पुलिस-फौज में महिलाओं की वर्दी को बदलने की मांग, BJP सांसद ने राज्यसभा में कही यह बात
नयी दिल्ली : राज्यसभा में भाजपा के सदस्य डी पी वत्स ने मंगलवार को उच्च सदन में शून्य काल के दौरान पुलिस एवं फौज में तैनात महिलाकर्मियों की वर्दी को उनके काम के लिहाज से असुविधाजनक बताते हुए इसमें बदलाव करने की मांग की. वत्स ने सदन में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सुरक्षा […]
नयी दिल्ली : राज्यसभा में भाजपा के सदस्य डी पी वत्स ने मंगलवार को उच्च सदन में शून्य काल के दौरान पुलिस एवं फौज में तैनात महिलाकर्मियों की वर्दी को उनके काम के लिहाज से असुविधाजनक बताते हुए इसमें बदलाव करने की मांग की.
वत्स ने सदन में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सुरक्षा सेवा में महिलाकर्मियों को पैंट, बेल्ट और शर्ट पहनना पड़ती है. साथ ही, शर्ट को पैंट और बेल्ट के भीतर दबाना होता है. यह बेहद असुविधाजनक होता है खासकर गर्भावस्था के दौरान और इसके बाद. महिलाकर्मियों को इस तरह की वर्दी पहनने से खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
वत्स ने हालांकि भारतीय महिलाओं की ‘कदकाठी’ को इस ड्रेस के मुताबिक नहीं होने की भी दलील दी. इस पर कुछ विपक्षी दलों की महिला सांसदों ने आपत्ति दर्ज करायी. सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस आपत्ति को यह कहकर खारिज कर दिया कि शून्य काल में किसी सदस्य द्वारा उठाये गये मुद्दे पर सदस्य अपनी सहमति और असहमति दर्ज करा सकते हैं लेकिन किसी सदस्य को उनकी मर्जी के मुताबिक बोलने के लिए निर्देश नहीं दे सकते हैं.
वत्स ने सरकार को महिलाओं की गरिमा और कामकाज की सहूलियत के अनुरूप वर्दी के तौर पर में सफारी सूट या सलवार कमीज पहनने का विकल्प देने का सुझाव दिया. उन्होंने विशेष सुरक्षा बल (एसपीजी) और संसद की सुरक्षा में तैनात महिलाकर्मियों की ड्रेस में सफारी सूट होने को बेहतर उदाहरण बताया.
वत्स ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की मुहिम में बेटियों के कामकाज को गरिमामय और सहूलियत भरा बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि यद्यपि सैन्यबलों ने महिलाकर्मियों को साड़ी का विकल्प मुहैया कराया है लेकिन उनका मानना है कि परेड के लिहाज से असुविधाजनक हो सकता है.
वत्स ने कहा कि महिलाकर्मियों की कदकाठी को मौजूदा वर्दी के लिहाज से उपयुक्त नहीं बताये जाने के बयान से अगर किसी सदस्य की भावनाएं आहत हुई हों तो वह इसके लिए खेद व्यक्त करते हैं. वत्स ने स्पष्ट किया कि उनका मकसद महिलाकर्मियों की सहूलियत और कामकाज को गरिमामय बनाने का सुझाव देना था.