हीं तीन आधारों पर यह शरीर टिका है. गीता में श्रीकृष्ण भी कहते हैं, ‘जिसके आहार-विहार, विचार एवं व्यवहार संतुलित तथा संयमित हैं, जिसके कार्यों में दिव्यता, मन में सदा पवित्रता एवं शुभ की अपेक्षा है, जिसका शयन एवं जागरण नियमित है, वही सच्चा योगी है.’
आसन कई प्रकार से किये जाते हैं. जैसे- बैठकर, पेट के बल, पीठ के बल, खड़े होकर. सभी आसनों में इस बात का महत्व होता है कि सांस कब लेनी और कब छोड़नी है. आसन विविध रोगों का निवारण ही नहीं करता, अपितु मानसिक बौद्धिक व शारीरिक संतुलन बनाये रखता है. योगासनों में 3 क्रियाएं होती हैं : श्वास भरकर शरीर को पूरी तरह से तानना, आसन की पूर्ण स्थिति में श्वासों को सामान्य कर यथाशक्ति रुकना(रुकने पर ही आसनों का लाभ होता है) और श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस आना और शरीर को ढीला छोड़ना. गरुड़ासन खड़े होकर करने वाले आसनों में से एक महत्वपूर्ण योगाभ्यास है. गरुड़ एक पक्षी है.
इस आसन में शरीर की आकृति गरुड़ के समान होने के कारण इसका नाम गरुड़ासन रखा गया है. इस आसन में हाथ एक-दूसरे में गूंथ दिये जाते हैं और छाती के सामने इस प्रकार रखे जाते हैं, जैसे गरुड़ की चोंच होती है.
गरुड़ासन करने की विधि : सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं. दायें पैर को सामने ले जाकर बायें पैर के ऊपर रखते हुए रस्सी के वट की तरह लपेटें. ठीक इसी तरह से दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर (बाहर से लाते हुए ) रखते हुए लपेटें. दोनों हाथों की हथेलियां परस्पर मिल जाएं तथा नासिका के सामने रखें. श्वास बाहर निकालते हुए यथाशक्ति रोकें तथा जांघों को दबाएं. ठीक यही क्रिया दूसरे हाथ और पैर से भी दोहराएं. इसका अभ्यास प्रत्येक दिशा से कम-से-कम एक मिनट तक करें. प्रारंभ में कुछ दिनों के लिए सांस न रोकें. जब आसन में दक्षता आ जायें, तो आसन की पूर्ण स्थिति में जितनी देर संभव हो सके रूकें.
गरुड़ आसन के लाभ : यह आसन अंडकोष वृद्धि तथा हर्निया एवं गुदा की बीमारियों में विशेषकर लाभकारी होता है. खड़े रहने में लंबवत खिंचाव बढ़ता है. इस आसन में कमर के निचले भाग के दोष दूर होते हैं, जैसे कमर दर्द व स्लिप डिस्क आदि. गठिया, सायटिका, घुटने और जोड़ों का दर्द ठीक होता है. हाथों का कांपना रुकता है. नाड़ी मंडल बलिष्ठ होता है. देर तक चलने या देर तक खड़े रहने से होने वाली थकान को भी मिटाता है. पैरों में होने वाली गिल्टी ठीक होती है. गुदा और मूत्राशय के सभी रोग दूर होते हैं. इस आसन के करने से शरीर में शांति आती है और शरीर में सामंजस्य सा बना रहता है. यह आसन पैरों और जांघों को मजबूत बनाता है. यह आसन हाथों को मजबूत बनाता है और कोहनी के दर्द से भी छुटकारा दिलाता है.
सावधानी : बहुत गंभीर गठिया के रोग में
इस आसन को न करें. नसों में सूजन होने पर इस आसन को करने से बचना चाहिए. हड्डियों तथा जोड़ों में चोट होने पर भी यह आसन नहीं करना चाहिए.